Friday, March 29, 2024
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हमने आपको सत्ता दी, और आपने…?

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PRABHUNATH SHUKLAभारत कोविड-19 संक्रमण को लेकर संकट काल से गुजर रहा है। यह महामारी इतनी भयंकर रूप लेगी इसकी कल्पना न तो कभी सरकारों को थीं और न नागरिकों को। हालांकि चिकत्सा विशेषज्ञों ने इसकी चेतावनी दे दी थी कि इसकी दूसरी लहर भी आ सकती है। अब तीसरी लहर के और अधिक भयानक होने की बात भी आ रही है। फिर सरकारों ने क्यों नहीं चेतीं। देश की 130 करोड़ जनता अब तक की सभी सरकारों से यह सवाल पूछ रही है कि हमने आपको सत्ता, रुतबा, अधिकार और सांविधानिक शक्तियां दीं, लेकिन आपने आजाद भारत में हमें क्या दिया? यह आप अपने गिरेबां में झांक कर देखें। जहां आॅक्सीजन और इलाज के अभाव में लाखों लोग दमतोड़ देते हैं, उस देश के नागरिक किस सत्ता और सरकारों पर गर्व करेंगे? देश में सबसे अधिक बदतर हालात स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर हुई है। न्याय व्यवस्था की अहमपीठ यानी अदालतों को सरकारों के खिलाफ तल्ख टिप्पणी करनी पड़ी। चिकित्सा सुविधा को लेकर सरकारों को कटघरे में खड़ा होना पड़ा।

सोशल मीडिया पर भुक्तभोगियों ने जिस तरह अपनी पीड़ा के वीडियो शेयर किए वह मरती हुई इंसानियत को बताने में काफी है। हमारा मकसद किसी सरकार को कटघरे में खड़ा करने का नहीं है, लेकिन सरकार क्यों है यह भी अहम सवाल है। हमारी स्वास्थ्य व्यस्था जिस तरह बदहाल है उसे देख कर तो यही लगता है कि हम दूसरे हिस्सों में चाहे जो प्रगति कर लिया हो लेकिन स्वस्थ्य सुविधाओं को लेकर अभी हमें बहुत कुछ करना होगा। फिलहाल हम यह नहीं कहते हैं कि स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास नहीं हुआ या सरकारों ने काम नहीं किया हमारा सवाल बस इतना है कि अगर सब कुछ हुआ है तो आॅक्सीजन और चिकित्सा सुविधओं के अभाव में लोगों की मौतें क्यों हुईं।

चिकित्सा सुविधा के अभाव में इंसान तो बेमौत मारे गए, लेकिन लाखों युवा और दूसरे लोग इस दुनिया से रुख्सत हो गए। उनकी मौत परिजनों को जिंदगी भर की टीस दे गई। क्योंकि उनकी बाकी बची हुई जिंदगी सरकारों और व्यवस्था की नाकामियों की वजह से आॅक्सीजन और इलाज के अभाव में खत्म हो गई। परिजनों के सपने खत्म हो गए, जीवन की उम्मींदे टूट गर्इं। निजी अस्पतालों में जिस तरह लूट और सरकारी अस्पतालों में जिस तरह लापरवाही की खबरें आर्इं वे शर्मसार करने वाली हैं। जिन भगवान स्वरूप चिकित्सकों के लिए देश की जनता ने तालियं और दीये जलाए थे उन्हीं में तमाम ने अपने कर्तव्य और नैतिकता को तिलांजलि दे दी।

