Sunday, September 8, 2024
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मिट्टी के चूल्हे का खाना अब नहीं होता नसीब

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  • गांव आने-जाने वाले ही जानते हैं इसका स्वाद
  • गांव के घर में मिट्टी का चूल्हा देख लोगों को याद आया बचपन
  • अब तो यादों तक सिमट गए मिट्टी के चूल्हे
  • बुजुर्ग बोले- वो स्वाद ही होता था निराला
  • सेहत का खजाना होता है मिट्टी के चूल्हे का खाना

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ:

गांव लौटे शहर से तो सादगी अच्छी लगी।

हमको मिट्टी के दिये की रोशनी अच्छी लगी।

बासी रोटी नाश्ते में सेक कर जब मां ने दी

हर अमीरी से हमें ये मुफलिसी अच्छी लगी।।

आधुनिक युग में जीवनशैली काफी हद तक टेक्नोलॉजी पर आधारित हो गई है। नौकरी से लेकर घर की रसोई तक, हर तरफ आविष्कार से लबरेज रहते हैं। यह बदलाव महानगरों में ज्यादा देखने को मिलता है। हालांकि अब गांव भी इनके प्रभाव से अछूते नहीं रह गए हैं। मिट्टी के चूल्हे की जगह अब गैस, माइक्रोवेब, इंडक्शन आदि ने ले ली है, लेकिन मिट्टी से बने चूल्हे का स्वाद किसी भी खाने में नहीं है।

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आज के इस आधुनिकता के इस युग एवं भागदौड़ की जिंदगी में व्यक्ति भोजन के रूप में खाने वाले खाद्य पदार्थ, व्यंजनों में जीभ के स्वाद एवं शरीर के स्वास्थ्य को पूरी तरह से भूल चुका है। बड़े बुजुर्गों की कहावत होती थी कि जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन,जैसा पियोगे पानी, वैसी होगी वाणी। जैसा होगा जीवन में सदाचार वैसे ही बनेंगे जीवन में विचार, लेकिन आज लोग बडेÞ बुजुर्गों की कहावत को शहरी क्षेत्र में नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्र में भी लोग पूरी तरह से भूल चुके हैं।

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तभी तो आज ग्रामीण क्षेत्र में पर्याप्त र्इंधन एवं स्वच्छ पानी उपलब्ध होने के बाद भी, र्इंधन से चूल्हे पर रोटी पकाने की जगह गैस पर रोटी पकाने एवं हैंडपंप का शुद्ध पेयजल पीने की जगह आरओ का पानी पीने को मानो आदी हो चुका है। जिसके चलते व्यक्ति के जीवन में काफी बदलाव आ चुका है। जिसमें गैस चूल्हे पर कच्ची पकी सिकी रोटी के खाने से जहां पेट में गैस आदि की समस्या से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

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कुछ दशक पहले तक खाना पकाने की बात पर सबसे पहले सौंधी-सौंधी खुशबू बिखेरता मिट्टी का वो चूल्हा याद आता था, जिसे हमारी दादी-मां हर रोज लीप कर नए जैसा बना देती थीं। जैसे-जैसे तकनीक ने तेजी से प्रगति की, साधारण चूल्हे की जगह वन-टच कुकिंग रेंज ने ले ली है। हालांकि, अब भी कुछ ग्रामीण घरों में मिट्टी के चूल्हों ने अपनी जगह बनाई हुई है। इन्हें देख बहुत से लोगों को अपना बचपन याद आ जाता है।

चूल्हे की रोटी जिसने खाई, वो ही जाने

मिट्टी के चूल्हे पर बना खाना कितना स्वादिष्ट होता है, इसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता। क्योंकि स्वाद को चखा जाता है, महसूस किया जाता है, लेकिन जिन लोगों ने मिट्टी के चूल्हे पर बना खाना खा रखा है, वे इसके स्वाद को भलीभांति जानते हैं।

स्वाद रखता है बरकरार

मिट्टी के चूल्हे पर बने खाने में खाद्य पदार्थों का प्राकृतिक स्वाद बना रहता है। खासतौर पर अगर इस पर कुकिंग के दौरान मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाए। विशेषज्ञ भी इस बात को मानते हैं कि मिट्टी के बर्तनों में बना खाना ज्यादा सेहत से भरपूर होता है। क्योंकि इन बर्तनों में सब्जी और अनाज को पर्याप्त नमी मिलती है।

पौष्टिकता रहती है बरकरार

मिट्टी के चूल्हे पर बनने वाले खाने पर लगातार तेज आंच नहीं पड़ती है। धीमी आग पर धीरे-धीरे पकने से इस भोजन के पोषक तत्व बने रहते हैं। जिससे सेहत को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है।

इन रोटियों का जवाब नहीं

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि गाय के गोबर से बने कंडों के बीच मिट्टी के चूल्हे में सिकी रोटियों के स्वाद का कोई तोड़ नहीं। आप खाएंगे, तो खाते रह जाएंगे। साथ ही इस पर बनी सब्जी या दाल में जो स्वाद आता है, वह लजीज और लाजवाब होता है।

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