- ये हैं निगम के मठाधीश, लंबे समय से एक ही सीट पर जमे
- नगर निगम में भ्रष्टाचार पहुंचा चरम पर
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: शासन के आदेश भी नगरायुक्त के लिए कोई मायने नहीं रखते। तीन वर्ष के भीतर निगम में कर्मचारियों के पटल परिवर्तन होने चाहिए, ऐसा नियम हैं, लेकिन यहां नियमों का पालन नहीं हो रहा हैं। एक सीट पर आठ-आठ वर्षों से कर्मचारी जमे हुए हैं। लंबे समय से एक ही सीट पर कर्मियों की तैनाती रहने से कर्मचारी मठाधीश हो गए हैं।
कर्मचारी मनमाफिक काम करते हैं, अधिकारियों की भी नहीं सुनते। यही वजह है कि नगर निगम में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया हैं, जिसके चलते एंटी करप्शन की टीम को छापेमारी कर भ्रष्टाचार के मामले में पकड़ने पड़ रहे हैं। इसके बाद भी निगम में कर्मचारियों के पटल परिवर्तन नहीं किये जा रहे हैं। आखिर पटल परिवर्तन नहीं करने के पीछे आला अफसरों की मंशा क्या हैं?
रंगे हाथ रिश्वत लेने के मामले में गिरफ्तार हुए नवल सिंह राघव भी लंबे समय से गृहकर में गंगानगर में ही तैनात थे। गृहकर में भी परिवर्तन नहीं किया जा रहा हैं, जिसके चलते भ्रष्टाचार के मामले बढ़ रहे हैं। गृहकर विभाग में नवीन रस्तोगी भी लंबे समय से एक ही सीट पर जमे हुए हैं। यही नहीं, जन्म मृत्यु प्रमाण पत्र कार्यालय में दिनेश सचान 12 वर्ष से इसी सीट पर जमे हुए हैं।
जन्म मृत्यु कार्यालय में तत्कालीन नगरायुक्त मनीष बंसल ने दो दलालों को पकड़ लिया था, जिसमें दोनों दलाल चकमा देकर फरार हो गए थे। तब उन्होंने स्वीकार भी किया था कि जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र रुपये देकर बनवाते हैं। ये रुपये कहां जाते हैं, यह सब जगजाहिर हैं। निर्माण विभाग में प्रदीप जोशी पिछले नौ वर्ष से एक ही सीट पर जमे हुए हैं। उनका पटल परिवर्तन नहीं हुआ। कोई भी अधिकारी उनकी सीट नहीं हिला सका।
इसकी चर्चा भी नगर निगम में आम हैं। अंकुर विश्नोई केन्द्रीय कार्यालय में 15 वर्ष से तैनात हैं। एक ही सीट पर इतना लंबा कार्यकाल किसी का नहीं हो सकता। इनको भी अधिकारियों की खास मेहरबानी के चलते सीट से हटाया ही नहीं जाता हैं। अनीस पर कई गंभीर आरोप लगे, उनको कई अतिरिक्त चार्ज वर्तमान में दिये गए। वो नगरायुक्त की आंखों के तारे बने हुए हैं, जिसके चलते उन पर भी खास मेहरबानी हैं। उनका भी पटल परिवर्तन नहीं किया गया।
शासन के आदेश का यहां पालन ही नहीं हो रहा हैं। इसी तरह से डूडा कार्यालय में जगत पाचा की तैनाती पिछले 10 वर्षों से हैं। वहां से उन्हें नहीं हटाया गया। आखिर डूडा कार्यालय में क्या खास रुचि जगत पाचा ले रहे हैं। जब भी उनको हटाने की बात सामने आती है तो कोई न कोई अप्रोच लगाकर फिर से तबादला रुकवा लिया जाता हैं। नियम यह कहता है कि तीन वर्ष बाद प्रत्येक सीट चेंज हो जानी चाहिए,
ये आदेश शासन के हैं, लेकिन इन आदेशों का पालन नगर निगम में नहीं होता। सनी बादली आॅडिट विभाग में आठ वर्ष से तैनाती पा रहे हैं। इनका भी पटल परिवर्तन नहीं हुआ। एक बार जो जहां तैनात हो गया, वहीं पर अंगद के पैर की तरह से जम गया। विशाल शर्मा हाउस टैक्स में आठ वर्षों से एक ही सीट पर तैनाती पा रहे हैं। उनको हटाने की नगर निगम में अधिकारियों में हिम्मत नहीं हैं। क्योंकि कोई न कोई अप्रोच लेकर ये आ जाते हैं,
जिसके चलते पटल परिवर्तन कभी नहीं हुआ। अनिल चौधरी आॅडिट विभाग में दस वर्षों से एक ही सीट पर जमे हुए हैं। इसी तरह से निशांत शर्मा भी लेखा विभाग में एक ही सीट पर जमे हुए हैं। मजाल कोई इनको हटा दे। अनिकेत लेखा विभाग में दस वर्षों से तैनाती पा रहे हैं।
ये सभी निगम कर्मचारी एक ही सीट पर लंबे समय तक तैनाती पाने के कारण मठाधीश बन गए हैं। इनको हटाने का कोई प्रयास नहीं किया जाता हैं। यही वजह हैं कि नगर निगम में भ्रष्टाचार रुकने की बजाय बढ़ता जा रहा हैं। ये सभी नगरायुक्त की आंखों के तारे बने हुए हैं, जिसके चलते इन पर पटल परिवर्तन नहीं करने की मेहरबानी हो रही हैं।