- आदिशंकराचार्य ने की थी इस मंदिर में पूजा
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: पश्चिम उत्तर प्रदेश के मेरठ में ऐसे-ऐसे प्राचीन मंदिर देखने को मिलेंगे जो भारतीय प्राचीन संस्कृति की विरासत है। मेरठ में एक ऐसा मंदिर है भी हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि पूरे भारत में सिर्फ आठ ही मंदिर ऐसी बने हुए है। वहीं उत्तर भारत में सिर्फ मेरठ ही वो स्थान है जहां सम्राट पैलेस में राज राजेश्वरी मां के नाम से एक मंदिर बना हुआ है।
यहां मां भगवती की अनोखी मूर्ति के दर्शन करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती है। भोले बाबा की नाभि से निकले कमल में आसीन है मां ब्रह्मचारी राधिकानंद की माने तो भस्मासुर की राख से उत्पन्न हुए दैत्य का संघार करने के लिए मां राजराजेश्वरी देवियों की शक्ति से उत्पन्न हो अग्नि से प्रकट हुई थी और उस राक्षस का वध किया था, लेकिन मां राजराजेश्वरी का तेज इतना था कि कोई भी सवारी उनके तेज के आगे रुक नहीं पा रही थी।
ऐसे में भगवान ब्रह्मा विष्णु और महेश ने उनका आसन बनाया। श्री विद्यापीठ ब्रहलीन जगदगुरु शंकराचार्य महाराज ज्योतिष पीठाधीश्वर और द्वारिका शादरा पीठाधीश्वर स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती ने इस मंदिर में साल 1989 में मां राज राजेश्वरी और त्रिपुर सुंदरी की स्थापना व पूजन किया था।
भवानी के साथ 64 योगनियों की अराधना है अनिवार्य
महंत राधिकानंद ब्रह्मचारी ने बताते हैं कि मां ने जब भंड दैत्य के संहार के लिए राजराजेश्वरी रूप में अवतार लिया, तो अपनी 64 शक्ति का आह्वान किया। मां की शक्ति के रूप में ये 64 योगनियां प्रकट हुईं। मां की सहायता के लिए ये 64 देवियां ही उनकी सेना बनीं। ये 64 देवियां मां राजराजेश्वरी की 64 योगनियां हैं। एक करोड़ की एक सेनानायिका होती है। यानी एक करोड़ की एक सेनानायिका एक योगनी है।
मां राजराजेश्वरी 64 योगनियां की प्रधान हैं। इस प्रकार देवी की ये 64 योगनियां 64 करोड़ की सेना नायिकाएं हैं। मां राजराजेश्वरी उनकी प्रधान हैं। भगवती की आराधना के साथ 64 योगनियों की आराधना करना जरूरी होता है। स्वामी के पूजन के साथ गणों की सेवा भी अनिवार्य है। जैसे शिव उपासना में उनके गणों की उपासना अनिवार्य है। गणों की आराधना से ही साधना संपन्न होती है। पहले गण आराधना करें, फिर स्वामी की आराधना की जाती है।