महंगाई का असर किस तरह से हमारी जेब पर भारी पड़ रहा है, इसका अंदाज इसी से लग जाता है कि बड़े और जाने माने उपभोक्ता सामग्री निर्माताओं ने अपने उत्पाद की दर बढ़ाने की बजाय उसकी मात्रा या यों कहे कि वजन कम करने को बेहतर विकल्प चुना है। अब किसी मॉल या बाजार में जाते हैं तो इतनी महंगाई बढ़ने के बाद भी पांच रुपए का बिस्कुट का पैकेट पांच में ही मिल रहा है तो कुरकुरे, टेडे-मेड़े, नमकीन, मोगर, चिप्स या इसी तरह के अन्य उत्पाद पांच या दस रुपए के पैक में ही मिल रहे हैं और आम उपभोक्ता उसी दर पर उपलब्ध समझ कर मजे से खरीद रहा है। दरअसल निर्माताओं ने अपने लोकप्रिय और फिक्स दर वाले उत्पादों के दाम बढ़ाने के स्थान पर इस तरह की गणित फिट की है कि दाम वही रहने दो और उपलब्ध माल का वजन या मात्रा कम कर दो। इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि उनके तयसुदा ग्राहकी में दूसरा ब्रॉण्ड सेंध नहीं लगा पाएगा तो आम उपभोक्ता पैकिंग में कितनी मात्रा है इस और ध्यान ही नहीं देता। यही कारण है कि आम उपभोक्ता को आसानी से भ्रमित रख कर ठगा जा रहा है। निर्माता का कहना है कि उसने आम उपभोक्ता के साथ किसी तरह की ठगी नहीं की, क्योंकि पैकिंग में जितनी मात्रा दर्शाई गई है उतनी उपलब्ध हैं वहीं आम उपभोक्ता को पता ही नहीं चल पाता कि निर्माताओं द्वारा खेल क्या किया जा रहा है?
दरअसल यदि हम किसी भी मॉल या किराना की दुकान पर कुछ खरीदने जाएंगे तो उपभोक्ता सामग्री के वजन को लेकर सबसे ज्यादा भ्रमित होते हैं। किसी भी खाद्य तेल के पाउच की बात की जाए तो बाजार में एक लीटर के नाम पर किसी कंपनी का उत्पाद 910 मिली का होता है तो किसी का 840 या किसी का 860 मिली के पैक में उत्पाद उपलब्ध होता है। अब वहां लगे रेट को देखने से पता लगता है कि अमुक कंपनी का खाद्य तेल का पाउच इतने रुपए का है तो दूसरी का इतने रुपए का। आम उपभोक्ता की यह समझ से परे की बात होती है कि रेट कम वाले पाउच का वजन कितना है या अधिक रेट वाले पाउच में कितना वजन है। दरअसल एक लीटर के पाउच के बावजूद रेट और लीटर के नाम पर मिली लीटर के कम ज्यादा भावों के नाम पर आमनागरिक को भ्रमित किया जाता है।
इसी तरह से पिछले दिनों भावों में बढ़ोतरी के बाद नामी गिरामी कंपनियों के बिस्कुट के तय रेट वाले पैकिट की मात्रा के अंतर को समझा जा सकता है। कुछ इसी तरह की बात नमकीन, कुरकुरे, चिप्स आदि के पाउच में देखा जा सकता है। यह केवल खाद्य सामग्री तक ही सीमित नहीं है अपितु कॉस्मेटिक व अन्य उत्पादों पर आसानी से समझा जा सकता है। दैनिक उपभोग के शैंपू पाउच या पैकिंग में आसानी से मात्रा कम होना आम हो गया है। लगता है कि रेट वही हैं, पर मात्रा के नाम पर भ्रमित किए जाने का खेल खुलेआम चल रहा है।
यह तो किसी तरह से नहीं स्वीकारा जा सकता कि सरकार या संबंधित मंत्रालय को इस बारे में जानकारी ना हो। किसी भी सामग्री के दाम घटने बढ़ने पर सरकार भी नजर रखती है। सबसे मजे की बात खाद्य तेल के पाउच को लेकर समझा जा सकता है। अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि एक लीटर पाउच में कितनी सामग्री होनी चाहिए। एक लीटर के नाम पर निर्माता कंपनियों द्वारा 840 से लेकर 910 मिली लीटर में अलग अलग भावों में बेचे जा रहे हैं। अब आम नागरिक की रेट कम देखकर भ्रमित होने की संभावना अधिक रहती है। वह यह समझ कर ही चलता है कि उपलब्ध सभी पाउच एक लीटर के होंगे और दरों में कमी हैं, ऐसे में वह खरीदारी करते समय यह नहीं समझ पाता कि वह सस्ते के नाम पर पाउच में उपलब्ध सामग्री की कम मात्रा के रुप में छला गया है। सरकार के किसी भी स्तर पर यह बात छुपी हुई नहीं है ऐसे में एक लीटर के खाद्य सामग्री के पाउच की मात्रा सरकार द्वारा ही 1000 मिली तय कर दी जानी चाहिए। सरकार के स्पष्ट निर्देश होने चाहिए कि एक लीटर पाउच के नाम पर बेची जाने वाली सामग्री में सामग्री की मात्रा 1000 मिली ही हो। यदि ऐसा हो तो समस्या का काफी हद तक समाधान हो सकता है।
आम आदमी को आसानी से ठगी से बचाया जा सकता है। दरअसल इस संदर्भ में इग्नोर करने का एक कारण यह भी हो सकता है कि आम नागरिकों में बढ़ती महंगाई के बावजूद यह भ्रम बन रहे कि बिस्कुट पहले भी पांच रुपए का आ रहा था और आज भी पांच रुपये का आ रहा है। इसी तरह से अन्य उत्पादों की बात की जा सकती है। एक और निर्माताओं अपने ग्राहकों को बांधे रखने में सफल हो जाते हैं वहीं दूसरी और सरकार का हो सकता है कि एक सोच यह भी हो कि इससे महंगाई का शोरगुल अधिक नहीं होगा।
मजे की बात यह है कि बाजार के ये हालात आज की बात नहीं हैं। इसी तरह से आम नागरिक के साथ छलावे को यह कोई पहला मौका नहीं है। इसके साथ ही आम आदमी को भ्रमित रखने का यह एक तरीका है। पर मजे की बात यह है कि देश भर में उपभोक्ता हितों के नाम से खड़े गैरसरकारी संगठन या उपभोक्ता न्यायालयों में इस तरह की किसी ने जनहित याचिका लगाने की पहल नहीं की है। महंगाई को कमतर आंकने का यह रास्ता सही नहीं हो सकता। इस संदर्भ में गंभीर चिंतन और आमनागरिक के हित में ठोस निर्णय लेना होगा।