Saturday, December 28, 2024
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कामयाबी के लिए डर से लड़ना जरूरी

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विश्व इतिहास में ऐसे कई महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपने जीवन के कई समस्याओं और डर से साहसपूर्वक लड़कर ऐतिहासिक कामयबियां हासिल कीं हैं। इन महापुरुषों ने कभी भी अपने जीवन में कठिन परिस्थतियों के भय से अपने जीवन को अवरुद्ध नहीं होने दिया। जब डर लगने लगे तो अपने जीवन के सपनों को याद करिए और डर का साहसपूर्वक सामना करते हुए आगे बढ़ते रहिए।

बारह साल के एक बच्चे संस्कार की यह कहानी काफी प्रेरणादायी है। वह बच्चा कुत्ते से काफी डरता था और इसके कारण वह अपने घर से बाहर नहीं निकलता था। कुत्ते को देखकर वह जितनी तेजी से भागता था कुत्ता उससे अधिक तेजी से उसके पीछे लपक जाता था। जीवन जीना उसके लिए काफी कठिन हो गया था। उसके माता-पिता उसे बहुत समझाते थे, किंतु इसका उस पर कोई असर नहीं होता था।

किसी दिन उसके गांव में एक सिद्ध बाबा आए थे। संस्कार भी अपने पेरेंट्स के साथ उनके दर्शन करने गया था। संस्कार के माता-पिता ने उस सिद्ध बाबा से अपने बेटे संस्कार की समस्या के समाधान के बारे में पूछा। बाबा ने संस्कार को इस प्रकार समझाया, ‘जब भी तुम्हारे सामने कोई कुत्ता दिख जाए तो एक काम करना। भागना बिल्कुल नहीं। अपने पैरों के पास से एक पत्थर का टुकड़ा उठा कर कुत्ते की तरफ उसे मारने के लिए उठाना।

यदि पैरों के पास पत्थर का टुकड़ा नहीं हो तो भी कुत्ते को मारने के लिए नीचे से कुछ उठा कर मारने का नाटक करना है। परिणामस्वरूप कुत्ता भौंकना बंद कर देगा और वह पीछे लौट जाएगा।’ जीवन के इस अत्यंत सरल सिद्धांत में जीवन का एक अनमोल संदेश छुपा हुआ है और वो यह कि समस्याओं से डर कर भागने पर वो और भी गंभीर हो जाती हैं और हम अपने लक्ष्य की सिद्धि में असफल हो जाते हैं।

दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने एक बार कहा था, ‘बहादुर व्यक्ति वह नहीं है जिसे कि डर नहीं लगता है बल्कि वह है जो कि डर पर विजय प्राप्त कर लेता है।‘आशय यह है कि मानव जीवन में भय स्वाभाविक है और हर व्यक्ति को डर लगता है।

कोई अपने जीवन के डर से इस तरह से भयभीत हो जाता है कि जीवन में आगे कदम बढ़ाना ही छोड़ देता है तो कोई जीवन का वहीं पर पूर्णविराम समझ लेता है। किन्तु कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो जीवन के डर का साहसपूर्वक सामना करते हैं और अपनी राह पर बिना घबराए चलते हुए अपने मुकाम को हासिल करते हैं।

मानव जीवन में डर स्पीड ब्रेकर का कार्य करता है। हम इसके कारण जीवन में अपने ही द्वारा निर्मित खूँटे से बंध कर रह जाते हैं। हम न तो जीवन में किसी लक्ष्य को हासिल करने का कोई सपना देख पाते हैं और न ही खुद की प्रगति के लिए कोई कदम उठाने का साहस कर पाते हैं। यदि डर जीवन को इस प्रकार से बांधता है और हमें प्रगति की राह पर आगे बढ़ने से रोकता है तो प्रश्न यह उठता है कि आखिर डर का मुकाबला कैसे किया जाए, किस प्रकार डर का शमन किया जाए।

डर को पहचानना है जरूरी

कभी झ्र कभी तो हमें यह पता ही नहीं होता है कि आखिर हम किससे और किसलिए डर रहे हैं। डर को खत्म करने के लिए पहले यह जानना जरूरी है कि हमें भयभीत क्या कर रहा है। जब हमें अपने डर का कारण ज्ञात हो जाता है तो फिर इस पर जीत हासिल करना बहुत ही आसान हो जाता है। लिहाजा खुद से यह प्रश्न पूछिए कि आखिर आपके जीवन में डर का क्या कारण है और फिर उससे लड़ने के लिए उपाय ढूंढने चाहिए।

डर से डरिए मत, डर को समझिए

संयुक्त राज्य अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति एफडी रूजवेल्ट ने डर के बारे में कहा था, ‘हमें दुनिया में केवल एक चीज से डरना चाहिएऔर वह है डर।’ प्रत्येक डर के पीछे एक मनोविज्ञान या विज्ञान होता है और जब हम इसे समझ लेते हैं तो फिर डर नहीं लगता है।

