किसी गांव में एक दर्जी रहता था। वह दिन भर अपने काम में लगा रहता था और उसी बीच समय निकालकर ईश्वरोपासना करता था। वह प्राय: कहीं जाता नहीं था, लोग ही उसके पास आते। कई बार वह लोगों की बड़ी-बड़ी से समस्याएं चुटकियों में सुलझा देता था। गांव के लोग कहते कि उसका स्वभाव फकीर जैसा है। वास्तव में उसका स्वभाव था भी फकीरों जैसा ही। उसका एक बेटा भी था, जो गांव की पाठशाला में पढ़ता था। एक दिन वह पाठशाला से जल्दी लौट आया। आकर वह अपने पिता के पास बैठ गया। वह बड़े ध्यान से अपने पिता को काम करते हुए देखने लगा। उसने देखा कि उसके पिता कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबाकर रख देते हैं। फिर सुई से उसको सिलते हैं और सिलने के बाद सुई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं। जब उसने इसी क्रिया को चार-पांच बार देखा। वह सोचने लगा कि पिताती ऐसा क्यों करते हैं? जब उससे रहा नहीं गया, तो उसने अपने पिता से कहा कि वह उनसे एक बात पूछना चाहता है। दर्जी ने कहा, बोलो, क्या पूछना चाहते हो? बेटा बोला, मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं। आप कपड़ा काटने के बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं और सुई से कपड़ा सिलने के बाद उसे टोपी पर लगा लेते हैं। ऐसा क्यों करते हैं आप? अपने बेटे के इस प्रश्न पर दर्जी मुस्कराया, कुछ सोचा और फिर उसने जवाब दिया, बेटा, कैंची काटने का काम करती है और सुई जोड़ने का काम करती है। काटने वाले की जगह हमेशा नीचे होती है, पर जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है। यही कारण है कि मैं सुई को टोपी पर लगाता हूं और कैंची को पैर के नीचे। बेटे को इस वाक्य में जीवन का सार मिल गया।