Tuesday, May 20, 2025
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कब पूरा होगा किसान मसीहा का सपना

Nazariya 22


DR MAHAK SINGHजिन्दगी भर मेहनतकश किसानों, मजदूरों व शोषितों के उत्थान के लिये समर्पित भारतीय राजनीति के पुरोधा, 23 दिसम्बर 2023 को जन्मे चौधरी चरण सिंह इतना कुछ कर गए और बता गए जो हमेशा गांव, गरीब व किसान के लिए पथ-प्रदर्शक बना रहेगा। यह भारत के किसानों व मजदूरों के लिए गर्व की बात है कि गांव में जन्मा और उसकी मिट्टी में खेलकर पला-पढ़ा एक साधारण किसान का बेटा जिन्हें वर्षा ऋतु में पहली बारिश की मिट्टी की सुगन्ध, सबसे अच्छी लगती थी, भारत का प्रधानमंत्री बना। 29 मई 1987 को भगवान ने उन्हें हमसे छीन लिया, परन्तु आज भी वह भारत के किसान के खेतों में खुशहाली के बीज की तरह सम्भावना लेकर बिखरे हुए हैं। किसान के शरीर से बहते हुए पसीने में उनके परिश्रम की गंध आज भी आती है। उनकी स्मृति सावन के बादलों की तरह किसानों को छाया देती प्रतीत होती है। वह मरे नहीं हैं, बल्कि भारत के खेतों में रम गए हैं और आज भी किसानों, शोषितों और निर्बलों के प्रेरणास्रोत हैं। चौधरी साहब अपने राजनैतिक सफर में ईमानदारी, सादगी नैतिकता और भारतीय संस्कारों की मिसाल बन गये। बुरे हालात कभी उनका हौसला नहीं तोड़ सके। इसी पंूजी के बल पर वह किसानों व मेहनतकशों के मसीहा बन गये। वह हमेशा एक ही बात कहते और समझाते कि असली भारत गाँव में बसता है, परन्तु आज गांव शहरों के उपनिवेश बनकर रह गए हैं। वह ईमानदारी और सादगी के प्रतीक थे। देश के प्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री, ग्रह व वित्तमंत्री, उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री और अनेक विभागों के मंत्री रहते हुए जब दुनिया से अलविदा होते समय उनके पास न कोई घर था न पुश्तैनी जमीन। अंतिम समय में उनके बैंक खाते में केवल 300 रुपये जमा थे।

चौधरी साहब का राजनैतिक सफर स्वतन्त्रता संग्राम के समय ही प्रारम्भ हो गया था। 34 वर्ष की आयु में ही संयुक्त प्रांत की लेजिस्लेटिव एसेम्बली के लिये छपरौली क्षेत्र से निर्वाचित हुए। 1938 में उन्होंने एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्किटिंग बिल एसेम्बली में पेश किया। उस समय यह बिल उत्तर प्रदेश में तो पास नहीं हो पाया परन्तु पंजाब के राजस्व मंत्री ने इसे ज्यों का त्यों 1940 में एसेम्बली पास कराकर पंजाब में लागू करवा दिया। 1952 में वह उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री बने। तब उन्होंने जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार एक्ट लागू किया। जिससे किसान भूस्वामित्व मिला। उन्होंने जमींदारी उन्मूलन में बाधा बने 27000 पटवारियों को बर्खास्त कर दिया था। किसान के बिखरे खेती को चकबंदी कानून, भूमि संरक्षण बिल और ऋण विमोचन एक्ट भी उन्होंने लागू करवाए। उनके भूमि सुधार कानून की देश में ही नहीं बल्कि विदेशी अर्थशास्त्रियों ने भी प्रशंसा की। आर्थिक नीतियों विशेषकर सहकारी खेती के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु का भी उन्होंने खुला विरोध किया। उनका कहना था कि किसानों को भूमि पर मालिकाना हक कायम रहना चाहिए।

गांव व किसान विरोधी नीतियों के चलते 1967 में कांग्रेस से त्याग पत्र दे दिया। सभी विरोधी दलों ने उन्हें अपना नेता चुन लिया। उन्होंने किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य दिलवाया तथा अनेक प्रशासनिक सुधार लागू किए। उनके मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही भ्रष्ट अधिकारी कांप उठते थे और कानून व्यवस्था स्वयं ठीक हो जाती थी। 1970 में दोबारा प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 1974 में कई विपक्षी दलों को मिलाकर भारतीय लोकदल का गठन किया। उन्हें आपातकालीन घोषणा का विरोध करने पर जेल में डाल दिया गया। 1977 में सभी गैर कांग्रेस पार्टियों ने इकट्ठा होकर जनता पार्टी का गठन किया। जिसका घोषण पत्र चौधरी साहब द्वारा द्वारा लिखा गया तथा हलधर चुनाव चिन्ह भी भारतीय लोकदल का ही रखा गया। चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई। चौधरी साहब इस सरकार में गृह मंत्री, वित्त मंत्री, उपप्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री बने। वर्त धर्म निरपेक्षता के प्रतीक थे और जातिवाद व बड़े उद्योगों के प्रबल विरोधी थे। वे हिन्दी को राष्ट्रभाषा व कुटी उद्योगों के प्रबल समर्थक थे।

जनता पार्टी की सरकार में गृहमंत्री के रूप में चौधरी साहब ने मण्डल कमीशन, अल्पसंख्यक आयोग, परिगणित जाति आयोग, अन्तयोदय योजना जैसे महत्वपूर्ण कार्य किये। एक महत्वपूर्ण कार्य ग्रामीण विकास मंत्रालय का गठन करना भी था। शहर बनाम गांव की राजनीति को सशक्त बनाया। सभी दलों और नेताओं को किसानों तथा गांवों की बात करने के लिए विवश कर दिया। उनका कहना था कि देश तभी समृद्धशाली हो सकता है जब ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पत्ति हो और गांव के रहने वाले की क्रय शक्ति में वृद्धि हो। उनका कहना था कि राष्ट्र तभी समृद्धशाली हो सकता है, जब ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादन में वृद्धि हो और गांव के रहने वालों की क्रय शक्ति में वृद्धि हो।

चौधरी साहब ने किसानों को हक के लिए लड़ना सिखाया, आज भी किसानों को उन जैसे नेतृत्व की आवश्यकता है। खेती में बढ़ती लागत, उत्पादन में ठहराव, मंहगाई, छोटी होती जोत और फसल उत्पादों के सही दाम न मिलने से किसान कर्ज के जाल में फंस कर तड़प रहा है। उदाहरण के लिए सरकार मिल मालिकों के हाथों में खेल रही है और पिछले पेराई सीजन का भी करीब 500 करोड़ रुपए बकाया हैं। गन्ना किसानों को समय से ब्याज समेत भुगतान नहीं होता। किसान के बेटे खेती करना नहीं चाहते। खेती पर बड़े-बड़े कारपोरेट घराने गिद्ध दृष्टि लगाये हुए हैं। 50 प्रतिशत छोटे किसान खेती छोड़ना चाहते हैं। इसी में चैधरी साहब के विचार, चरित्र और उनका संघर्ष किसानों के लिये सदैव पथ-प्रदर्शक बना रहेगा।


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