Sunday, June 29, 2025
- Advertisement -

मौसम का मिजाज चेतावनी है

SAMVAD


PUNKAJ CHATURVEDI 1मध्यभारत में महिलाओं के लोकप्रिय पर्व करवा चौथ पर दशकों बाद शायद देसा हुआ कि दिल्ली के करीबी इलाकों में भयंकर बरसात थी और चंद्रमा निकला नहीं। समझ लें भारत के लोक पर्व, अस्था, खेती-अर्थ तंत्र सभी कुछ बरसात या मानसून पर केंद्रित हैं और जिस तरह मानसून परंपरा से भटक रहा है, वह हमारे पूरे तंत्र के लिए खतरे की घंटी है। इस बार भारत में सर्वाधिक दिनों तक मानसून भले ही सक्रिय रहा हो, लेकिन सभी जगह बरसात अनियमितत हुई व निर्धारित कैलेंडर से हट कर हुई। भारत की समुद्री सीमा तय करने वाले केरल में बीते दिनों आया भयंकर जलप्लावन का ज्वार भले ही धीरे-धीरे छंट रहा हो, लेकिन उसके बाद वहां जो कुछ हो रहा है, वह पूरे देश के लिए चेतावनी है। देश के सिरमौर उत्तराखंड के कुमायूं अंचल में तो बादल कहर बन कर बरसे हैं, बरसात का गत 126 साल का रिकार्ड टूट गया, अभी तक कोई पचास लोग मारे जा चुके हैं, मकानों और अन्य संपादा के नुकसान का आकलन हो ही नहीं पाया है। यह कुदरत के ही मार है कि नैनीताल के माल रोड पर जल भराव हो गया और सभी झीलें उफान गई।

यह गंभीर चेतावनी है कि जिस पहाड़ के पत्थर और पानी हम अपने मन से उजाड़ रहे हैं, वे जलवायु परिवर्तन की वैश्विक मार के चलते तेजी से प्रतिकार कर रहे हैं यह किसी से छुपा नहीं हैं कि उत्तरांचल पर्यावरण के मामले में जितना वैविध्यपूर्ण है, उतना ही संवेदनशील है।

मौसम चक्र का अनियिमित होना, अचानक चरम मौसम की मार, तटीय इलाकों में अधिक और भयानक चक्रवातों का आना, बिजली गिरने की घटनाओं में इजाफा-यह बानगी है कि धरती के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी और उसके गर्भ से उपजे जलवायु परिवर्तन का भीषण खतरा अब दुनिया के साथ-साथ भारत के सिर पर सवार हो गया है।

अकेले अक्तूबर के पहले 21 दिनों में उत्तराखंड में औसत से 546 फीसदी अधिक बरसात हुई तो दिल्ली में 339 प्रतिशत। बिहार में 234, हरियाणा में 139 और राजस्थान में औसत से 108 फीसदी अधिक बरसात होना खेती के लिए तबाही साबित हुआ है।

इससे पहले जून-जुलाई, जो मानसून के लिहाज से महत्वपूर्ण महीना माना जाता है, आषाढ़ को ठीक बरसा लेकिन देश में औसत बारिश से 92 फीसदी कम पानी गिरा। सावन अर्थात अगस्त में स्थिति और खराब हुई और 1901 के बाद छठी बार इस साल अगस्त में सूखा महीना गया।

इस महीने में 24 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई। इस अवधि में जब शेष भारत में सूखे का खतरा मंडरा रहा था तो तो हिमालय का क्षेत्र जलमग्न हो उठा। जाहिर है कि अब बरसात का चक्र बदल रहा है और जलवायु परिवर्तन के छोटे-छोटे कारकों पर आम लोगों को संवेदनशील बनाना जरूरी है।

दुर्भाग्य है कि सरकारी सिस्टम ने इस पर कागजी घोड़े खूब दौड़ाए, लेकिन जमीनी हकीकत के लिए दिल्ली से सटे नोएडा-गाजियाबाद को लें जहां एक महीने से कूड़ा निस्तारण का काम रुका हुआ है। कूड़े को हिंडन नदी में डंप करने से लेकर चोरी-छिपे जलाने तक का काम जोरों पर है और यही ऐसे कारक हैं।

जलवायु परिवर्तन की मार को धार दे रहे हैं। यह केवल असामयिक मौसम बदलाव या ऐसी ही प्राकृतिक आपदाओं तक सीमित नहीं रहने वाला, यह इंसान के भोजन, जलाशयों में पानी की शुद्धता, खाद्य पदार्थों की पौष्टिकता, प्रजनन क्षमता से लेकर जीवन के उन सभी पहलुओं पर विशम प्रभाव डालने लगा है, जिसके चलते प्रकृति का अस्तित्व और मानव का जीवन सांसत में है।

