- सपा-बसपा के मुस्लिम भाजपा का ब्राह्मण चेहरा
- 2002 के बाद से वोटरों ने हर बार बदला विधायक
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: शहर विधानसभा सीट पर इस बार चुनावी जंग दिलचस्प होने की उम्मीद है। यहां कांग्रेस को छोड़कर सभी दलों ने अपने रणबांकुरों को मैदान में उतार दिया है। इस सीट पर भाजपा ने जहां एक बार फिर ब्राह्मण कार्ड खेला है। सपा ने वर्तमान विधायक को ही टिकट देकर अंसारी पर भरोसा जताया। वहीं, इस बार बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी पर शहर में दांव लगाकर कुरैशी बिरादरी को साधने की कोशिश की है।
बता दें कि, वर्ष 2002 के बाद से शहर सीट का इतिहास हर बार प्रतिनिधि बदलने का रहा है। 2002 में यहां से भाजपा के दिग्गज लक्ष्मीकांत वाजपेयी विधायक चुने गए थे। 2007 में भाजपा के लक्षमीकांत को हाजी याकूब कुरैशी ने निर्दलीय मैदान में उतरकर करीब एक हजार वोटों के अंतर से हरा दिया था। परिसीमन के बाद पहली बार हुए वर्ष 2012 के चुनाव में इस सीट पर फिर से बाजी लक्ष्मीकांत वाजपेयी के हाथ लगी और वह चौथी बार इस सीट से चुनकर विधानसभा पहुंच गए।
इस बार यहां दूसरे स्थान पर सपा के रफीक अंसारी रहे, मगर हार-जीत का अंतर करीब छह हजार रहा था। इसके बाद 2017 के चुनाव में फिर से रफीक अंसारी और लक्ष्मीकांत का मुकाबला हुआ, मगर इस बार सपा के अंसारी ने वाजपेयी को मात देकर पहली बार जीत दर्ज की थी। रफीक की जीत की बड़ी वजह कांग्रेस से सपा का गठबंधन और किसी दूसरे मुस्लिम प्रत्याशी का चुनाव मैदान में नहीं होना था। इस बार शहर की सीट के सियासी हालात गत चुनाव से अलग हैं। सपा के रफीक अंसारी के मुकाबले पर बसपा ने कुरैशी बिरादरी के दिलशाद शौकत को उतार दिया है।
भाजपा ने अपने हिंदुत्ववादी चेहरे कमलदत्त शर्मा को टिकट देकर शहर के चुनावी माहौल को गरमा दिया, जिससे चुनाव दिलचस्प हो गया है। कांग्रेस उम्मीदवार के नाम का ऐलान होना अभी बाकी है। यहां दो मुख्य दलों के चेहरे एक वर्ग से मैदान में होने से उनकी वोटों में बंटवारा होने के आसार हैं। अगर ऐसा हुआ तो इसका लाभ भाजपा प्रत्याशी को मिल सकता है। गौरतलब है कि, 2012 के चुनाव में ऐसा ही माहौल शहर सीट का बना था। कांग्रेस के यूसुफ कुरैशी और सपा के रफीक अंसारी चुनाव मैदान में होने से यहां का नतीजा बीजेपी प्रत्याशी लक्ष्मीकांत वाजपेयी के पक्ष में चला गया था। इस बार भी शहर में रोमांचक मुकाबला होने की संभावना बन रही है।
प्रत्याशी चयन में कांग्रेस साबित हो रही फिसड्डी
जिले में दूसरे दलों के मुकाबले प्रत्याक्षी चयन की रेस में कांग्रेस फिसड्डी साबित हो रही है। भाजपा, बसपा और गठबंधन जहां सभी सातों सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर चुका है, वहां कांग्रेस अभी तक दो ही सीटों पर अपने प्रत्याशी का ऐलान कर पाई है जबकि नामांकन करने के दो दिन शेष बचे हैं। कांग्रेस में अभी पांच सीटों के संभावित उम्मीदवार नामों की घोषणा होने का इंतजार कर रहे हैं।
बता दें कि, कांग्रेस ने अपनी पहली सूची में मेरठ जिले की सात में दो सीटों पर अपने प्रत्याशी के नामों का ऐलान किया था। इसमें हस्तिनापुर सुरक्षित सीट से फिल्म अदाकारा अर्चना गौतम और किठौर विधानसभा से डा. बबिता गुर्जर का नाम शामिल था। 15 जनवरी को आई कांग्रेस की पहली सूची के बाद अभी तक दूसरी सूची जारी नहीं हुई है जबकि जिले की मेरठ शहर, मेरठ कैंट, सरधना, सिवालखास और मेरठ दक्षिण सीट पर नामों की घोषणा होनी है। अब नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए दो दिन का समय बचा है।
21 जनवरी को पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया पूर्ण हो जाएगी और पहले ही चरण में मेरठ जिले में मतदान होना है। उधर, भाजपा ने सातों सीट पर पहली ही सूची में अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की थी। इसके बाद बसपा और गठबंधन सपा-रालोद भी सभी सीट पर अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर चुका है, मगर कांग्रेस इस रेस में सभी दलों से पीछे छूट गई है। पार्टी उम्मीदवारों की घोषणा में देरी से दावेदारों में हलचल है।
सरधना में इस बार वजूद बचाने की लड़ाई
सरधना विधान सभा का चुनाव इस बार वजूद बचाने का चुनाव होगा। क्योंकि इस विधान सभा सीट से भाजपा के टिकट पर संगीत सोम दो बार से विधायक चुने गए हैं। जबकि अतुल प्रधान दो बार से सपा के टिकट पर हार रहे हैं। इस बार दोनों के लिए यह वजूद तय करने का चुनाव है।
हालांकि इस विधानसभा में कई पूर्व विधायक और राजनीति में पकड़ रखने वाले लोगों की भी इस बार प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। सरधना का चुनाव हर बार रोमांचक होता है, लेकिन इस बार यहां मुकाबला काफी दिलचस्प होगा। क्योंकि इस बार इस सीट पर किसी बड़ी पार्टी ने मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा है। सपा ने अतुल प्रधान, भाजपा ने संगीत सोम और बसपा ने संजीव धामा को फिलहाल प्रत्याशी घोषित किया है, लेकिन इस बार चुनाव बेहद रोमांचक तो होगा ही साथ ही प्रत्याशियों पर अपनी प्रतिष्ठा बचाने का भी दबाव होगा।
इस सीट पर बसपा के टिकट पर पूर्व विधायक चौधरी चंद्रवीर सिंह विधायक बने और वह जाट बिरादरी एवं पूर्व विधायक हरपाल सैनी अपनी बिरादरी सैनी समाज की वोटों पर अच्छी खासी पकड़ रखते हैं। हालांकि हरपाल सैनी पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ सपा ज्वाइन कर चुके हैं, लेकिन चंद्रवीर सिंह भी इस बार सपा को ही चुनाव लड़ाने के मूड में है, क्योंकि चंद्रवीर सिंह की बेटी मनीषा अहलावत का गठबंधन में कैंट विधानसभा सीट से टिकट हुआ है। जिसके मद्देनजर इस बार चंद्रवीर सिंह भी अतुल प्रधान को चुनाव लड़ाएंगे। अब देखना है कि इस सीट पर किसका वजूद तय होता है। क्योंकि इस बार जहां प्रत्याशियों की साख दांव पर लगी है। वहीं, पूर्व विधायकों की भी इस बार पार्टी के प्रत्याशी को जिताने की अग्नि परीक्षा है।