Saturday, June 14, 2025
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…तो यूपी को बॉय-बॉय कहेंगी ‘प्रियंका दीदी’

  • कांग्रेस की प्रदेश टीम में एक भी महिला नहीं, इसके कई मायने!
  • रणनीति पर सवाल: ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ का नारा गायब, चर्चाएं तेज
  • महिलाओं को 40 फीसदी हिस्सेदारी की बात भी हवा में

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2022 में कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को ‘तुरुप का इक्का’ समझ मैदान में उतारा था। उन्होंने भी मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपनी छवि पर विश्वास कर उन्होंने ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ का नारा दिया और महिलाओं को 40 फीसदी हिस्सेदारी की बात भी कही।

जिलों में युवतियों को दौड़ाया, साड़ी से लेकर लैपटॉप और पिंक कलर की स्कूटी तक पर बैठाया, लेकिन पार्टी के लिए नतीजा फिर वहीं ‘ढाक के तीन पात’। युवतियों ने तो स्कूटी की सवारी कर ली लेकिन दीदी (प्रियंका गांधी) की उम्मीदों को पैदल कर दिया।

यूपी में प्रियंका से आस लगाए बैठी पार्टी को धक्का लगा। यहां पार्टी को कुछ हाथ नहीं लगा, यह पार्टी के लिए गहन चिंतन और मंथन का विषय था। इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की नेतृत्व को लेकर हुई बगावत ने गुल खिला दिया। पार्टी हाईकमान को बैकफुट पर आना पड़ा जिसका नतीजा यह होने जा रहा है कि 19 अक्टूबर को पार्टी को नया गैर गांधी परिवार का मुखिया मिलता दिख रहा है।

इन सब प्रयोगों के फेल होने से पार्टी भी आहत है और निजि तौर पर प्रियकां गांधी भी। दरअसल यह सब आंकलन पार्टी कार्यकताओं के साथ साथ राजनीति के जानकार भी प्रदेश टीम के चेहरों के आधार पर कर रहे हैं। हाल ही में पार्टी ने बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के साथ साथ एक नया प्रयोग किया और उनकी टीम में छह प्रांतीय ेअध्यक्षों की भी नियुक्ति कर दी।

इनमें नसीमुद्दीन सिद्दीकी, अजय राय, वीरेन्द्र चौधरी, नकुल दुबे, अनिल यादव और योगेश दीक्षित शामिल हैं। इस सूची में एक भी महिला का नाम न होने से पार्टी नेताओं में भी सुगबुगाहट शुरू हो गई। पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल के हस्ताक्षरों वाली इस सूची के लखनऊ पहुंचते ही सबसे बड़ा सवाल यह उठ खड़ा हुआ कि इसमें ‘दीदी की सोच’ कहां गई।

‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ और महिलाओं के लिए 40 फीसदी हिस्सेदारी की बात करने वाली दीदी की सोच का इस सूची में आभाव देख पार्टी गलियारों में इस बात की चर्चाएं तेज हो गर्इं कि दीदी की प्लानिंग फेल होने के बाद पार्टी हाईकमान अब नई रणीनीति (दलित मुस्लिम समीकरण) पर नया प्रयोग करने जा रही है। पार्टी के प्रदेश कार्यालय से लेकर केन्द्रीय कार्यालय तक में अब गुपचुप यही चर्चाएं हावी हैं कि क्या दीदी यूपी में फेल होने के बाद अपना फोकस इस सबसे बड़े प्रदेश से डायवर्ट कर रही हैं।

कहां है पार्टी की ‘अधिकृत’ पीसीसी सूची!

कांग्रेस में इस समय किस स्तर पर क्या खिचड़ी पक रही है यह कोई नहीं जानता। स्थानीय स्तर से लेकर प्रान्तीय व राष्ट्रीय स्तर तक पर पार्टी में उठापटक मची हुई है। स्थानीय स्तर पर जहां मेन कांग्रेस और यूथ में रार दिखती है वहीं प्रान्तीय स्तर पर कांग्रेसी पार्टी की ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ मुहिम सवालों के घेरे में है। राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व परिवर्तन का मुद्दा हावी है।

इन सबके बीच एक अक्टूबर को पार्टी की पीसीसी सदस्यों की सूची जारी हुई। मेरठ में 30 कांग्रेसी पीसीसी सूची में जगह बनाने में कामयाब हो गए। जिला अध्यक्ष को इस सूची में जगह मिल गई लेकिन महानगर अध्यक्ष का नाम सूची से गायब हो गया। हांलाकि जाहिद अंसारी खुद को ‘स्वयंभू पीसीसी’ मान कर चल रहे हैं।

सोशल मीडिया पर भी यह सूची खूब वायरल हुई। इस सूची पर कई कांग्रसियों ने सवाल भी खड़े किए, लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वायरल सूची और पार्टी की अधिकृत सूची दोनों एक ही हैं या फिर अलग अलग! अगर एक ही हैं तो 10 दिन बीत जाने के बाद भी पार्टी के जिला व महानगर अध्यक्षों को पार्टी हाईकमान द्वारा जारी अधिकृत सूची क्यों नहीं भेजी गई।

सोमवार को महानगर अध्यक्ष जाहिद अंसारी ने बताया कि सूची को लेकर उन्होंने कुछ ही देर पहले पार्टी के प्रान्तीय अध्यक्षों में से एक नसीमुद्दीन सिद्दीकी से बात की, लेकि न कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो सूची एक अक्टूबर को जारी की गई थी

उसमें कहीं न कहीं कुछ गुपचुप रद्दोबदल की कसरत जारी है। जिलाध्यक्ष भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रहे हैं। उसे भी बस अधिकृत सूची का इंतेजार है। हांलाकि महानगर अध्यक्ष ने दावा किया है कि एक दो दिनों के भीतर पार्टी की अधिकृत सूची उनके पास पहुंच जाएगी।

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