Home संवाद फ्रांस में उदारवाद की विजय !

फ्रांस में उदारवाद की विजय !

फ्रांस में उदारवाद की विजय !
PARIS, FRANCE - APRIL 24: France's centrist incumbent president Emmanuel Macron adresses voters in front of the Eiffel Tower after beating his far-right rival Marine Le Pen for a second five-year term as president with 58,8% votes on April 24, 2022 in Paris, France. Emmanuel Macron and Marine Le Pen both qualified on Sunday April 10th for France's 2022 presidential election second round held today, on April 24. This is the second consecutive time the two candidates face-off in the final round of elections. (Photo by Aurelien Meunier/Getty Images) *** BESTPIX ***

 

Samvad 29

 


भारतमित्र, मोदी के यार, हिंद की वायुसेना को राफेल लड़ाकू वायुयान देनेवाले, इमैनुअल मैक्रोन के दोबारा फ्रांस के राष्ट्रपति चुने जाने से यूरोप से दक्षिणपंथी खतरा समाप्त हो गया। विगत दिनों में यह स्पष्ट हो गया था जब तटवर्ती तमिलनाडु, पुदुचेरी तथा कराईकल तटों पर सदियों से बसे अप्रवासी फ्रेंच वोटरों ने 24 अप्रैल 2022 को जाहिर कर दिया था कि उन्होंने उदारवादी दि रिपब्लिक पार्टी के प्रत्याशी मैक्रोन  को अपना वोट दिया है। ये फ्रांसीसी नागरिक समझते हैं कि उनकी जन्मभूमि भारत को लाभ कहां से होगा।

विकल्प था नेशनल फ्रंट, धुर दक्षिणपंथी पार्टी की महिला उम्मीदवार मेरीन ली पेन का समर्थन करने का तात्पर्य था कि कट्टरता का पक्षधर बनना। गैर यूरोपीय फ्रेंच नागरिक इसके खिलाफ थे। लीपेन हिजाब तथा बुर्का पर पूरी पाबंदी चाहतीं हैं।

अरब अफ्रीका के मुसलमानों को फ्रांसीसी नागरिकता के लीपेन विरुद्ध रहीं है। कारण यही हैं कि पश्चिम यूरोप में सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या का देश फ्रांस है। तीन दशक पूर्व लीपेन के पिता ज्यां लीपेन उससे भी कहीं कठोर इस्लाम विरोधी रहे। ठीक दो दशक बीते (अप्रैल 2002) के चुनाव में फ्रांस के राष्ट्रपति लीपेन ने उदारवादी जेकस शिराक को चुनौती दी थी। कारण कई थे। मानवीय तथा रहमदिली।

वृद्ध (73 वर्ष) ज्यां लीपेन की घोषणा थी कि विदेशी (अधिकतर अरब मुसलमान) जन के फ्रांस जन्मे शिशुओं को नागरिकता न दी जाये। उत्तर अफ्रीका (खासकर अलजीरिया, सोनेगल, सूडान, बुकीर्ना फासो,बेनिन आदि) से आये इस्लामियों को नागरिकता कदापि न दी जाये। अत: राज्य सहायता के लाभार्थी ये विदेशी नहीं हो पायेंगे। लीपेन मुसलमानों के साथ यहूदियों के भी खिलाफ थे। उन्होंने याद दिलाया था कि जब एडोल्फ हिटलर ने फ्रांस पर कब्जा किया था|

और यहूदियों का संहार किया था तो इन अरब मुसलमानों ने फ्रांस की सड़कों पर खुले आम जलसा मनाया था और नमाज अदा की थी। नाजी जर्मनी द्वारा यहूदियों के वध का स्वागत किया था हालांकि लीपेन दोनों (यहूदी तथा मुसलमान) को फ्रांस से निकाल देना चाहते थे।

