आयरलैंड और जर्मनी की गैर-सरकारी संस्था ‘कंसर्न वर्ल्ड वाइड एंड वेल्ट हंगर हिल्फ’ द्वारा वैश्विक स्तर पर भूखमरी को मापने वाली 2022 की रिपोर्ट ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022’ पिछले दिनों जारी की गई। इस अनुक्रमणिका में कुल 121 देशों को शामिल किया गया है। बड़े आश्चर्य की बात है कि ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार, जो भारत सकल घरेलू उत्पाद अर्थात (जीडीपी) के मामले में ब्रिटेन को पीछे छोड़ता हुआ विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है,और अब चीन को पीछे छोड़ने की दिशा में अग्रसर है। वही भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार 107वें नंबर पर है? ग्लोबल हंगर इंडेक्स वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भूख को व्यापक रूप से मापने और उन पर नजर रखने का एक माध्यम है। यह विशेषकर कुपोषण, शिशुओं में भयंकर कुपोषण, बच्चों के विकास में रुकावट और बाल मृत्यु दर जैसे चार संकेतकों के मूल्यों पर मापा जाता है। इस रिपोर्ट के अनुसार जिन 44 देशों की स्थिति अत्यंत खतरनाक स्तर पर है उन में भारत भी शामिल है। जबकि कुल 17 शीर्ष देश ऐसे भी हैं जिनका स्कोर 5 से भी कम है। ऐसे देशों में चीन, तुर्की, कुवैत, बेलारूस, उरुग्वे और चिली जैसे देशों के नाम शामिल हैं। हालांकि भारत सरकार की तरफ से इस रिपोर्ट को भूख को मापने का गलत तरीका बताते हुए यह कहा गया है कि इस रिपोर्ट के द्वारा भारत की छवि लगातार खराब किए जाने की कोशिश एक बार फिर नजर आई है कि एक राष्ट्र के रूप में वह अपनी जनसंख्या की खाद्य सुरक्षा और पोषण की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता है। भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि भारत की प्रति व्यक्ति आहार ऊर्जा आपूर्ति हर साल बढ़ रही है और यह खाद्य एवं कृषि संगठन की फूड बैलेंस शीट पर आधारित है। कई वर्षों से देश में प्रमुख कृषि वस्तुओं का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है, अत: देश के अल्पपोषण के स्तर में वृद्धि होने का कोई कारण नहीं है। सरकार ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी कई आवश्यक कदम उठाए हैं, जिनमें दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम भी शामिल है। कोविड-19 महामारी के दौरान आर्थिक परेशानियां खड़ी होने के कारण सरकार ने मार्च 2020 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के तहत 80 करोड़ लाभार्थियों को मुफ़्त अनाज दिया।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 3.91 लाख करोड़ की खाद्य सब्सिडी के बराबर 1121 लाख मीट्रिक टन अनाज मुहैया कराया। अब इस योजना को दिसंबर 2022 तक के लिए बढ़ा भी दिया गया है। सरकार के अनुसार आंगनवाड़ी सेवाओं के माध्यम से कोविड महामारी के बाद से छह साल तक के 7.71 करोड़ बच्चों और 1.78 करोड़ गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पूरक पोषण मुहैया कराया गया। प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना के तहत 1.5 करोड़ रजिस्टर्ड महिलाओं को उनके पहले बच्चे के जन्म पर 5,000 रुपये की सहायता राशि दी गई।
जाहिर है, जहां सरकार इस रिपोर्ट को एक गलत, पूर्वाग्रही तथा पर्याप्त सैम्पल इकट्ठे किए बिना तैयार की गई रिपोर्ट बताकर खारिज कर रही है वहीं अनेक अर्थशास्त्री, आलोचक विशेषकर विपक्षी दलों के लोग इसी रिपोर्ट के आधार पर सरकार के कामकाज के तरीकों पर सवाल उठा रहे हैं। विपक्षी नेता पूछ रहे हैं कि माननीय प्रधानमंत्री कुपोषण, भूख और बच्चों में कुपोषण जैसे असली मुद्दों को कब देखेंगे? कुछ विपक्षी नेता तो इसी रिपोर्ट के सन्दर्भ में यहां तक कह रहे हैं कि मोदी सरकार भारत के लिए विनाशकारी है और साढ़े आठ सालों में भारत को इस अंधेरे के युग में लाने के लिए सरकार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए। निश्चित रूप से यदि रैंकिंग में भारत का स्थान अफगानिस्तान की ही तरह पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों से भी ऊपर होता शायद तब भी भारत को इस रिपोर्ट को खारिज करने की जरूरत महसूस न होती। परंतु इंडेक्स में भारत को अफगानिस्तान के अतिरिक्त अन्य सभी दक्षेस देशों में सबसे नीचे दिखाकर भारत सरकार की कारगुजारियों व उसकी उपलब्धियों को कटघरे में जरूर खड़ा कर दिया है। सरकार जहां राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के तहत 80 करोड़ लाभार्थियों को मुफ़्त अनाज दिये जाने का दावा करती है वहीं इसी योजना का दूसरा पहलू यह भी है कि देश के वही 80 करोड़ लाभार्थी सरकार द्वारा दिये गए मुफ़्त अनाज के मोहताज भी थे। क्या अनाज वितरण को सरकार की उपलब्धि माना जाए? याद कीजिये आठ वर्ष पूर्व राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनरेगा योजना का मजाक उड़ाते हुये कहा था कि मनरेगा बंद करने की गलती मत करो। क्योंकि यह कांग्रेस की विफलता का जीता-जागता स्मारक है। और मैं इसकी विफलता का गाजे-बाजे के साथ जोर-शोर से इसकी नाकामियों का ढोल पीटूंगा।
ठीक उसी तरह मुफ़्त अनाज वितरण योजना और फिर इन्हीं गरीबों को ‘लाभार्थी’ की श्रेणी में डालकर नया वोट बैंक तैयार करना भी क्या सरकार की विफलता का प्रतीक नहीं है? हां, रोजगार, महंगाई, शिक्षा, भुखमरी, कुपोषण से अलग सरकार ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के अपने कथित एजेंडे को जरूर पूरी क्षमता के साथ आगे बढ़ा रही है। यह जरूर दशार्ना चाहती है कि देश में ऐसी धर्म परायण सरकार पहले कभी नहीं आई। गोया भूखे भजन नहीं होय गोपाला-ले तेरी कंठी ले तेरी माला जैसी प्रचलित कहावत के विपरीत सरकार भूखे पेट भजन कराने की कोशिश में लगी हुई है।