Wednesday, June 25, 2025
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सहारनपुर में भाजपा के लिए होंगी भयंकर चुनौतियां

यहां पूरी तरह कभी नहीं खिल सका भाजपा का कमल

सन 2007 व 12 में फकत एक ही सीट पर करना पड़ा था संतोष


अवनीन्द्र कमल |

सहारनपुर: निकट भविष्य में सूबे में होने वाले विधान सभा चुनावों को लेकर सत्तानशीं भाजपा कच्ची गोली कतई नहीं खेलना चाहती। अन्य दलों की तुलना में भाजपा सांगठनिक तौर पर कसरत में कसर बाकी नहीं लगा रही। लेकिन, पश्चिम के महत्वपूर्ण जिलों में शुमार सहारनपुर में भाजपा का कमल पूरी तरह तो कभी नहीं खिल सका। इस बार भी भाजपा के लिए सहारनपुर में पनघट की डगर बहुत आसान नहीं होगी। वैसे भी जिला पंचायत चुनावों के नतीजों से विधानसभा चुनावों का आकलन करना समीचीन नहीं होगा। फिलवक्त, जनपद सहारनपुर में विधानसभा की सभी सीटों पर भाजपा के सूरमाओं को दो-दो हाथ करना होगा।

अगले बरस होने वाले चुनावों को लेकर भाजपा बहुत संंजीदा है। अगड़ो-पिछड़ों, अतिपिछड़ों के साथ दलित मतदाताओं को साधने के लिए भाजपा अन्य दलों की तुलना में कुछ ज्यादा ही जोर-आजमाइश कर रही है। लेकिन, सपा और रालोद की संभावित सियासी दोस्ती और भाकियू समेत अन्य किसान संगठनों की भाजपा से नाराजगी के लक्षण साफ नजर आने लगे हैं। हालांकि, भाजपा ने सहारनपुर की खिदमत में कमी नहीं छोड़ी है। विश्वविद्यालय स्थापना और दिल्ली से सहारनपुर तथा शाकुंभरी देवी सिद्धपीठ तक हाईवे की सौगात कोई मामूली बात नहीं है। बावजूद अतीत इस बात का गवाह है कि सहारनपुर में कमल पूरी तरह कभी नहीं खिला।

अगर सन 2017 के ही चुनाव को लें तो भाजपा अपनी पारंपरिक सीट (सदर) पर मात खा गई। नकुड़ सीट पर भाजपा को धर्म सिंह सैनी के रूप में विजय मिली लेकिन, यह उनकी व्यक्तिगत जीत थी न कि पार्टी की। धर्म सिंह बसपा से आए थे और किला फतह कर गए। गंगोह सीट पर प्रदीप चौधरी जीते थे। यह भी उनकी व्यक्तिगत जीत थी। प्रदीप कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे।

बाकी देवबंद और रामपुर सीट पर भाजपा प्रत्याशियों की जीत जरूर हुई। लेकिन, बेहट और देहात सीट पर भाजपा को पराजय की पीड़ा से गुजरना पड़ा। अब थोड़ा और पीछे चलकर देखें तो सन 2012 के चुनाव मेें भाजपा को सहारनपुर सदर सीट पर राघव लखन पाल शर्मा के रूप में जीत मिली थी। बाकी अन्य सभी सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को लड़खड़ाते हुए पाया गया।

गंगोह सीट पर शशिबाला पुंडीर, नकुड़ सीट पर मेलाराम पंवार, बेहट सीट पर अजय कुमार को हार का सामना करना पड़ा। इसी तरह देवबंद, रामपुर और नकुड़ तथा देहात सीट पर भी कमल मुरझाया रहा। सन 2007 के चुनाव में भी भाजपा केवल सदर सीट पर विजयी हुई थी। सदर सीट पर दरअसल, समीकरणों का भाजपा को सहारा मिलता रहा है। इस बार सदर सीट पर पूर्व विधायक राजीव गुंबर की प्रबल दावेदारी है। दरअसल, सदर सीट पंजाबी कोटे की ही रही है।

आजादी के बाद जब भी चुनाव हुए ज्यादातर पंजाबी समाज से ही प्रत्याशी इस सीट पर विजयी रहे। और तो और पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा का जब पूरे सूबे में धूम-धड़ाका चला तो सहारनपुर में राघव लखन पाल चुनाव हार गए। सदर विस क्षेत्र को छोड़कर अन्य विधानसभा क्षेत्रों में उन्हें पराजित पाया गया। फिलहाल, भाजपा पूरे सूबे में 325 सीटें लाने का दावा कर रही है।

डिप्टी सीएम के शव मौर्य जनसभाओं में इस बात को जोर-शोर से कह भी रहे हैं। लेकिन, राह आसान हरगिज नहीं है। भाजपा सरकार में महंगाई, बेरोजगारी, गन्ना भुगतान, कृषि कानून जैसे मुद्दों पर गांवों में विरोध के स्वर मुखर हैं। इस हाल में ऊंट किस करवट बैठेगा, अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता।

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