आज हम आपको आलू की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के बारें में बताने वाले हैं।
चेपा
आलू खेती में चेपा रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों और उसके कोमल भागों पर दिखाई देता है। जो कीट के माध्यम से फैलता है। इस रोग के कीट पौधे पर एक समूह में पाए जाते हैं। जिनका आकार काफी छोटा दिखाई देता है। ये कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उनके विकास को प्रभावित करते हैं। इस रोग के कीट पौधे का रस चूसने के बाद चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं। जिससे पौधे पर काली फफूंद का रोग उत्पन्न हो जाता है।
रोकथाम: इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डाइमेथोएट या मैटासिस्टाक्स की 300 मिलीलीटर मात्रा को 300 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर प्रति एकड़ की दर से छिड़कना चाहिए।
इसके अलावा जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए पौधों पर नीम के तेल या नीम के आर्क का छिडकाव 15 दिन के अंतराल में दो बार करना चाहिए।
अगेती अंगमारी
आलू के पौधों में अगेती अंगमारी रोग का प्रभाव आल्तेरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंद की वजह से फैलता है। इस रोग का प्रभाव पौधों पर रोपाई के लगभग एक महीने बाद दिखाई देता है। पौधों पर यह रोग नीचे से ऊपर की तरफ बढ़ता है। रोग की शुरूआत में इससे ग्रसित पौधों की नीचे की पत्तियों पर छोटे छोटे गोल आकार के भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। रोग बढ़ने पर ये धब्बे पौधे की ऊपरी पत्तियों पर भी दिखाई देने लगते हैं। जिनका आकार बढ़ जाता है। इससे प्रभावित पौधों पर कंद छोटे और कम संख्या में बनते हैं।
रोकथाम: इस रोग की रोकथाम के लिए इसके कंदों की रोपाई टाइम से करनी चाहिए और रोग रोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।
इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैंकोजेब या जिनेब दावा का 10 दिन के अंतराल में दो से तीन बार छिडकाव करना चाहिए।
हरा तेला
आलू के पौधों में हरा तेला का रोग कीट की वजह से फैलता है। इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसते हैं। जिससे पौधे की पत्तियां पीली और लाल दिखाई देने लगती हैं। जो कुछ दिनों बाद नष्ट होकर गिर जाती हैं। जिससे पौधों का विकास रुक जाता है।
रोकथाम: इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डाइमेथोएट या आॅक्सी डेमेटान मिथाइल की 300 मिलीलीटर मात्रा को 300 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर प्रति एकड़ की दर से छिड़कना चाहिए।
सफेद मक्खी
आलू के पौधों में सफेद मक्खी रोग का प्रभाव पौधों के विकास के दौरान दिखाई देता है। इस रोग के कीट सफेद रंग के होते हैं। जो पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर दिखाई देते हैं। इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर पौधों के विकास को रोकते हैं। रोग के अधिक उग्र होने की स्थिति में पौधे की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं। जो कुछ दिन बाद सूखकर गिर जाती हैं। इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसने के बाद चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं। जिससे पौधों पर फफूंद जनित रोग का प्रभाव बढ़ जाता है।
रोकथाम: इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में चार से पांच फोरमेन ट्रेप को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में लगा देना चाहिए।
इसके अलावा रासायनिक तरीके से रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करना चहिये।
पछेती अंगमारी
आलू की फसल में पछेती अंगमारी सबसे ज्यादा हानि पहुंचाने वाला रोग है। इस रोग के लगने पर सम्पूर्ण फसल चंद दिनों में खराब हो जाती है। पौधों में ये रोग फफूंद की वजह से फैलता है। इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों पर काले चित्ते दिखाई देते हैं। रोग का प्रभाव बढ़ने पर धब्बों का आकार बढ़ जाता है। जिससे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नही कर पाते। जिस कारण पूरे पौधे नष्ट हो जाते हैं।
रोकथाम: इस रोग की रोकथाम के लिए रोग रोधी किस्म के कंदों को उचित समय पर उगाना चाहिए।
खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर मैंकोजेब या जिनेब की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए। इसके अलावा रिडोमिल एम। जेड की उचित मात्रा का छिडकाव भी काफी लाभदायक होता है।
कुतरा कीट
आलू के पौधों में इस रोग का प्रभाव पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलता है। इस रोग के कीट की इल्ली पौधे की पत्तियों और तने को काटकर पौधों को नुक्सान पहुँचाती है। जबकि इसकी सुंडी आलू के कंद को नुक्सान पहुँचाती हैं। इसकी सुंडी आलू के कंदों में छेद बना देती हैं। जिससे किसान भाइयों को फसल से उचित दाम नहीं मिल पाते हैं।
रोकथाम: इस रोग की रोकथाम के लिए शुरूआत में खेत की गहरी जुताई कर उसे कुछ दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिए।
इसके अलावा आलू के कंदों को उपचारित कर ही खेतों में लगाना चाहिए। इसके लिए मेन्कोजेब या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए।
खड़ी फसल में पौधों पर इसके कीट का प्रभाव दिखाई देने के तुरंत बाद क्लोरपाइरीफोस की उचित मात्रा का छिड़काव कर देना चाहिए।
ब्लैक स्कर्फ
आलू के पौधों में ब्लैक स्कर्फ रोग का प्रभाव राइजोक्टोनिया सोलेनाई नामक फफूंद की वजह देखने को मिलता है। पौधों पर यह रोग किसी भी अवस्था में दिखाई दे सकता है। जो मौसम में अधिक तापमान और आद्रता के होने पर बढ़ता है। इस रोग के लगने पर पौधों पर काले उठे हुए धब्बे दिखाई देने लगते हैं। जो रोग बढ़ने पर कंदों पर भी हो जाते हैं। जिसे कंद खाने योग्य नही रहते।
रोकथाम: इस रोग की रोकथाम के लिए खेत की गहरी जुताई कर खेत