- ब्याज देने को लोगों से लिए जाते रहे पैसे
- सूदखोर भोले-भाले लोगों को फंसा कर लूटते हैं गाढ़ी कमाई
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: जिले में सूदखोरी का जाल लंबे समय से फैला हुआ है। वर्षों पहले शुरू हुए ब्याज में कर्ज देने के इस अवैध कारोबार ने समय के साथ-साथ बड़ा रूप ले लिया है। शहर के अलावा उपनगरीय क्षेत्र में भी सूदखोर तैयार हो गए। जरूरत पड़ने पर लोग ऐसे सूदखोरों से अधिक ब्याज दर पर कर्ज लेने लगे। कर्ज में ली गई रकम की वजह से ज्यादा रकम लेने वाले कर्जदार सूदखोरी के मकड़जाल में फंसते चले गए।
इस चक्कर में जहां कई लोग अपनी गाढ़ी कमाई खोकर बर्बाद हो गए। तो कई लोगों ने कर्ज में डूबे होने के बाद वसूली की प्रताड़ना से तंग होकर आत्महत्या कर ली। जिले में ऐसा कोई कस्बा या गांव नहीं है। जहां सूदखोरों का जाल नहीं फैला हो। मुसीबत के वक्त आसानी से रुपये देकर व्यक्ति को फंसाते हैं। इसके बाद ब्याज पर ब्याज लगाकर रकम का पहाड़ खड़ा कर देते हैं।
छह लाख सूद पर लेने के बाद फरार चल रहे सूदखोर को प्रतिमाह डेढ़ से दो लाख रुपये का सूद दिया जाता था, लेकिन मांग बढ़ती रही। यह कहना है कि सूदखोर का शिकार युवक का। साथ ही कहना है कि उसने सूद देने के लिए ही अन्य लोगों से भी पैसा लिया जो सूदखोर को दिया गया।
आड़े वक्त में सूद पर रुपया उधार लेने वाले मुसीबतजदा लोगों को कर्ज लेने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है। आलम यह है कि सूद पर कुछ हजार रुपये का कर्ज देकर सूदखोर, लोगों को इतना भयभीत कर देते हैं कि उन्हें अपनी महीने भर की कमाई का बड़ा हिस्सा चुकाना पड़ता है। ऐसे में गृहस्थी की गाड़ी लड़खड़ाने लगती है और सूदखोरों से भयभीत कर्जदार खुदकुशी पर मजबूर हो जाते हैं।
मुरारीपुरम निवासी पंकज रस्तोगी का कहना है कि जब उसने सूद पर पैसा लिया था तो उससे पहले दो प्रतिशत का ब्याज देने की बात बताई गई थी, लेकिन धीरे-धीरे सूद का प्रतिशत बढ़ाया जाने लगा। यहां तक की उससे 15 से 20 प्रतिशत तक का सूद वसूला जाने लगा। जिसके लिए उससे प्रतिमाह डेढ़ से दो लाख रुपये वसूले जाते रहे। काम ठीक न चलने की वजह से सूद पर पैसा लिया था, लेकिन न काम रहा और न ही परिवार में सुख। सूदखोर को पैसा देने के लिए रिश्तेदारों से भी पैसे लिए गए।
जिस कारण अब वह भी साथ छोड़ चुके हैं, कोई पूछने तक नहीं आता। पंकज ने बताया उसने परिवार के लोगों से पैसे लेने के बाद अपनी पत्नी के जेवरों तक को बेच दिया, बावजूद इसके सूदखोर की मांग कम नहीं हुई। जो पैसा दिया जाता था वह केवल ब्याज के रूप में ही दर्ज होता था। मूल इस समय भी उनके रिकॉर्ड में मौजूद है। एक के बाद एक कई लोगों की देनदारी भी बढ़ गई है। जिसको लेकर हर समय परेशान रहता है। पुलिस ने भी उसकी मदद की है, लेकिन एक व्यक्ति से सूद पर पैसा लेने की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है, जो सहन नहीं होती।
ऐसे उठाते हैं मजबूरी का फायदा
कोरे चेक और स्टांप पेपर में करा लेते हैं हस्ताक्षर। रकम देने के पहले सूदखोर कोरे चेक व कोरे स्टाम्प में हस्ताक्षर करा लेते हैं। बाद में इन्हें वह शस्त्र के रूप में इस्तेमाल करते हैं। किश्त मिलने में देरी या राशि मिलनी बंद हुई तो वह चेक में अपने हिसाब से रकम भरकर बैंक में जमा कर उसे बाउंस कराकर कोर्ट में दायर करा लेते हैं। साहूकारों की मिलीभगत कोर्ट के कर्मचारियों से रहती है। इसलिए उन्हें देरी नहीं होती। समय पर उनका समंस व नोटिस तामील हो जाता है। सूदखोरों की नजर जरूरतमंदों की प्रॉपर्टी पर होती है। जिनके पास कुछ संपत्ति है उन्हें पहले उधार में रकम लेने के लिए विवश करते हैं। एवज में उनका घर, मकान व खेत के कागजात रखकर इन्हें अपने नाम से कराने के फिराक में रहते हैं।
मौत का फंदा ब्याज
जनपद सूदखोरों के शिकंजे में फंसी जा रही है। इससे गरीब तबका सर्वाधिक प्रभावित हो रहा है। सरकारी दफ्तर से लेकर गरीब बस्तियों तक सूदखोरी का जाल फैला हुआ है। खुलेआम सूदखोर के समाजकंटक वसूली कर रहे हैं। पुलिस और प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है और ब्याजखोर खुलेआम खेल खेल रहे हैं। पिछले पांच साल में ही सूदखोरों के जाल में फंस कर परेशानी के कारण कई लोग आत्महत्या करके जान गंवा चुके हैं। इसमें कई बार परिवार ने सामूहिक आत्महत्या तक की कोशिश की।
हजारों शिकंजे में
शहर समेत जिले में हजारों लोग सूदखोरों के जाल में फंसे हुए हैं। ज्यादातर नौकरी पेशा लोग सूदखोरी के शिकार है, क्योंकि इनसे पैसे वसूलने की गारंटी होती है। आर्थिक मजबूरी, जुए और शराब के आदी लोग ही सूदखोरी के दलदल में फंस जाते है। गरीब बस्तियों में रहने वाले पेट की आग शांत करने के लिए भी कर्ज लेने को मजबूर होते हैं।
यूं फंसते हैं जाल में
जुएं और नशे के आदी तथा आर्थिक परेशानी से त्रस्त लोग पहले घर चलाने के लिए सूदखोरों की शरण में जाते है। कई लोग सूदखोरों का कर्ज चुकाने के लिए दूसरे सूदखोरों से भी कर्ज ले लेते है इसके शिकार ज्यादातर लोग ऐसे है, जो पहले से बैंक और वैधानिक संस्थाओं से कर्ज ले चुके होते हैं।