- बाबा औघड़नाथ में शिवभक्तों ने जल के साथ थामे तिरंगे
- शहरभर में घुमकर शिवालयों में पहुंचे शिवभक्त
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: ये देश है वीर जवानों का…बाबा के अलबेले मस्तानों का। बाबा के भक्तों का क्या कहना…। आस्था के साथ भक्तों के सिर पर देशभक्ति भी खूब चढ़कर बोली। शहरभर में डीजे बजाकर देशभक्ति तरानों के साथ भक्ति-भजन पर झूम बाबा के भक्त शिवालयों में पहुंचे। इसके बाद जलाभिषेक कर परिजनों, बच्चों के साथ घर की राह पकड़ी।
अभेद्य किले में तब्दील रहे बाबा औघड़नाथ मंदिर में बच्चों, बुजुर्ग, महिलाएं और युवतियों ने आस्था में शीश नवाजा। बाबा के भक्तों ने एक कंधे पर जहां पतित पावनी गंगाजल रखा।वहीं, दूसरे हाथ में देश भी शान तिरंगा भी थामे रखा। लबों से एक बार बाबा के जयकारे निकले तो दूसरी बार में देशभक्ति को भी सलाम किया।
कैंट क्षेत्र केसरिया रंग से सरोबार रहा। बाबा के भक्त तिरंगे के साथ कदमताल कर कतारबद्ध आगे बढ़े। उधर, शहर में भी शिवभक्तों ने डीजों पर भजनों, भक्ति गीत के साथ देशभक्ति के भी तराने खूब गाए और नृत्य किया। आस्था के साथ बाबा के भक्तों ने देशभक्ति का भी जलाभिषेक किया।
मेले का रोमांच, टेटू का रहा क्रेज
कैंट क्षेत्र में शिवरात्रि का मेला भी लगा। मेले का भक्तों के साथ शहरवासियों ने आनंद लिया। मेले के रोमांच के बीच कांवडियों ने करतब भी दिखाए। वहीं, युवाओं ने खूब आस्था से ओतप्रोत टेटू गुथवाए।
सुहागिनों ने खूब खरीदा मेले से सिंदूर
कहा जाता है कि मेले या फिर मंदिरों में मिलने वाला सिंदूर बेहद शुभ होता है। इसलिए औघड़नाथ मंदिर परिसर के बाहर लगे मेले से सुहागिनों ने जमकर सिंदूर खरीदा।
भक्तों की भीड़ में अपनों की तलाश की जुगत
आस्था के सैलाब के बीच यूं तो बिछड़े बहुत और चंद मिनटों में मिल गए। मगर कुछ ऐसे रहे, जिन्हें घर-परिवार से दूर हुए महीनों बीत गए, मगर उनका कोई सुराग नहीं मिल सका। परिजनों ने बाबा भोलेनाथ का आशुतोष पर भक्तों की भीड़ में अपनों की तलाश की जुगत भिड़ाई। परिवार से बिछड़े लोगों के बाबा के द्वार पर पोस्टर लगाकर सुराग मिलने की जद्दोजहद की।
प्रशासनिक कैंप के निकट खोया-पाया केंद्र बनाया गया। दिन चढ़ा तो भक्तों का सैलाब भी बढ़ता गया। भक्तों की कतारबद्ध के बीच शहर, आसपास के ग्रामीणों, दूरदराज से आए कांवडियों संग नन्हें भोले-भोली भी रहे। केंद्र पर दोपहर कर 40 बच्चों का लाया गया जो भीड़ में गुम हो गए, लेकिन परिजनों की तलाश बच्चे मिलने केंद्र पर खत्म हो गई।
बाबा के द्वार पर टंगे भक्ति के बीच पोस्टर अपनों को खोने का दर्द साफ दिखा। अपनों की तलाश के लिए पोस्टर और बैनर का सहारा लिया गया। कहीं भक्तों की भीड़ में कोई शिवभक्त या शहरवासी इनका सुराग बता दे, लेकिन उम्मीद की किरण लिए परिजनों ने आस बधां रखी है।
आस्था की डगर पर ‘भोलों’ के जज्बे को सलाम
‘कब से उसको बुखार आया है, नाम उसने शमा बताया है, डॉक्टर कह रहे हैं अच्छी है, जब से गंगा का जल पिलाया है’। वरिष्ठ कवि डॉ. ईश्वर चंद ‘गंभीर’ की इन पंक्तियों में एक प्रकार से मानो गंगा जल की सारी की सार खूबियां ही बयां कर दी गई हों। बेशक इस बार इम्तेहान थोड़ा कठिन था। तेज बरसात और उफनती नदियों के चलते रास्ते भी कुछ दुश्वार थे। मौसम भी थोड़ा दगाबाज था।
और इन्ही सब के बीच प्राकृतिक आपदा का डर भी सता रहा था, लेकिन इन सब के बावजूद ‘आशुतोष’ के प्रति ‘भोलों’ की आस्था जरा भी न डिगी। कभी उमस का प्रचंड रूप तो कभी झमाझम बारिश के बीच भोलों की भक्ति ने आशुतोष का विश्वास जीत ही लिया। जैसे ही भोलों ने भगवान आशुतोष को हाजिरी का जल चढ़ाया तो मानों इंद्र देव भी आशुतोष के भक्तों की भक्ति में रमे नजर आए और हाजिरी के जलाभिषेक के समय आसमान से इन्द्र देव ने भी खुद अभिषेक में भाग लिया।
