Thursday, January 9, 2025
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जंगली जानवरों का जीवन

Balwadi 2

अंकुश्री |
आज सभ्य कहा जाने वाला मनुष्य पहले जानवरों की तरह जंगलों में रहता था। वृक्ष की टहनियां हों या मोटे तने, पहाड़ की गुफाएं हों या चट्टानों की ओट, पेड़ों से घिरा मैदानी भाग हो या घनी झाड़ियों, पानी का जमाव हो या तेज बहती नदियां-जंगली जानवर हर जगह पाए जाते हैं। आवासीय विभिन्नताओं के साथ ही जानवरों के स्वभाव में भी भिन्नताएं पायी जाती हैं। जंगली जानवरों का जीवन सह-अस्तित्व पर आधारित है।
जिस वृक्ष की टहनियों पर लंगूर फांदते रहते हैं, उस वृक्ष के नीचे हिरणों को कुलाचें भरते देखा जा सकता है। लंगूरों द्वारा तोड़े गये कुछ पत्ते या फल नीचे गिर जाते हैं जिन्हें हिरण खा जाते हैं।
पेड़ की ऊंची टहनियों पर बैठे लंगूरों और बंदरों को जंगल में विचर रहे हिंसक जानवरों के आगमन की सूचना अपेक्षाकृत पहले मिलती है। वे सावधान होकर किलकना बंद कर देते हैं। उनकी किलकारियां बंद होते ही हिरणों में अलार्म कॉल बज उठता है औैर वे भी सावधान हो जाते हैं। जंगल में सभी जानवरों का अपना अलार्म कॉल होता है जिसे वे समझते हैं और खतरे से सावधान हो जाते हैं। प्राय: जानवर दूसरे जानवरों के अलार्म काल की भाषा भी समझते हैं।
जंगल में जानवरों का आवास पानी के निकट होता है इसलिये जल स्रोतों के आसपास जानवरों को आसानी से देखा जा सकता है। हाथी को तो एक बार में ही काफी मात्र में पानी की जरूरत पड़ती है। बाघ जब भर पेट खा लेता है तो घंटे दो घंटे पर ही उसे प्यास लगने लगती है इसलिये खाने के बाद बाघ पानी के निकट करीब करीब एक सौ मीटर के अंदर ही आराम करता हैं।
हाथी वैसे जंगल में रहना पसंद करता है जहां उसे भरपूर भोजन और पानी मिल सके तथा साथ ही नमकीन मिट्टी भी मिल सकें। हिरणों को भी नमक की जरूरत पड़ती है। इसीलिये चिडि?ाघरों या अभ्यारण्यों में हिरणों के लिये नमक की ईंटें तार से बांध कर जगह जगह लटका दी जाती है।
सिंह के शिकार करने का ढंग बहुत निराला होता है। सिंह शिकार को घेरता है जिसे सिंहनी अपना शिकार बनाती है। मारे गये शिकार को सबसे पहले सिंह खाता है। उसके भर पेट खाकर हट जाने पर सिंहनी खाती है और तब छोटे बच्चे खाते हैं। अंत में जो शिकार बच जाता है। उसे सियार आदि जानवर खा जाते हैं।
तेंदुआ अपना शिकार पकड़ने के बाद उसे पेड़ पर ले जाता है। वह मोटे तनों की जोड़ पर शिकार को टिका कर रख देता है और उसे आवश्यकतानुसार थोड़ा-थोड़ा खाता रहता है। भेड़िया और जंगली कुत्ते समूह बनाकर शिकार करते हैं।
जंगल में हाथी झुंड में पाये जाते हैं। अनुभवी और बुजुर्ग हाथी झुंड में आगे आगे चलता है। बच्चों को झुंड के बीच में रखा जाता है। बंदर अपने बच्चों को पेट से चिपका कर तब तक घूमता रहता है, जब तक बच्चा बड़ा और पूर्ण समझदार नहीं हो जाता है।
शायद बंदरी की देखादेखी ही आदिवासी क्षेत्र की महिलाएं भी बच्चों को शरीर से बांधे रहती हैं। यह बात दूसरी है कि वे महिलाएं बंदरी की तरह पेट से न साट कर अपने बच्चे को पीठ से बांधे रहती हैं।
जंगल में कुछ जानवर रात में निकलते हैं और कुछ दिन में। कुछ-कुछ जानवर रात और दिन दोनों में निकलते हैं। रात में मुख्यत: मांसाहारी जानवर घूमा करते हैं लेकिन उल्लू ऐसा पक्षी है जो रात के अंधेरे में ही बाहर निकलता है। इस तरह के रात्रिचर कुछ और पक्षी भी हैं।
