अंतिम चरण के मतदान की प्रक्रिया के समापन के साथ ही तमाम टीवी चैनलों द्वारा विभिन्न सर्वे एजेंसियों के सहयोग से एग्जिट पोल का प्रसारण कर दिया गया। लगभग सभी एग्जिट पोल के अनुमानों के मुताबिक एनडीए कम से कम 350 सीटों के साथ लगातार तीसरी बार रिकॉर्ड बहुमत से सत्तासीन होने जा रहा है और इंडिया गठबंधन के 150 सीटों के आसपास सिमटने की भविष्यवाणी की गई है। तीन एग्जिट पोल तो ऐसे हैं, जिनमें भाजपा के एनडीए गठबंधन को 400 या उससे भी ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है जबकि इन्हीं तीनों एग्जिट पोल में से एक में कांग्रेस के इंडिया गठबंधन को अधिकतम 107, दूसरे में 139 और तीसरे में अधिकतम 166 सीटें मिलने का अनुमान है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 303 और उसके गठबंधन को कुल 353 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि कांग्रेस को 53 सीट और उसके सहयोगियों को 38 सीटें मिली थी यानी कांग्रेस गठबंधन केवल 91 सीटों पर ही विजयी रहा था। अब यदि ये एग्जिट पोल सही साबित होते हैं तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गठबंधन जीत के पिछले रिकॉर्ड को तोड़ते हुए तीसरी बार भी न केवल मजबूत सरकार बनाने में सफल होगा बल्कि मोदी चुनाव में जीत दिलाने के मामले में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के रिकॉर्ड की भी बराबरी कर लेंगे।
हालांकि यह अलग बात है कि अभी तक का एग्जिट पोल का इतिहास यही बताता है कि कई बार अधिकांश एग्जिट पोल वास्तविक चुनावी नतीजों से कोसों दूर नजर आते रहे हैं और शायद यही कारण है कि इस बार एनडीए के अधिकांश नेता भी एग्जिट पोल को लेकर यही कहते नजर आए हैं कि एग्जिट पोल हमेशा सटीक नहीं होते, लेकिन हम इसका सम्मान करते हैं। इंडिया गठबंधन के तमाम नेता तो एग्जिट पोल के अनुमानों को सिरे से ही खारिज करते दिखाई दिए हैं। लगभग सभी टीवी चैनल भी एग्जिट पोल का प्रसारण करते समय बार-बार उल्लेख करते रहे कि ये केवल एग्जिट पोल हैं, एग्जेक्ट पोल नहीं। अब यह तो 4 जून को चुनाव परिणाम सामने आने के बाद स्पष्ट हो ही जाएगा कि इस बार के एग्जिट पोल सटीक साबित होते हैं या केवल हवा-हवाई। दरअसल पिछले कुछ चुनावों में कुछेक एग्जिट पोल के अनुमान भले ही काफी हद तक चुनाव परिणामों के करीब रहे हों लेकिन यह भी सच है कि कम से कम भारत में तो एग्जिट पोल का इतिहास ज्यादा सटीक नहीं रहा है।
वैसे तो एग्जिट पोल ओपिनियन पोल का ही हिस्सा होते हैं, किंतु ये मूल रूप से ओपिनियन पोल से अलग होते हैं। ओपिनियन पोल में मतदान करने और नहीं करने वाले सभी प्रकार के लोग शामिल हो सकते हैं। ओपिनियन पोल मतदान के पहले किया जाता है, जबकि एग्जिट पोल चुनाव वाले दिन ही मतदान के तुरंत बाद किया जाता है। एग्जिट पोल से पहले चुनावी सर्वे किए जाते हैं और सर्वे में बहुत से मतदान क्षेत्रों में मतदान करके निकले मतदाताओं से बातचीत कर विभिन्न राजनीतिक दलों तथा प्रत्याशियों की हार-जीत का आकलन किया जाता है। अधिकांश मीडिया