आस्था की डगर पर चलना हर किसी के लिए न तो आसान होता है और न ही सभी को नसीब होता है, लेकिन यह भी सच है कि जो भगवान शिव के सच्चे अराधक होते हैं, उन्हें इस डगर से कोई डिगा भी नहीं सकता। मौसम के मिजाज में इस बार कु छ तल्खी थी। दरअसल, धामों की अपनी अलग ही विशेषताएं होती हैं। वो हमेशा अपने भक्तों के विश्वास पर खरे उतरते हैं। बाबा औघड़दानी का वास हो या पुरामहादेव का आंगन या कोई भी अन्य शिवालय, शनिवार को सभी पर आस्था का सैलाब उमड़ा।
हाजिरी के जलाभिषेक से लेकर चतुर्दशी की तिथि पर हुए जलाभिषेक के दौरान लाखों मदमस्त शिव भक्तों ने भगवान शिव को सलामी देते हुए उन्हें अपनी भक्ति का अर्पण किया। उधर, बाला जी मन्दिर से लेकर ऋषभ एके डमी तक जो मेला लगा था। उसमें भी भारतीय संस्कृति के जयकारों की गूंज सुनाई दे रही थी। हाजिरी के जलाभिषेक के समय से ही पड़ रही रिमझिम बौछारें इस बात का संदेश दे रही थीं कि भोले के प्रति शिव भक्तों की भक्ति पर खुद इन्द्र को भी नाज है।
भगवान आशुतोष शिवभोले की धुन में मदमस्त हुई भोली
शिवरात्रि पर जलाभिषेक करने के लिए औघड़नाथ मंदिर में जहांकांवड़ियों में जोश दिख रहा था। वहीं, दूसरी ओर भोले की धुन में मदमस्त होकर जलाभिषेक करने के लिए जाती भोलियों पर भी आस्था का असर कुछ कम नहीं दिख रहा था। जहां कांवड़ मेले में महिला कांवड़ियां भी अपनी मुरादें पूरी होने पर कांवड़ लेकर बाबा का जलाभिषेक करने के लिए मंदिर परिसर में पहुंची थी।
वहीं, सावन माह में भोले बाबा के प्रति अपार भक्ति मन में भर नवविवाहिता और युवतियां भी जलाभिषेक के लिए काफी संख्या में मंदिर परिसर पहुंची और सोलह सोमवार का व्रत करने का प्रण ले अच्छा पति पाने की कामना की और बाबा के प्रति भक्ति दर्शाने के लिए भोलों के साथ ही भोलियां भी तरह-तरह के जतन कर भोलेश्वर को खुश करने की कोशिश में जुट गई।
मंदिर परिसर में छोटी बच्चियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं तक भोले की भक्ति में मदमस्त दिखाई दी और उनका जलाभिषेक करने के लिए मंदिर परिसर में लगी लंबी कतार में अपना नंबर आने का इंजतार करती रही। कोई पति की लंबी उम्र की कामना कर रही थी तो कोई पुत्र प्राप्ति के लिए बाबा से अरदास लगा रही थी।
बुलबुल ने बताया कि वह पूरे सावन महीने भोले बाबा का जलाभिषेक करती है ताकि घर में सुख शांति बनी रहे। बाबा सदैव अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। सरधना से भोले बाबा के दर्शन और जलाभिषेक करने पहुंची ऊषा ने बताया कि वह पूरे सावन माह एक समय अन्न ग्रहण कर बाबा को मनाने का प्रयास करती है। ताकि भोले बाबा उनके पूरे परिवार पर कृपा बनाए रखे और घर में सुख शांति बनी रहे।
औघड़नाथ मंदिर पर पति के साथ जलाभिषेक करने पहुंची निशा ने बताया कि यह शिवरात्रि शादी के बाद पहली बार पड़ी है और वह पुत्र की कामना लेकर भोले बाबा के दर्शन करने आई है। बुलबुल ने बताया कि वह अपने भाई की नौकरी की मन्नत के लिए हर सोमवार को भोले बाबा के दरबार में जलाभिषेक करने जाती है
और इस बार कावंड़ भी लेकर आई है, उनकी उम्र केवल 12 वर्ष है। निकिता ने बताया कि वह हर साल भोले बाबा के दर्शन के लिए मंदिर आती है और शिवरारात्रि का जलाभिषेक करती है। उनका कहना है कि भोले बाबा के दर्शन करने मात्र से ही सबके कष्ट दूर हो जाते हैं।