रात में प्राय: सभी जानवरों की आंखें चमकती हैं। जो जानवर मांसाहारी होते हैं, उनकी आंखें लाल पीली चमकती हैं। शाकाहारी जानवरों की आंखें नीली हरी चमकती हैं। मांसाहारी जानवरों की यह विशेषता है कि उनके दांत अलग-अलग होते हैं लेकिन शाकाहारी जानवरों के दांत आपस में सटे होते हैं।
मांसाहारी और शाकाहारी जानवरों के पानी पीने के ढंग में भी अंतर होता है। मांसाहारी जानवर पानी को जीभ से चाट कर पीते हैं जबकि शाकाहारी जानवर पानी सुरक कर पीते हैं।
गिलहरी, बंदर, लंगूर आदि जानवर पेड़ की टहनियों पर रहते हैं। हिरण झाड़ियों में रहता है। बाघ घने जंगल में  स्थित मैदानी क्षेत्र में रहता है। मछली का जीवन जल में बीतता है जबकि घड़ियाल और मगर जल और थल दोनों जगह रहते हैं। खरहा, ब्रज्रकीट, गोह, साही, सियार, लोमड़ी आदि जानवर बीवर में रहते हैं।
एक तरफ जंगल में हाथी जैसा विशालतम स्थलीय जानवर पाया जाता है तो दूसरी ओर चूहे से भी छोटे जानवर पाये जाते हैं। हाथी समतल और चढ़ाई पर जितनी तेजी से दौड़ता है, ढलान की ओर चलने में उसे परेशानी होती है। चूहे जैसा छोटा प्राणी धरती के नीचे ढाई हजार मीटर तक जा सकता है जबकि मनुष्य इसकी चौथाई गहराई तक ही जा पाया है।
जिराफ की गरदन बहुत लंबी होती है। चमुलियन और गिरगिट आवश्यकतानुसार अपना रंग बदल लेते हैं। सभी जानवरों की दोनों आंखें एक साथ घूमती हैं लेकिन सांप आदि रेंग कर चलने वाले सरिसृपी जानवरों की आंखें एक एक कर अलग अलग दिशाओं में स्वतंत्र रूप में घूम सकती हैं।
कुछ जानवर दौडकर शिकार करते हैं तो कुछ छलांग लगा कर। मेंढक और चमेलियन एक जगह बैठे-बैठे ही अपना शिकार पकड़ लेते हैं क्योंकि इनकी जीभ काफी लसदार होती है, जिसकी जड़ मुंह में आगे की ओर होती है और उलट कर शिकार से सट कर उन्हें पकड़ लेती है।
कुछ जानवर शिकार को अपनी श्वांस द्वारा खींच कर पकड़ते हैं। सरस और मैनी एक पत्नीव्रती पक्षी हैं। नर या मादा के मर जाने पर जोड़ा का बचा हुआ पक्षी अपना बाकी जीवन एकाकी ही काट लेता है। यह विशेषता दूसरे सभी पक्षियों में नहीं पायी जाती।
मनुष्यों में पुरुष की अपेक्षा स्त्रियों को अधिक सुंदरता प्राप्त है लेकिन जानवरों में यह स्थिति उल्टी होती है। सिंह की गरदन के पास लंबे लंबे बाल पाये जाते हैं जिसे केसर या अयाल कहा जाता है। यह अयाल सिंहनी में नहीं पाया जाता। अयाल के कारण सिंह बहुत आकर्षक लगता है।
मोर के पंख काफी लंबे और आकर्षक होते हैं लेकिन मोरनी देखने में बदसूरत लगती है। हिरणों में सींग की तरह आकर्षक एंटलर हुआ करते हैं जो हिरणियों में नहीं पाये जाते। हाथी के लंबे-लंबे दो दांत हैं जो उन्हें आकर्षक बनाते हैं। ये दांत हथिनी के नहीं होते। किसी को नुकसान पहुंचाना जंगली जानवरों का ध्येय नहीं होता। छेड?े पर ही वे मजबूर होकर हिंसक का काम करते हैं।

हम पाते हैं कि जंगल में जिस तरह विभिन्न किस्म के जानवर पाये जाते हैं, उसी तरह उनके जीवन में भी अनेक विभिन्नताएं पायी जाती हैं। जंगली जानवरों के जीवन की जानकारी से हमें न केवल जंगलों और जानवरों को समझने का मौका मिलता है, इससे धरती की प्रकृति और उसके पर्यावरण की रक्षा का भी मार्ग प्रशस्त होता है।


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