पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। देश की प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। संसदीय सचिवालय में दिए गए अविश्वास प्रस्ताव के बाद सतारूढ गठबंधन के भीतर विरोध की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। पाकिस्तान मीडिया के अनुसार, इमरान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के कई सांसदों ने उनका साथ छोड़ दिया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि पीटीआई के 24 सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट डालने की धमकी दी है। विपक्ष ने 342 सदस्यीय सदन में 200 सदस्यों के समर्थन का दावा किया है। अगर विपक्ष सत्तारूढ़ गठबंधन में दरार पैदा करने में कामयाब हो गया तो इमरान की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। दूसरी ओर इमरान ने विपक्ष पर सांसदों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया है। उन्होंने विपक्ष को सख्त लहजे में चेताते हुए कहा है कि प्रस्ताव के विफल होने के बाद उनको परिणाम भुगतने होंगे।
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साल 2018 के आम चुनावों में खेल के मैदान से राजनीति की पिच पर उतरने वाले इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ 155 सीटें जीतकर सबसे बडे़ दल के रूप में उभरकर आई थी। हालांकि बहुमत के लिए जरूरी 172 के आंकड़े तक इमरान नहीं पहुंच पाए थे लेकिन दूसरे अनेक छोटे दलों व निर्दलीयों के सहयोग से वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन गए। सत्तारुढ़ गठबंधन में पीटीआई के 155, एमक्यूएम के 7, बीएपी के 5, मुस्लिम लीग क्यू के 5, जीडीए के 3 और अवामी लीग का 1 सदस्य शामिल है। दुसरी और विपक्षी गठबंधन के कुल सदस्यों की संख्या 162 है।
संख्या बल के लिहाज से देखे तो विपक्ष को केवल 10 सदस्यों की जरूरत है। कहा जा रहा है कि विपक्षी गठबंधन द्वारा मुस्लिम लीग क्यू और एमक्यूएम के अलावा एक-दो अन्य छोटे दलों में सेंधमारी की कोशिश की जा रही है । कहा तो यह भी जा रहा है कि सत्तारूढ़ पार्टी पीटीआई के कुछ सदस्यों से भी विपक्षी गठबंधन संपर्क में हैं।
विपक्ष का दावा है कि जब से इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में आई है, तब से महंगाई और बेरोजगारी चरम पर है। देश की अर्थव्यवस्था स्थिर हो गई है। मुद्रास्फीति अपने चरम पर है। विदेशी कर्ज बढ़ता जा रहा है। इससे पहले जब इमरान की पार्टी सत्ता में आई थी, तब उसने पिछली सरकारों पर देश की अर्थव्यवस्था को तबाह कर देने का आरोप लगाया था।
लोगों ने उसकी बात पर यकीन किया। लेकिन अब पीटीआई के चार साल के शासन के बाद देश के चालू खाते (सीएडी) का घाटा नया रिकॉर्ड बना रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की बढ़ती कीमतों के कारण इसके 20 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचने की संभावना है, जो देश की कुल जीडीपी के छह फीसदी के बराबर होगा।
यूक्रेन संकट ने सरकार की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है। बीते जनवरी माह में यह घाटा 2.6 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। 2008 के बाद यह पाकिस्तान के लिए सबसे खराब दौर है। डॉलर के मुकाबले रुपए में 12 फीसदी की गिरावट आई है। र्इंधन की कीमतें भी आसमान छू रही हैं। विदेश कर्ज बढ़कर 127 अरब डॉलर हो गया है। हाल ही में स्टेट बैंक आॅफ पाकिस्तान द्वारा जारी आंकड़ों में पाकिस्तान का चालू खाता जनवरी 2022 के महीने में 2.56 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है।
हालांकि, सत्ता में आने के बाद से इमरान लगातार पाकिस्तान के माली हालात को सुधारने का प्रयास करते दिख रहे हैं। उन्होंने सऊदी अरब और दूसरे सहयोगी देशों से मदद मांगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से बार-बार कर्ज के लिए गुहार लगाई। देश को वित्तीय संकट से उबारने के लिए विश्व बैंक से 6 बिलियन डॉलर का पैकेज भी लिया। जबकि इससे पहले चुनाव प्रचार के दौरान इमरान खान अपनी सभाओं में यहां तक कहते दिखे कि उन्हें खुदकुशी करना मंजूर है लेकिन कर्ज नहीं लेंगे। इतना ही नहीं देश की अर्थव्यवस्था में प्राण फूंकने के लिए इमरान ने कुछ कड़े फैसले भी लिए।
पिछले महीने की शुरुआत में उन्होंने पेट्रोलियाम उत्पादों की कीमतों में 12.03 रुपए प्रति लीटर तक की बढ़ोतरी की थी। पाकिस्तान में पेट्रोल की कीमत इस समय 160 प्रति लीटर के करीब है। र्इंधन की कीमतों और बिजली की दरों में वृद्धि करने के अलावा सरकार ने एक मिनी बजट की शुरुआत भी की। टैक्स सेक्टर्स के दायरे को बढ़ाया गया। बजट प्रावधानों के अनुसार एक्सपोर्ट, इम्पोर्ट और सर्विस सेक्टर के कुछ नए सेक्टर्स को टैक्स के दायरे में शामिल किया गया है।
इमरान जानते थे कि इन फैसलों से जनता का एक बड़ा वर्ग उनके खिलाफ हो जाएगा । सरकार के इन फैसलों के लिए खान अपने सहयोगी दलों व विपक्षी पार्टियों की आलोचना का शिकार भी हुए।
जमात-ए-इस्लामी के नेता सिराजुल हक ने तो उन्हें इंटरनेशनल भिखारी बताते हुए यहां तक कह दिया था कि खान की पार्टी देश पर शासन करने के लायक ही नहीं है। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपनी सरकार को खतरे में डाला।
अब सरकार बचाने के लिए इमरान के पास कुछ ही दिन शेष हैं। वे सहयोगी दलों के नेताओं को मनाने के लिए भागदौड़ कर रहे हैं। लेकिन अगर इमरान सरकार के सहयोगी दल महंगाई के नाम पर बिदक कर पासा बदल लेते हैं तो न केवल उनकी सरकार पर खतरा मंडरा सकता है, बल्कि पाकिस्तान में आम चुनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। पाकिस्तान की खराब आर्थिक हालात के लिए समय से पहले चुनाव किसी भी सूरत में ठीक नहीं होंगे। ऐसे में देखना यह होगा कि इमरान सरकार के सहयोगी दल क्या रुख अपनाते है।
दूसरा सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि राजनीतिक अस्थिरता की इस स्थिति का फायदा सेना उठा सकती है। फिलहाल, सेना ने पूरे घटनाक्रम से दूर रहते हुए स्थिति पर नजर बनाए रखने का फैसला किया है। सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा का तटस्थ रहने का फैसला कहीं न कहीं इस बात की ओर इशारा है कि सेना के दिमाग में कुछ न कुछ ‘खास’ चल रहा है।
हालांकि, इमरान अभी भी कह रहे हैं कि सेना और दूसरे शक्तिशाली समूह उनका साथ देंगे। सेना कभी चोरों का समर्थन नहीं करेगी। लेकिन इतिहास गवाह है कि जब-जब पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता के चलते हालात बेकाबू हुए हैं, तब-तब सेना ने अपने हाथ पीछे खींचे है। ऐसे में भला इमरान खान अपवाद कैसे हो सकते हैं।