तब विजयी राष्ट्रपति जेकस शीराक ने सार्वजनिक तौर पर लीपेन के साथ टीवी डिबेट (2012) में भाग लेने से से इनकार कर दिया था। ‘मैं कठोर कटुता भरी विचारधारा के समर्थक इस प्रतिद्वंद्वी के साथ दिखना नहीं चाहता हूं।’ तुलना में इमेनुअल मैक्रोन  ने अपने देश द्वारा उत्तर अफ्रीका में स्वाधीनता प्रेमियों की हत्या के लिये (जलियांबाग माफिक) क्षमा याचना (4 मार्च 2०21) की थी। फ्रेंच उपनिवेशवादी पुलिस द्वारा (23 मार्च 1957) हत्या के करीब बासठ साल बाद। उनकी पुत्री गत रविवार को पराजित हो गयी। अत: मैक्रोन की राय में उनका जनतांत्रिक राष्ट्र बच गया।

इस बार के आम चुनाव में मैक्रोन ने एक मुद्दा और उठाया था। उनकी हरीफ मेरीन लीपेन रुसी तानाशाह व्लादीमीर पुतीन के सखा तथा समर्थक हैं। मैक्र ोन लगातार यूक्रेन के पक्षधर हैं तब अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा रुस पर फौजी कार्रवाही चाहते हैं।

इसीलिए भारत से इस पुनर्निवार्चित राष्ट्रपति मैक्रोन  के रिश्ते का विवरण आवश्यक है, बेहतर जानकारी हेतु। गणतंत्र दिवस (26 जनवरी 2016) पर मैक्रोन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आमंत्रण पर मु?य अतिथि बनकर दिल्ली आये थे। उन्हें याद रहा कि किस प्रकार भारतीयों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया था।

पिछली बार मैक्रोन  भारत आये थे 9-12 मार्च 2018 जब वार्ता द्वारा पारंपरिक आर्थिक संबंधों को मजबूती मिली थी। विषय था सैन्य, आंतरिक सुरक्षा, ऊर्जा, आतंकवादी से लड़ने, मौसम परिवर्तन, युवा मसले आदि। फ्रांस जो विश्व की सांतवीं अर्थ व्यवस्था है, ने भारत में ग्यारह अरब डालर निवेश किया हैं। लगभग हजार फ्रांसीसी कंपनियां इसमें शिरकत कर रहीं हैं।

इसके अलावा फ्रांस संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्य बनाना चाहता है। फिलहाल रक्षा आयुधों में फ्रांस भारत की बड़े पैमाने पर मदद कर कर रहा है। नये दौर में राष्ट्रपति पद पर दोबारा आसीन होने के बाद मैक्र ोन चीन तथा रुस की आक्र मकता के मद्दे नजर भारत से संबंधों में सामीप्य को बेहतर बनायेगा।

फ्रांस के हाल ही के चुनाव में इस्लामिक कट्टरपंथ और हिजाब बेहद अहम मुद्दा रहा। मैक्रोन  का रुख कुछ नरम है तो ली पेन सीधे हिजाब पर रोक की मांग करती हैं। कोविड के दौर में मैक्रोन  की लोकप्रियता कुछ कम हुई मगर इससे वह कमजोर नहीं हुए। आतंकवाद पर मैक्रोन  सख्त हैं और चाहते हैं कि हथियारों को लेकर अमेरिका पर यूरोप अपनी निर्भरता कम करे।

वह फ्रांस को नंबर एक एटमी ताकत बनाना चाहते हैं। मैक्रोन  का चुनाव में अजेंडा अर्थव्यवस्था सुधार और सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित था। वहीं ली पेन घोर राष्ट्रवादी नेता हैं। ली पेन रुस की भी करीबी मानी जाती हैं और उनका कहना है कि युद्ध की समाप्ति के बाद रुस से अच्छे संबंध बन सकते हैं। भारत को परख कर नीति तय करनी होगी।

के. विक्र म राव


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