- भैंसाली मैदान में बनाए गए भव्य पंडाल में चल रही श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ का छठा दिन
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ के छठे दिन रमेश भाई ओझा ने कहा कि भागवत में विद्वानों की परीक्षा होती है। ईश्वर है, यह एक अनुमान है। जैसे घड़ी है तो इसको बनाने वाला भी कोई जरूर है, लेकिन कौन है, यह हम नहीं जानते, यह अनुमान है। कितने प्रमाण को मानते हैं, शास्त्रों में इसका उल्लेख है। यह सृष्टि है, यह बनाने वाला भी जरूर है। यह पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा और इससे बड़े-बड़े सितारे मौजूद हैं। यह सब अपनी कक्षा में निरंतर तैर रहे हैं। यह सब बुलबुलों की तरह है।
शुक्रवार को प्रात:काल से ही पूज्य रमेशभाई ओझा का कार्यक्रम बड़ा ही व्यस्त रहा। पहले भाईश्री ने औघड़नाथ मंदिर में अभिषेक किया। उसके बाद श्रीराधागोविन्द मंदिर, दुर्गा मंदिर दर्शन कर अन्नपूर्णा मंदिर में दर्शन किए। इसके साथ ही अन्नपूर्णा अस्पताल का भ्रमण किया। इसके पश्चात उन्होंने शहीद स्मारक में जाकर शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि देकर वहां के संग्रहालय का अवलोकन किया। इसके बाद भाईश्री कथा के लिए पंडाल में समय से पूर्व पधारे। भैंसाली मैदान में बनाए गए भव्य पंडाल द्वार पर संत ध्वनि मंत्रोच्चार के साथ चिन्तक विचारक रमेश भाई ओझा का स्वागत हुआ।
उनके व्यास पीठ पर विराजमान होने के बाद नित्य क्रियानुसार मुख्य यजमान रामकिशोर सर्राफ, बृजबाला, विपिन अग्रवाल, अलका अग्रवाल ने भागवत जी की पूजा एवं भाईश्री का माल्यार्पण कर स्वागत किया। अशोक गुप्ता (सर्राफ) ने छप्पन भोग प्रसाद कथा स्थान पर लगाया। हरेन्द्र अग्रवाल (पूर्व एमएलसी), डॉ. रामकुमार, डॉ. मनीषा गुप्ता, संजीव गुप्ता, जेपी अग्रवाल, राजीव गुप्ता, आशीष कौशिक, दीप्ति राघव, नवीन गुप्ता ने व्यासपीठ को प्रणाम कर भाईश्री का आशीर्वाद ग्रहण किया। उन्होंने प्रवचन करते हुए कहा कि हम भगवान को मानते हैं, पर जीवन में अनुभव नहीं करते।
भगवान को स्वीकार न करना अपनों को ही न स्वीकार करना है। प्रकृति में कुछ भी स्थिर नहीं, सब गतिशील है। गति प्रकृति का परिचय है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है, क्रिया स्वभाव है। हम जो करते हैं वह कर्म है, जो होती रहती है वह क्रिया है। हम सो रहे हैं फिर भी हमारी सांस चलती रहती है यह क्रिया है। डॉक्टर के कहने पर गहरी सांस लेना कर्म है। क्रिया किसी को नहीं बांधती, कर्म बांधता है। पाप और पुण्य कर्म से बंधे हैं। जबकि क्रिया नहीं बांधती है। दिल धड़क रहा है यहां पाप या पुण्य नहीं है। कोई कर्ता नहीं है। कर्म कर्ता को बांधता है। ज्ञान पाना नहीं, अज्ञानता को दूर करना है। क्योंकि जो पाया जाता है वह खो भी जाता है।
मैं और हूं शब्द की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि इन्हीं के बीच हमारा पूरा संसार है। अपने होने का एहसास मैं कर रहा हूं, यह अभिमान है। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण के आसपास गोपियां घूमती हैं। सूर्य के चारों ओर ग्रह घूमते हैं। जीवन चक्र है, जन्म है, मृत्यु है। सुबह हुई शाम हुई रात हुई, यही फिर होता है। जहां से शुरू होता है वहीं पर खत्म होता है। फिर जन्म, फिर मृत्यु, 84 लाख योनियों में आत्मा घूमती रहती है। उन्होंने योग के विषय में चर्चा करते हुए कहा कि सब कुछ भागवत में है, कथा सुनते हैं भावनात्मक सोच बन जाती है।
गोवर्धन पूजा के विषय में कहा कि भगवान जब वन से लौटे तो देखा बृजवासी इन्द्र के पूजा के लिए एकत्रित हुए है। कृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि आप लोग इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं, उत्तर मिला यदि हम बादल के राजा इन्द्र की पूजा नहीं करेंगे, तो वह हमें जल की एक-एक बूंद को तरसा देंगे। कृष्ण ने कहा कि जगत कर्मभूमि है, इन्द्र भाग्य को नहीं रोक सकता है। हम गौपालक है, उसके लिए घास इत्यादि का पोषण गिरिराज पर्वत से ही होता है। इसलिए वही हमारे इष्ट है उनका पूजन करें। कृष्ण के सुझावनुसार गिरिराज की सभी ने पूजा-अर्चना की।
इससे राजा इन्द्र कुपित हो गए। और उन्होंने बृजवासियों को दंडित करने के लिए घनघोर वर्षा की। प्रभु श्रीकृष्ण ने बायें हाथ की कनिष्टिका अंगुली पर गिरिराज पर्वत को धारण किया। सभी बृजवासियों को बाल गोपाल सहित पर्वत के नीचे आने को कहा। गोवर्धन पर्वत ने सभी की रक्षा की। शनिवार को रुकमणि विवाह समोराह मनाया जाएगा। कथा अध्यक्ष सतीश सिंघल, महामंत्री ज्ञानेन्द्र अग्रवाल, कोषाध्यक्ष अशोक गुप्ता, ब्रजभूषण गुप्ता, सुरेश गुप्ता, अन्नी भाई, विपिन अग्रवाल अपने सहयोगियों के साथ मौजूद रहे। कथा समापन पर आरती हुई।