संस्थान कुछ प्रोफेशनल एजेंसियों के साथ मिलकर एग्जिट पोल करते हैं। ये एजेंसियां मतदान के तुरंत बाद मतदाताओं से यह जानने का प्रयास करती हैं कि उन्होंने अपने मत का प्रयोग किसके लिए किया है और इन्हीं आंकड़ों के गुणा-भाग के आधार पर यह जानने का प्रयास किया जाता है कि कहां से कौन हार रहा है और कौन जीत रहा है। इस आधार पर किए गए सर्वेक्षण से जो व्यापक नतीजे निकाले जाते हैं, उसे ही एग्जिट पोल कहा जाता है। चूंकि इस प्रकार के सर्वे मतदाताओं की एक निश्चित संख्या तक ही सीमित रहते हैं, इसलिए एग्जिट पोल के अनुमान हमेशा सही साबित नहीं होते।
एग्जिट पोल सदैव मतदान प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही दिखाए जाते हैं। मतदान खत्म होने के कम से कम आधे घंटे बाद तक एग्जिट पोल का प्रसारण नहीं किया जा सकता। इनका प्रसारण तभी हो सकता है, जब चुनावों की अंतिम दौर की वोटिंग खत्म हो चुकी हो। मतदान से पहले या मतदान प्रक्रिया के दौरान एग्जिट पोल सार्वजनिक नहीं किए जा सकते बल्कि मतदान प्रक्रिया पूरी होने के आधे घंटे बाद ही इनका प्रकाशन या प्रसारण किया जा सकता है। यदि कोई चुनाव कई चरणों में भी सम्पन्न होता है तो एग्जिट पोल का प्रसारण अंतिम चरण के मतदान के बाद ही किया जा सकता है लेकिन उससे पहले प्रत्येक चरण के मतदान के दिन डेटा एकत्रित किया जाता है।
महत्वपूर्ण प्रश्न यही है कि एग्जिट पोल बढ़-चढ़कर किए जाने वाले अपने दावों में बहुत बार फेल क्यों साबित होते हैं? दरअसल एग्जिट पोल वास्तव में कुछ और नहीं बल्कि वोटर का केवल रूझान ही होता है, जिसके जरिये अनुमान लगाया जाता है कि नतीजों का झुकाव किस ओर हो सकता है। एग्जिट पोल के दावों का ज्यादा वैज्ञानिक आधार इसलिए भी नहीं माना जाता क्योंकि ये कुछ सौ या कुछ हजार हजार लोगों से बातचीत करके उसी के आधार पर ही तैयार किए जाते हैं। एग्जिट पोल में प्राय: मीडिया से आ रही खबरों, चुनाव का इतिहास और हवा के रूख का घालमेल भी शामिल रहता है। जब कोई मतदाता अपना मत देकर मतदान केंद्र से बाहर निकलता है तो एग्जिट पोल कराने वाली एजेंसियां उससे उसका रूझान पूछ लेती हैं। अधिकतर एग्जिट पोल परिणामों को प्राय: समझ लिया जाता है कि ये पूरी तरह सही ही होंगे किन्तु ये केवल अनुमानित आंकड़े ही होते हैं और कोई जरूरी नहीं कि मतदाता ने सर्वे करने वालों को सच्चाई ही बताई हो।
दरअसल सर्वे के दौरान मतदाता बहुत बार इस बात का सही जवाब नहीं देते कि उन्होंने अपना वोट किस पार्टी या प्रत्याशी को दिया है। देश में चुनाव प्राय: विकास के नाम पर या फिर जाति-धर्म के आधार पर ही लड़े जाते रहे हैं और विधानसभा चुनावों में बहुत से स्थानीय मुद्दे भी हावी रहते हैं, ऐसे में यह पता लगा पाना आसान नहीं होता कि मतदाता ने अपना वोट किसे दिया है। दुनियाभर में अधिकांश लोग एग्जिट पोल को अब विश्वसनीय नहीं मानते और यही कारण है कि कई देशों में इन पर रोक लगाने की मांग होती रही है। बहरहाल, अब देखना यही है कि एग्जिट पोल आखिर कितने एग्जेक्ट पोल साबित होते हैं?