हम सभी चिकित्सकों पर सवाल नहीं उठाते, लेकिन इस तरह की हरकत करने वाले बहुतायत में हैं, जिनकी वजह से देश और समाज शर्मसार हुआ। जिन पर हमें गर्व करना चाहिए उन्होंने इंसानियत को ताक पर रख दिया। सरकारों से यह सवाल तो जनता पूछेगी। क्योंकि आप नागरिक अधिकार की रक्षा क्यों नहीं की। जनता ने आपको चुना फिर आप उसकी उम्मीद पर खरा क्यों नहीं उतरे। आपने उसे क्या दिया? क्या सिर्फ सत्ता ही आपका धर्म और कर्म है। सरकारें निश्चित रुप से अपनी नैतिक जिम्मेदारी से नहीं बच सकतीं। सरकारों से कहीं न कहीं भूल हुई है, जिसकी भरपाई वे कभी नहीं कर सकतीं हैं। जिस तरह के कदम आज उठाए जा रहे हैं वे पहले क्यों नहीं उठाए गए। एक महामारी ने हमारी नीति, नैतिकता और व्यवस्था को नंगा कर दिया। जिस परिवार में जवान बेटा, बेटियां, पति और पत्नी मर गए क्या उनकी वेदनाएं हमें कभी माफ करेंगी। यह अपने आप में विचारणीय प्रश्न है।

विपक्ष आज सत्ता को कटघरे में खड़ा कर रहा है, लेकिन कल जब वे सत्ता में थे तो उन्होंने क्या किया इसका भी उन्हें हिसाब देना होगा। उन्हें भी अपने गिरेबान में झांकना होगा। बेगुनाह लोगों की मौत के लिए जितनी वर्तमान सरकारें जिम्मेदार और जवाबदेह हैं उससे कहीं अधिक विपक्ष है। क्योंकि अगर उनकी सरकारों ने स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर किया होता तो इस महामारी में शायद देश को यह पीड़ा न देखनी पड़ती। एक संप्रभु राष्ट्र की जनता ने आपको सत्ता सौंपी, लेकिन आपने उसे क्या दिया। हम उन्हें एक अदद अस्पताल और आॅक्सीजन की बॉटल तक उपलब्ध नहीं करा पाए। क्या कभी सरकारों ने इसका मूल्याकंन किया। हमने सिर्फ सत्ता के लिए लोगों को धर्म, जाति, और संप्रदाय में बांट कर सियासी उल्लू सीधा कर भावनात्मक शोषण किया। देश की जनता को हमने इस तरह उलझाए रखा कि वह कभी अपने अधिकार की बात ना करे। हमने नागरिक अधिकारों को भेंड़ बकरियों से भी कम समझा। नागरिकों को पीएमओ, सीएमओ और मंत्रीयों से गुहार लगानी पड़ी, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया, सबकुछ लुट गया।

देश की चिकित्सा व्यवस्था पर अदालतों ने किस तरफ की टिप्पणियां कीं वे भी किसी से छुपी नहीं हैं। आखिर यह सब क्यों हुआ और हो रहा है। हमारा सिस्टम आंखों पर पट्टी बांध गंधारी की भूमिका में क्यों बैठा रहा। श्मशान लाशों से पटता रहा। अंतिम संस्कार को लकड़ियां खत्म हो गर्इं। लाशों से गंगा अट गई। हम देखते रहे। सत्ता विपक्ष तो विपक्ष सत्ता पर आरोप लगता रहा, लेकिन दमतोड़ते लोगों को आॅक्सीजन नहीं उपलब्ध करा पाया। हम क्या इस तरह की घटनाओं से सबक लेंगे। क्या देश में अब तक सरकार नाम की संस्थाएं रहीं हैं, अगर रहीं हैं तो उन्होंने क्या किया। जब हम देश नागरिक प्राणवायु के लिए लड़ रहा हो और हम चुनावों में लगे हों क्या यही हमारा दायित्व है। क्या अदालतों की नसीहत के बाद ही हमारी नैतिकता और दायित्वबोध जागते हैं। अब तक की सरकारों को लिए यह बेहद शर्म की बात है। स्वास्थ्य सुविधाओं का सवाल अब भी हाशिए पर है। संक्रमणकाल में इस पर गंभीरता से मंथन होना चाहिए।


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