Saturday, July 27, 2024
- Advertisement -
HomeNational Newsकौन हैं बोलंदा बदरी, कब से चली आ रही यह परंपरा, आइए...

कौन हैं बोलंदा बदरी, कब से चली आ रही यह परंपरा, आइए जानते हैं…

- Advertisement -

जनवाणी ब्यूरो |

ऋषिकेश: देश के चार चारधामों में प्रसिद्ध श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के अवसर पर धार्मिक परंपरा के अनुरूप भगवान बदरी विशाल के अभिषेक पूजा तिल का तेल प्रयोग में लाया जाता है, प्रत्येक यात्रा वर्ष महारानी तथा सुहागिन महिलाओं द्वारा विधि-विधान से टिहरी राजमहल में पिरोया जाता है। जिस चांदी कलश में इस तेल को रखा जाता है, उसे गढ़वाली में “गाडू घड़ा” कहते हैं। पहले यह घड़ा मिट्टी से बना होता था।

टिहरी नरेश को प्रजा द्वारा बोलंदा बदरी भी कहा जाता था। जिसका अर्थ है साक्षात बदरीनाथ, इसी लिए सदियों पुरानी परंपरा नरेंद्र नगर स्थित पूर्व टिहरी नरेश के राजमहल में सदियों से निभाई जाती है। चमोली (गढ़वाल) में विश्व प्रसिद्ध बदरीनाथ धाम स्थित है, बदरीधाम की यात्रा का शुभ मुहूर्त व अन्य परंपरा अब भी टिहरी राजमहल से शुरू की होती है।
हर साल बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर टिहरी नरेश की जन्म कुंडली और ग्रह नक्षत्रों की गणना कर पुरोहित तेल पिरोने और बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि और समय निर्धारित करते हैं।

03 18

गर्भ गृह में स्थापित होता है गाडू घड़ा
सुहागिनों के द्वारा तिलों से तेल पिरोने के बाद तेल को विशेष जड़ी-बूटी के साथ आंच में पकाया जाता है, ताकि तेल में पानी की मात्रा न रह सके। इस तरह राज दरबार में पारंपरिक रीति-रिवाज से तेल पिरोने की परंपरा पूरी होने के बाद तेल से भरे गाडू घड़ा को जनपद चमोली स्थित डिमरियों के गांव डिमर ले जाया जाता है।

तत्पश्चात गाडू घड़ा डिमर गांव पहुंचने के बाद पूजा-अर्चना के बाद शक्ति पीठ खांडू देवता के संरक्षण में लक्ष्मी-नारायण मंदिर में स्थापित किया जाता है। कलश कुछ दिन वहीं रहता है। इसके बाद गाडू घड़ा तेल कलश जोशीमठ और फिर पांडुकेश्वर पहुंचता है। जबकि जोशीमठ से बदरीनाथ धाम के मुख्य पुजारी रावल आदि शंकराचार्य की गद्दी के साथ पांडुकेश्वर पहुंचते हैं।

अगले दिन पांडुकेश्वर से गुरुजी, उद्धवजी व कुबेरजी की डोलियां भी तेल कलश व आदि शंकराचार्य की गद्दी के साथ बदरीनाथ पहुंचती हैं। इसके बाद तय तिथि के दिन ब्रह्ममुहूर्त में श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खोल दिए जाते हैं। उसी समय गाडू घड़ा को भगवान बदरी विशाल के गर्भ गृह में स्थापित कर दिया जाता है। तिल के तेल से भरा हुआ कलश ही भगवान बदरी विशाल के अभिषेक पूजा में छह माह के काल के दौरान प्रयोग में लाया जाता है।

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments