हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी ने वो कर दिखाया जो पिछले छह दशकों में कोई दूसरा दल कर नहीं सका। हरियाणा के इतिहास में पहली बार किसी राजनीतिक दल ने जीत की हैट्रिक लगाई है। इस जनादेश ने एग्जिट पोल के तमाम आकलन और अनुमानों को गलत साबित कर दिया है। कांग्रेस का ‘किसान, जवान, पहलवान और संविधान’ वाला नेरेटिव भी खोखला और छद्म साबित हुआ। दरअसल कोई भी सर्वेक्षण हरियाणा के भीतरी यथार्थ को पढ़ नहीं पाया, लिहाजा अनुमान भी गलत साबित हुए। एक टीवी चैनल ने हरियाणा के 100 स्थानीय पत्रकारों के आकलन भी आमंत्रित किए थे। उनका औसत निष्कर्ष था कि भाजपा ज्यादा से ज्यादा 18-20 सीटें जीत सकती है और कांग्रेस का बहुमत 60-65 सीट तक उछल सकता है। मतगणना शुरू हुई, तो भाजपा और कांग्रेस की सीटों का अंतर क्रमश: 18-20 और 58-60 का था। ये मतगणना के रुझान थे कि कौन सी पार्टी, कितनी आगे है।
यह जनादेश जातीय नहीं रहा, हालांकि इस हकीकत से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। यह जनादेश जाट बनाम गैर-जाट का भी नहीं रहा, क्योंकि सोनीपत, झज्जर, रोहतक के एक हिस्से, भिवानी, हिसार, महेंद्रगढ़ आदि जाटलैंड में भाजपा ने जीत हासिल कर कांग्रेस की रणनीति को ध्वस्त किया है। भाजपा ने कुरुक्षेत्र, अंबाला, करनाल, गुरुग्राम, फरीदाबाद और अहीरवाल के अपने बुनियादी गढ़ में भी शानदार जीत हासिल की है, जबकि तमाम एग्जिट पोल और चुनावी पंडित भाजपा को बुरी तरह पराजित बता रहे थे। जाट वोट कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा और चौटाला परिवार के इनेलो के बीच बंट गए, जबकि जेजेपी का वोट भाजपा के पक्ष में आया। प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री सैनी के कारण ओबीसी वोट भाजपा को मिले।
कह सकते हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव की तैयारी कर ली थी। यही वजह थी कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने करीब-करीब दो पारियों में मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल खट्टर को हटाकर उनकी जगह नायब सिंह सैनी की ताजपोशी कर दी थी। मकसद यही था कि लगातार दो दशक तक सत्ता में रहने के चलते उपजे सत्ता विरोधी रुझान को टाला जा सके। कमोबेश यह कोशिश रंग लायी। सैनी की सहजता-सरलता और उनका ओबीसी वर्ग से होने का लाभ गैर जाट समुदायों की एकजुटता के रूप में भी मिला। इसके विपरीत कांग्रेस में भूपेंद्र हुड्डा जैसा दिग्गज नेता तो था,लेकिन भाजपा के मुकाबले का सांगठनिक ढांचा नहीं था। वहीं दूसरी ओर पार्टी संगठन में मतभेद व मनभेद भी गाहे-बगाहे उजागर होते रहे। चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के सुर भी उभरे। टिकट बंटवारे में केंद्रीय नेतृत्व, हुड्डा गुट व शैलजा गुट की प्राथमिकताओं ने कई तरह की विसंगतियां पैदा की। आप से सीटों के बंटवारे पर सहमति न बन पाने की वजह से आप को तो लाभ नहीं हुआ, लेकिन कांग्रेस के मतों का कुछ विभाजन जरूर हुआ। इस चुनाव में हरियाणा में नई संभावना के रूप में देखी जा रही जेजेपी व बसपा तथा चंद्रशेखर आजाद रावण की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) का हश्र भी सामने आया। जाहिर है इनका प्रभाव भी कांग्रेस के दलित जनाधार पर जरूर हुआ।
इनेलो व निर्दलीयों को कुछ सीटें जरूर मिली, लेकिन वे भाजपा को अपने बूते सरकार बनाने के मार्ग में बाधा नहीं बन सकी। बहरहाल, भाजपा की इस जीत का एक निष्कर्ष यह भी है कि कुशल चुनाव प्रबंधन के जरिये राष्ट्रीय पार्टियां कारगर रणनीति बनाकर कैसे खुद को स्थानीय राजनीतिक माहौल के अनुरूप ढाल सकती हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र अपनी खूबसूरती के साथ फिर मजबूत हुआ है। अनुच्छेद 370 खत्म होने के उपरांत एक दशक बाद हुए चुनाव में नेशनल कान्फ्रेंस व कांग्रेस गठबंधन को सरकार बनाने का मौका मिला है। भाजपा के लिए यह उत्साह की बात है कि उसके द्वारा राज्य में हासिल मत प्रतिशत सर्वाधिक है।
इस जनादेश का श्रेय भाजपा के काडर, नेताओं और अंतत: प्रधानमंत्री को है, जिनके नेतृत्व में ऐसी रणनीति बनाई गई कि कांग्रेस के सपने ही धराशायी हो गए। बहरहाल आज जम्मू-कश्मीर का जनादेश भी घोषित किया गया है। वहां भाजपा सत्ता तक नहीं पहुंच सकती थी, फिर भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। हरियाणा में भाजपा को सत्ता तो मिल गई है, लेकिन अब उसे अपने वादे भी निभाने होंगे। महंगाई और बेरोजगारी पर काफी कुछ किया जाना शेष है। भाजपा को विकास पर फोकस करना होगा।
हरियाणा को पर्याप्त केंद्रीय मदद भी मिलनी चाहिए। इस जनादेश के बाद कांग्रेस को भी सोचना चाहिए कि उसके हाथों में आते आते जीत कैसे फिसल गई। कहां कमी रह गई। और जनता ने उसे उतना समर्थन और प्यार क्यों नहीं दिया। वहीं एक बात यह भी है कि मतदान के बाद हरियाणा में एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार बनती दिख रही थी परन्तु परिणाम आने के बाद वहां भाजपा बहुमत में आई। लोगों में अब एग्जिट पोल की विश्वसनीयता घट जाएगी। इसका असर यह होगा कि आगामी चुनावों में लोग एग्जिट पोल पर विश्वास करना बंद कर देंगे।
राजनीतिक दल हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणामों ने सभी दलों को साफ संदेश दे दिया है कि उनको जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है। कार्यकर्ताओं को घर-घर तक पार्टी के विजन को पहुंचाने की जरूरत है। नेताओं को गैरजिम्मेदाराना बयानों से बचने की जरूरत है तथा वातानुकूलित कमरों में बैठकर रणनीति बनाने के बजाय बूथ मैनेजमेंट के साथ धरातल पर रणनीति बनानी चाहिए।