किसी बड़े चुनाव से ठीक पहले अगर राजनीतिक दलों को चुनावी यात्राओं की याद आती है तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। पार्टियों को लगता है कि बड़े पैमाने पर यात्राएं करने से लोगों में जागरुकता फैलेगी, लोग उनके साथ जुड़ेंगे और चुनाव में इन सबका फायदा मिलेगा। इन यात्राओं से पार्टियों को मतदाताओं के मन-मिजाज को टटोलने में मदद तो मिलती ही है। साथ ही ‘करंट’ किसके पक्ष में है, इसका भी मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा सकता है। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि ऐसी यात्राओं से हमारे राजनेता लोगों की बुनियादी समस्याओं और जमीनी मुद्दों को ठीक से पहचान पाते हैं। अब कुछ ऐसी यात्राओं के बारे में संक्षेप में जान लीजिए जो इस वक्त चर्चा में हैं हालांकि चुनाव नजदीक आते-आते ऐसी यात्राओं की तादाद और बढ़ने वाली है। वैसे तो मध्य प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनावों में भी ‘जन आशीर्वाद’ यात्राएं निकाली जाती रही हैं, लेकिन इस बार की यात्रा कुछ अलग हटकर है। इसके तहत कई यात्राएं होनी हैं। भाजपा ने प्रदेश में 10,643 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए पांच ‘जन आशीर्वाद’ यात्राओं की योजना बनाई है। इन यात्राओं के जरिए प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से कम से कम 211 सीटें कवर करने का लक्ष्य रखा गया है। इनकी शुरूआत 3 सितंबर को चित्रकूट से हो चुकी है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इसकी शुरूआत की है।
गौर करने वाली बात यह है कि पार्टी ने इन यात्राओं में शिवराज सिंह चौहान का चेहरा आगे नहीं रखा है। जाहिर है कि इस बार पार्टी कई कारणों से एक-एक कदम फूंक-फूंककर रखना चाहती है। इन यात्राओं का समापन होगा 25 सितंबर को जिस दिन पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती है। राजस्थान में जीत के लिए जोर लगाने की खातिर भाजपा ‘परिवर्तन संकल्प यात्रा’ निकाल रही है। इसके तहत प्रदेश में भाजपा चार ‘परिवर्तन संकल्प यात्रा’ निकाल रही है। चारों दिशाओं से इन चार यात्राओं के जरिए राजस्थान के सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया है।
इन यात्राओं के दौरान आदिवासी, दलित, किसान, युवा और महिलाओं के लिए खास तौर पर चौपाल का आयोजन होगा। पार्टी की पूरी कोशिश होगी कि यात्राओं के जरिए लोगों को अपनी ओर खींचे और विधानसभा चुनाव में वापसी करे। बीते सप्ताह जेपी नड्डा राजस्थान के सवाई माधोपुर से ‘परिवर्तन संकल्प यात्रा’ को हरी झंडी दिखा चुके हैं। यात्राओं के दौरान छोटी-बड़ी कई रैलियों का आयोजन होना है। भाजपा की छत्तीसगढ़ में हो रही परिवर्तन यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह यात्रा छत्तीसगढ़ में चुनाव के परिप्रेक्ष्य में 20 साल बाद निकल रही है।
भारतीय जनता पार्टी इसके लिए बहुत दिनों से तैयारी कर रही थी, इस यात्रा के लिए ही रायपुर से एक हाइड्रोलिक लिफ्ट वाली हाईटेक बस भी दंतेवाड़ा भेजी गई थी । यह यात्रा 45 विधानसभा सीट से होकर 1728 किमी कवर करके 16 दिनों में बिलासपुर पहुंचने वाली है। चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी की पहली इतनी बड़ी यात्रा है जो शुद्ध छत्तीसगढ़ में सुनियोजित तरीके से निकलने वाली हैं। ऐसे में एक बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय जनता पार्टी यात्राओं के दौर में कांग्रेस के पीछे रह गई है?
अगर कांग्रेस की बात हो जाए तो छत्तीसगढ़ में उनके लगतार संकल्प शिविर चल रहे हैं और मुख्यमंत्री पिछले एक साल से लगातार लोगों से मुलाकातें कर अपनी योजनाओं के फायदे गिना रहे हैं। साथ ही लोगों से अच्छा कनेक्ट बनाने में सीएम बघेल भाजपा की अपेक्षा ज्यादा सफल नजर आ रहे हैं। ऐसी राजनीतिक यात्राएं किसी भी पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती हैं, क्योंकि वहां वोटर्स को मनोवैज्ञानिक तौर पर मनाना बेहद मददगार साबित होता है।
भारतीय जनता पार्टी को देर से निकलने से नुकसान होगा, ये कहना अभी मुश्किल है लेकिन जितना फायदा उठा सकती थी, वो पार्टी को नहीं होगा। ऐसा लगता है कि जनता तक अपना संदेश लेकर यात्राएं के लिए ले कर जाना बहुत आसान है। ऐसे में 1728 किलोमीटर की यात्रा आचार संहिता लगने से पहले कितनी पूरी हो जाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा क्योंकि आचार संहिता लग जाने से इस तरह के राजनीतिक कैम्पेनिंग की गति धीमी हो जाती है।
वैसे तो इन दिनों भाजपा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपनी यात्राओं पर पूरा जोर लगा रही है। ऐसे में कांग्रेस महाराष्ट्र सरकार की नाकामियों को जनता के सामने रखने को आतुर है। राहुल गांधी की अगुवाई में ‘भारत जोड़ो’ यात्रा अलग-अलग कारणों से सुर्खियों में रही थी। अब कांग्रेस देशभर के सभी जिलों में पदयात्रा निकालने जा रही है। यात्रा का तात्कालिक मकसद है राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ की पहली वर्षगांठ मनाना।
पार्टी राहुल गांधी की उस यात्रा को यादगार बनाना चाहती है जिसके तहत उन्होंने देशभर में करीब 3,970 किमी की यात्रा की थी। कांग्रेस का ऐसा मानना है कि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा ने देश की राजनीति को प्रभावित किया है। पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच संदेश देने की कोशिश कर रही है कि यात्रा की वजह से ही कर्नाटक चुनावों में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की। आगे भी लाभ के सपने दिखाए जा रहे हैं। इन यात्राओं के किसी बड़े राजनीतिक असर को लेकर कोई दावा करना अभी जल्दबाजी होगी। फिर भी उम्मीद की जानी चाहिए कि ये यात्राएं देश के गरीबों, पिछड़ों और वंचितों के जीवन-स्तर में सुधार की बयार लेकर आएं।