पोलैंड की रहनेवाली और फिजिक्स और केमिस्ट्री में नोबल पुरस्कार से सम्मानित मेरी क्यूरी का मानना था, ‘जीवन में किसी चीज से भयभीत होने की जरूरत नहीं है। इसे केवल समझने की जरूरत है।’ जीवन में ऐसे कई डर हैं जिनके कारणों को हम समझने की कोशिश नहीं करते हैं और हम भयभीत हो जाते हैं। लिहाजा किसी भी भय को समझ कर उसे दूर किया जा सकता है।

भय से हर दिन सीखिए लड़ना

यह तय है कि भय मानव जीवन का एक अहम हिस्सा है और इसे हम नकार नहीं सकते हैं। ऐसी परिस्थिति में डर के कारण यदि हम अपने जीवन में अपने लक्ष्य की सिद्धि के लिए प्रयास करना छोड़ दें तो फिर हम कभी भी कामयाब नहीं हो सकते हैं। इसीलिए यह जरूरी है कि हमें अपने जीवन में प्रत्येक दिन छोटे-छोटे भय से लड़ते रहना चाहिए। ऐसा करने से भय से लड़ने के लिए जरूरी आत्मविश्वास बढ़ता जाता है, हमें भय का सामना करना आ जाता है और हम अपने जीवन में कामयाबी की राहों पर आगे बढ़ते जाते हैं।

अमेरिका के प्रसिद्ध कवि और प्रखर वक्ता राल्फ वाल्डो इमर्सन ने भी भय के बारे में प्राय: इसी बात को प्रमुखता से उल्लेख किया है, ‘जो व्यक्ति अपने जीवन मे प्रत्येक दिन किसी न किसी भय को जीतता नहीं है उसने जीवन जीने का रहस्य नहीं सीखा है।‘जीवन के भय का धीरे झ्र धीरे सामना करने की कला को सीखना ही जीवन में आगे बढ़ने का रास्ता खोलता है।

डर से बड़े होते हैं जीवन के सपने

विश्व इतिहास में ऐसे कई महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपने जीवन के कई समस्याओं और डर से साहसपूर्वक लड़कर ऐतिहासिक कामयबियां हासिल कीं हैं। इन महापुरुषों ने कभी भी अपने जीवन में कठिन परिस्थतियों के भय से अपने जीवन को अवरुद्ध नहीं होने दिया। आशय यह है कि जब हम अपने जीवन में किसी लक्ष्य की सिद्धी की दिशा में आगे बढ़ते हैं तो कई प्रकार के डर सामने आ खड़े होते हैं।

यदि इन सभी भय से लड़ने की बजाय हम उनके सामने खुद को हारा हुआ मान बैठते हैं तो फिर जीवन में कभी भी कुछ हासिल नहीं होता है। इसीलिए यह मानकर चलना चाहिए कि हमारे जीवन के डर हमारे जीवन के सपनों से कदापि बड़े नहीं होते हैं। लिहाजा जब डर लगने लगे तो अपने जीवन के सपनों को याद करिए और डर का साहसपूर्वक सामना करते हुए आगे बढ़ते रहिए।

भय ऐसे भागता है-

  • – आत्मविश्वास को डिगने नहीं दें, खुद की योग्यता और सामर्थ्य में पूरा भरोसा करें।

  • – कहते हैं कि कुछ भय टिशू पेपर जैसे कमजोर होते हैं, साहसपूर्वक उनसे लड़ें और आप कामयाब होंगे।

  • – किसी डर के कारण अपने सपनों या लक्ष्य की सिद्धि के लिए पीछा करना बंद नहीं करें।

  • – बीती हुई घटनाओं के बारे में फिक्र नहीं करें और न ही आनेवाले कल की घटनाओं के परिणामों से भयभीत रहें।

  • – जीवन में कोई भी किसी भी डोमैन में परफेक्ट नहीं होता है। इसलिए परफेक्शन के डर से भी बचे रहें।

  • – तैरने की कला में माहिर होने के क्रम मे डूबने के भय से हम तैरना कभी भी नहीं सीख पाएंगे।

  • – जिस कार्य को करने से आपको सबसे अधिक डर लगता हो उसे करें और उसके संपादित होने पर आप डरना बंद कर देंगे।

  • – मार्क ट्वेन ने कहा था, ‘साहस भय से प्रतिरोध है, भय पर मास्टरी है, लेकिन यह भय की अनुपस्थिति नहीं है।‘लिहाजा भय का शमन करना सीखें, इसे खत्म करना आसान नहीं है।

  • – असफल होने से मत डरें। असफलता जीवन में कई अहम सबक सिखा जाते हैं।

  • – डर एक मानसिक अवस्था है। डर पर नियंत्रण के लिए मन को मजबूत रखें।

  • -अंधविश्वास के कारण डर का जन्म होता है, इसीलिए बुद्धि और विवेक से जीवन में आगे बढ़ें।

                                                                                                                 श्रीप्रकाश शर्मा


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