Thursday, March 28, 2024
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विश्वगुरु भारत में गुरुओं की स्थिति

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nirmala Raniगुरु, शिक्षक अथवा अध्यापक का नाम सामने आते ही प्रत्येक विद्यार्थी का शीश उनके आदर में सम्मान से झुक जाता है। आज दुनिया का कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी बड़े से बड़े व अति महत्वपूर्ण पद पर विराजमान क्यों न हो उसके जीवन में शिक्षा और ज्ञान की ज्योत जलाने वाला और कोई नहीं बल्कि केवल शिक्षक ही है। यह सच है कि वर्तमान दौर में अन्य क्षेत्रों की ही तरह शिक्षा क्षेत्र का भी ह्रास हुआ है। महंगाई, आर्थिक व सांसारिक जरूरतों आदि ने गुरुओं को भी अपनी आय से भी अधिक धन कमाने के लिए बाध्य किया है। किसी समय में अध्यापकों द्वारा निजी रूप में पढ़ाई जाने वाली ट्यूशन में शामिल होने वाले बच्चों को कमजोर छात्र के रूप में देखा जाता था। धनवान परंतु पढ़ाई में कमजोर बच्चे ही ट्यूशन का सहारा लिया करते थे। परंतु अब तो ट्युशन मानो अनिवार्य सा हो गया है। उधर दशकों से सरकारों का रवैय्या भी शिक्षकों के प्रति निराशाजनक व गैर जिम्मेदाराना ही रहा है। हमेशा से हम देखते आए हैं कि देश में होने वाले लोकसभा, विधान सभा अथवा स्थानीय जिला परिषदीय या नगरीय कोई भी चुनाव हों, ताजातरीन कोविड या इसके पूर्व के टीकाकरण अभियान हों, जनगणना जैसा दर-दर घूमने वाले जटिल कार्य हों या अब नई-नई स्कीम्स के तहत बच्चों के स्कूल्स में ही जलपान या भोजन का प्रबंध, या प्रधानमंत्री की कार्यक्रम मन की बात को स्कूली बच्चों तक पहुंचाने का व्यवस्थित काम, अक्सर इन जैसे अनेक कार्यों में सरकार शिक्षकों को उलझाये रखती है।

इसका असर बच्चों की पढ़ाई पर होता है जो आगे चलकर इन्हीं बच्चों के भविष्य को भी प्रभावित करता है। सरकार के आदेश मानने को बाध्य अध्यापकों का अनैच्छिक रूप से किसी भी ऐसे काम में लगाने से उनका मनोबल भी गिरता है। यह देश का दुर्भाग्य है कि शिक्षण की डिग्रियां प्राप्त गोविंद (ईश्वर) तुल्य गुरु को सरकार के अशिक्षित व राजनैतिक पूर्वाग्रही नेताओं व मंत्रियों द्वारा बनाए गए व बनाए जाने वाले कायदे कानूनों व निर्देशों का पालन करना पड़ता है। कई बार विभिन्न राज्यों में इन्हीं गोविंद (ईश्वर) तुल्य आंदोलनकारी गुरुओं को पुलिस की लाठियां खाते भी देखा गया है।

गुरु के रुतबे व इसकी महिमा को इस बात से भी समझा जा सकता है कि भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम साहब स्वयं यह चाहते थे कि उन्हें पूर्व राष्ट्रपति, मिसाईलमैन या वैज्ञानिक नहीं बल्कि ‘अण्णा यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर’ कहकर बुलाया जाए। कलाम साहब ने जहां राष्ट्रपति पद छोड़ने के अगले ही दिन छात्रों की क्लास ली, वहीं उनकी जिंदिगी का आखिरी दिन भी बच्चों की क्लास में ही गुजरा। लिहाजा शिक्षा व छात्रों के प्रति समर्पित सोच रखने के लिए राजनेताओं को कलाम साहब जैसा नहीं तो कम से कम ईमानदार व गंभीर तो होना ही पड़ेगा।