यह तो सभी जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन या तापमान बढ़ने का बड़ा कारण विकास की आधुनिक अवधारणा के चलते वातावरण में बढ़ रही कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा है। हार्वर्ड टीएच चान स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ की ताजा रिपोर्ट बताती है कि इससे हमारे भोजन में पोषक तत्वों की भी कमी हो रही है। रिपोर्ट चेतावनी देती है कि धरती के तापमान में बढ़ोतरी खाद्य सुरक्षा के लिए दोहरा खतरा है।

आईपीसीसी समेत कई अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों में इससे कृषि उत्पादन घटने की आशंका जाहिर की गई है। इससे लोगों के समक्ष खाद्य संकट पैदा हो सकता है। लेकिन नई रिपोर्ट और बड़े खतरे की ओर आगाह कर रही है। दरअसल, कार्बन उत्सर्जन से भोजन में पोशक तत्वों की कमी हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार, कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी के कारण चावल समेत तमाम फसलों में पोषक तत्व घट रहे हैं।

इससे 2050 तक दुनिया में 17.5करोड़ लोगों में जिंक की कमी होगी, 12.2 करोड़ लोग प्रोटीन की कमी से ग्रस्त होंगे। दरअसल, 63 फीसदी प्रोटीन, 81 फीसदी लौह तत्व तथा 68 फीसदी जिंक की आपूर्ति पेड़-पौधों से होती है। 1.4 अरब लोग लौह तत्व की कमी से जूझ रहे हैं जिनके लिए यह खतरा और बढ़ सकता है।

शोध में पाया गया कि जहां अधिक कार्बन डाईआॅक्साइड की मौजूदगी में उगाई गई फसलों में तीन तत्वों जिंक, आयरन एवं प्रोटीन की कमी पाई गई है। वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में प्रयोग के जरिए इस बात की पुष्टि भी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्बनडाई आक्साइड पौधों को बढ़ने में तो मदद करता है, लेकिन पोषक तत्वों की मात्रा को कम कर देता है।

भारत के संदर्भ में यह तो स्पष्ट है कि हम वैश्विक प्रदूषण व जलवायु परिवर्तन के शिकार तो हो ही रहे हैं, जमीन की बेतहाशा जुताई, मवेशियों द्वारा हरियाली की अति चराई, जंगलों का विनाश और सिंचाई की दोषपूर्ण परियोजनाएं हैं। एक बार फिर मोटे अनाज को अपने आहार में शामिल करने, ज्यादा पानी वाली फसलों को अपने भोजन से कम करने जैसे प्रयास किया जाना जरूरी हैं।

सिंचाई के लिए भी छोटी, स्थानीय तालाब, कुओं पर आधारित रहने की अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा। यह स्पष्ट है कि बड़े बांध जितने महंगे व अधिक समय में बनते हैं, उनसे उतना पानी तो मिलता नहीं है, वे नई-नई दिक्कतों को उपजाते हैं, सो छोटे तटबंध, कम लंबाई की नहरों के साथ-साथ रासायनिक खाद व दवाओं का इस्तेमाल कम करना रेगिस्तान के बढ़ते कदमों पर लगाम लगा सकता है।

विभिन्न अध्ययनों के आधार पर यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि यदि तापमान में 2 डिग्री सेटीग्रेड के लगभग वृद्धि होती है तो गेहूं की उत्पादकता में कमी आएगी। अनुमान है कि तापमान के एक डिग्री सेटीग्रेड बढ़ने पर गेहूं के उत्पादन में 4-5 करोड़ टन की कमी होगी। इसके अतिरिक्त वर्षा आधारित फसलां को अधिक नुकसान होगा क्योंकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण वर्षा की मात्रा कम होगी, जिसके कारण किसानों को सिंचाई हेतु जल उपलब्ध नहीं हो पाएगा।


SAMVAD

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Meerut News: सरकार 2जी मोबाइल से 5जी का काम नहीं हो रहा

जनवाणी संवाददाता |रोहटा: आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को सरकार 2जी मोबाइल...

Meerut News: अमृत योजना में अटकी तालाबों की सफाई

जनवाणी संवाददाता |मेरठ: महानगर में तालाबों की गंदगी लाखों...

Meerut News: एडीजी ने किया पल्लवपुरम थाने और कांवड़ यात्रा को लेकर हाईवे का निरीक्षण

जनवाणी संवाददाता |मोदीपुरम: एडीजी ने निरीक्षण के दौरान थाने...
spot_imgspot_img