सुभाष शिरढोनकर |
अनुपम खेर ने आमिर की ‘लाल सिंह चड्ढा’ पर तगड़ा तंज कसते हुए कहा है कि अच्छी फिल्म अपना रास्ता खुद ढूंढ लेती है। यदि फिल्म अच्छी होती तो वह इस तरह फ्लॉप नहीं होती। उनका कहना है कि बॉयकॉट करने का अधिकार लोगों के पास है। इसे फ्रीडम आॅफ एक्सप्रेशन कहते हैं। लोगों को फिल्म पसंद आ रही है या नहीं, यह वह खुद डिसाइड करते हैं। ऐसे में बॉयकॉट का जो ट्रेंड चला है वह एक तरह से सही है। कश्मीर फाइल्स का भी कुछ लोगों ने बॉयकॉट करने की कोशिश की थी, लेकिन सभी ने देखा कि वह फिल्म सबसे अच्छी चली। लोगों ने उसे बहुत पसंद किया।
2015 में आमिर द्वारा अपनी पत्नी के संदर्भ में तत्कालीन हालातों का जिक्र करते हुए कहा था कि ‘मेरी पत्नी को भारत में रहने से डर लगता है’। उस बयान के बारे में अनुपम खेर का कहना है कि वह बहुत अच्छे एक्टर हैं, लेकिन ऐसे बयान किसी भी व्यक्ति को सोच समझ कर देने चाहिए क्योंकि उनसे पूरा देश जुड़ा होता है। उल्लेखनीय है कि आमिर के उस बयान पर खूब बवाल मचा था।
फरहान अख्तर का कहना है कि बॉलीवुड में हो रही फ्लॉप फिल्मों के बारे में कि अब लोग ओटीटी प्लेटफार्म पर दूसरी भाषा के कंटेंट देखने लगे हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बॉलीवुड को अच्छे कंटेंट बनाने के लिए कोशिश करनी होगी और उन्हें ग्लोबल आॅडियंस को ध्यान में रखकर कंटेंट बनाने होंगे। फरहान ने कहा हर किसी को अपनी भाषा से एक इमोशनल कनेक्शन होता है। आप अपनी भाषा में फिल्म के इमोशन्स को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। कई बार केवल एक शब्द से ही बहुत सारे इमोशन्स जाहिर हो जाते हैं, इसलिए अपनी भाषा के कंटेंट की अलग बात होती है लेकिन जब हम किसी फिल्म को ट्रांसलेट करते हैं, तब वो इमोशन्स थोड़े अलग हो सकते हैं।
फरहान आगे कहते हैं कि आप इंग्लिश का कंटेंट बिलकुल देख सकते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि हमें अब बैरियर को तोड़ना होगा। आपको ऐसा करने के लिए कोई नया तरीका सोचना होगा ताकि किसी भी भाषा में वही इमोशन्स जाहिर किए जा सकें। पर्सनली ये मुझे बहुत बड़ा मुद्दा नहीं लगता। ये अच्छी बात है कि दुनिया अब दूसरी भाषाओं के कंटेंट को देख रही है और ये सभी के लिए फायदेमंद है।
इसी कड़ी में आगे फरहान का कहना है कि हमें ज्यादा लोगों तक पंहुचने के लिए वही तरीका अपनाना होगा जैसा ‘द अवेंजर्स ने किया था। इससे फर्क नहीं पड़ता कि आॅडियंस इग्लिश जानती है या नहीं। इन फिल्मों में ऐसा था कि आॅडियंस ऐसी फिल्में को देखती ही है। कंटेंट क्रि एटर्स के तौर पर हमें लोगों के लिए बेहतरीन एक्सपीरियंस बनाना चाहिए। फिर भाषा की समस्या इसके बहुत बाद में आती है।