दिल्ली की केजरीवाल सरकार में और आम आदमी पार्टी के नेताओं में तमाम कमियां हो सकती हैं, परंतु शिक्षा के क्षेत्र में केजरीवाल सरकार ने जिस तरह के चमत्कारिक कार्य किए हैं उसकी अनदेखी करना पूर्वाग्रही या पक्षपाती होने के सिवा और कुछ नहीं। दिल्ली के सरकारी स्कूल्स को निजी स्कूल्स के बराबर ला खड़ा करना और कहीं कहीं तो उनसे भी बेहतर भवन, अध्यापक, प्रशिक्षक, मूलभूत सुविधाएं आदि देकर दिल्ली सरकार ने पूरे विश्व में एक आदर्श स्थापित किया है।

दिल्ली में शिक्षा के ढांचे को प्रभावी बनाने के लिए स्कूल भवन से लेकर, प्रयोगशालाएं, खेल ग्राउंड, प्रशिक्षित योग्य व समर्पित शिक्षक स्टाफ आदि सभी जरूरी चीजों का प्रबंध किया गया है। गरीब बच्चों को मुफ़्त शिक्षा का भी प्रबंध है। और अब पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद यहां भी शिक्षा के स्तर को भी दिल्ली की ही तर्ज पर और अधिक सुदृढ़ किए जाने की तैयारी शुरू हो चुकी है।

पिछले दिनों पंजाब राज्य के स्कूल्स के 36 प्रिंसिपल्स सिंगापुर से प्रशिक्षित होकर वापस आ चुके हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री ने यह घोषणा भी की है कि भविष्य में राज्य के शिक्षकों से बच्चों को पढ़ने के अतिरिक्त कोई भी दूसरा काम नहीं लिया जाएगा। आज देश के प्रत्येक राज्यों को कम से कम शिक्षा के क्षेत्र में आम आदमी पार्टी की सरकारों से सीख लेने की जरूरत है।

इसके लिए स्पष्ट नीति, पक्के इरादे के साथ साथ शिक्षा को प्राथमिकता के तौर पर महत्व देने की भी जरूरत है। आए दिन सरकारी स्कूल्स के बंद करने, शिक्षकों से दर-दर भटकने वाले काम कराने, निजी स्कूल्स को बढ़ावा देने, सरकारी स्कूल्स को अभावग्रस्त रखने, रिक्त स्थानों पर शिक्षकों की भर्ती न करने आदि जैसे भ्रष्ट फैसलों या शिक्षा व शिक्षित लोगों से भयभीत होने से तो सरकार व नेताओं की तुच्छ मानसिकता का ही पता चलता है।

कुछ राज्यों से यदि शिक्षा व सिलेबस संबंधी कुछ समाचार आते भी हैं तो वह भी स्कूलों में गीता पढ़ाने, कर्मकांडी पुरोहित का पाठ पढ़ाने, सूर्य नमस्कार करने जैसे विवादपूर्ण समाचार सुनाई देते हैं। जरूरत है देश के बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने की, उन्हें सांसारिक, वैज्ञानिक व भविष्य निर्माण संबन्धी शिक्षा देने के साथ साथ आत्म निर्भर बनाने वाली ऐसी शिक्षा देने की जो बच्चों के कैरियर निर्माण के साथ साथ देश को भी आगे ले जाने में सहायक हो।

कलाम साहब का यह कथन भी था कि शिक्षकों को अधिक से अधिक वेतन दिया जाना चाहिए और उनसे केवल शिक्षण संबन्धी काम भी लिया जाना चाहिए। परंतु सवाल यह है कि स्वयं को ‘विश्वगुरु की रेस में अग्रणी बताने वाले भारत’ में गुरुओं की वास्तविक स्थिति और सरकारों की शिक्षा,शिक्षक व शिक्षण संस्थाओं के प्रति उदासीनता को देखकर विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य की कल्पना आखिर कैसे की जाए?


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