Monday, June 30, 2025
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मन पर नियंत्रण ही असली विजय: अनिरुद्धाचार्य

  • बार-बार भागवत कथा सुनने से मनुष्य को होती है शांति की अनुभूति
  • जलभराव में बैठकर श्रद्धालुओं ने सुनी कथा

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: सदर भैंसाली मैदान में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन श्रोताओं ने कृष्ण के भजनों पर जमकर नृत्य किया। गौर करने वाली बात यह थी महिलाओं व पुरुषों के साथ-साथ युवाओं में भी वृदांवन से पधारे कथावाचक अनिरुद्धाचार्य को निहारे के लिए कतार लगी हुई थी। इतना ही नहीं उनके दर्शन के लिए मेरठ के साथ-साथ रुड़की, बागपत, बुलंदशहर, गाजियाबाद आदि से भी श्रोता आए हुए थे।

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अनुरुद्धाचार्य के मंच पर पहुंचते ही लोगों ने जयकारे लगाने शुरु कर दिए। भारी तादाद में श्याम प्रेमियों ने कथा में भाग लिया। कथा के दूसरे दिन महाराज ने विष्णु भगवान के विराट स्वरुप के बारे में भक्तों को बताया और ध्रुव चरित्र का वर्णन किया। वहीं उन्होंने कहा कि मन पर नियंत्रण करना सबसे बड़ा काम है। यदि कोई इंसान पूरे विश्व को जीत सकता है और अपने मन पर काबू नहीं पा सकता तो उसे विजयी नहीं कहा जा सकता।

खाली दिमाक शैतान का घर होता है। नाम जाप करने वाले व्यक्ति के बारे में चर्चा करते हुए महाराज ने कहा कि नाम जाप करने वाले को किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि वह प्रभु की शरण में हैं, यदि आपने ऐसे व्यक्ति की निंदा की है तो उससे आपको क्षमा मांगनी चाहिए। धर्म गहरा होता हैं, धन से बड़ा धर्म नहीं होता। पापी भी धन कमा लेता है, लेकिन धन के लिए धर्म को मत बिगाड़ो।

बेटे को धर्मवान बनाओं। प्राण चले जाए लेकिन धर्म न जाए। सुखदेव जन्म की कथा का वर्णन करते हुए अनिरुद्धाचार्य ने त्याग के बारे में जानकारी दी और बताया कि त्याग से क्या मिलता है। त्याग से सुख मिलता है और उससे ही भगवान की प्राप्ति होती है। रावण धनवान था, लेकिन उसके अंदर धर्म नहीं था।

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रावण ने सीता माता से पहले भी पता नहीं कितनी महिलाओं के साथ बुरा व्यवहार किया। रावण को धनवान कह सकते हैं, लेकिन धर्मवान नहीं। संत्सग पर चर्चा करते हुुए महाराज ने कहा कि कलयुग में संत्सग ही जीवन को पार लगाने का एक मात्र साधन है। वहीं आपको प्रभु के करीब ले जा सकता है। संत्सग की महिमा अपार है और चरित्र सबसे बड़ा धन है।

महाभारत से भी मिलती है सीख

महाभारत पर चर्चा करते हुए महाराज ने कहा कि इसकी कथा हमे सिखाती है कि हमें सही गलत का बोध जरुर होना चाहिए। यदि गांथारी अपनी आंखों पर पट्टी न बांधती तो उनका पति ऐसा नहीं होता। अपने जीवन में केवल गांधारी ने एक बार ही पट्टी उतारी थी, लेकिन द्रोपदी के लिए नहीं।

पंडाल में जगह न मिलने पर निराश लौटे भक्त

बारिश की वजह से पंडाल में पानी भरा हुआ है। जिसकी वजह से नीचे बैठने के लिए जगह नहीं है और पंडाल में लगी कुर्सियां भर जाने की वजह से काफी लोगों को बिना कथा सुने ही वापस जाना पड़ा और कुछ लोग पंडाल के बाहर सड़क पर खड़े होकर भी कथा सुनते नजर आए।

महाराज के दर्शन का महिलाओं में दिखा उत्साह

मेरठ समेत दूर-दराज से महिलाएं अनिरुद्धाचार्य की कथा का श्रवण करने के लिए पहुंची। वहीं महिलाओं में इस दौरान महाराज दर्शन करने की भी लालसा नजर आई। जगह न मिलने की वजह से कुछ लोग केवल महाराज के दर्शन कर की वापस लौट गए।

तेरे फूलों से भी प्यार तेरे कांटों से भी प्यार गीत पर झूमे भक्त

कथा के दौरान बीच-बीच में महाराज ने राधा-कृष्ण के भजनों को गाकर सुनाया। जिन्हें सुन पंडाल में मौजूद अपने स्थान से खड़े होकर झूमने लगे और कान्हा की भक्ति में रम गए। वहीं क्यों घबराऊ मैं मेरा तो श्याम से नाता है आदि गीत भी कथा के दौरान महाराज द्वारा सुनाए गए। महिलाएं कथा सुनने के लिए अपने लड्डू गोपाल और युगल जोड़ी को भी लेकर पहुंची।

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