Monday, December 30, 2024
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करुणा और दया

 

Amritvani 9

 


करुणा का अर्थ कमजोर व्यक्तियों या प्राणियों के प्रति उत्पन्न होने वाले उस भावना से है, जो उनकी उस कमजोर स्थिति को समझने तथा उसके प्रति समानुभूति की चिंता रखने से उत्पन्न होती हैं। यह भावना व्यक्ति को प्रोत्साहित करती है कि वह पीड़ित के दु:ख दूर करने में सहायता करे। माना जाता है कि संपूर्ण विश्व में परोपकार की भावना का मूल तत्व करुणा ही है। करुणा से मिलता जुलता एक अन्य भाव दया है। दया एक विशिष्ट भाव है, जो किसी विशिष्ट व्यक्ति या प्राणी के प्रति उत्पन्न होती है, जैसे विशेष परिस्थिति में सड़क पर किसी दुर्घटनाग्रस्त जीव को देखकर दया का भाव आना। बुद्ध ने करुणा को नैतिकता का मूल आधार माना है और वह करुणा सामान्य के प्रति ही है। दया में यह निहित होता है कि दया का पात्र खुद उबरने में समर्थ नहीं है जबकि दया करने वाला समर्थ हो सकता भी है और नहीं भी। करुणा तुलनात्मक रूप से स्थायी भाव है। बौद्ध धर्म में करुणा का अर्थ है यह कामना कि दूसरे अपने दु:ख और उनके कारणों से मुक्त हों। यह दूसरों की भावनाओं को समझने पर आधारित है विशेषकर जब हम स्वंय उन कठिन अनुभवों से गुजर चुके हों। भले ही हमने कभी वह अनुभव नहीं किया हो जो वे कर रहे हैं, तब भी हम उनकी जगह स्वंय को रखकर देख सकते और महसूस कर सकते हैं कि वह अनुभव कितना भयंकर है। 14वें दलाई लामा कहते हैं कि प्रेम और करुणा आवश्यकताएं हैं, विलास के साधन नहीं हैं। उनके बिना, मानवता का अस्तित्व नहीं बना रह सकता है। करुणा हमारे दिलो-दिमाग को दूसरों के लिए खोलती है और हमें उस आत्म-निर्मित कारा से मुक्त करती है जहां हम केवल अपने ही बारे में सोच पाते हैं।
-सूर्यदीप कुशवाहा


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