Saturday, December 14, 2024
- Advertisement -

फिर गंगा मैली की मैली क्यों?

Samvad 1

PANKAJ CHATURVEDIआस्था के केंद्र बनारस में गंगा और उससे मिलने वाली सहायक धाराओं-वरुणा और असि में पारंपरिक देशी मछलियों का मरना, उनकी संख्या कम होना और इस इलाके में यदा कदा ऐसी विदेशी अंछलियों का मिलना जो स्थानीय पर्यावरण को खतरा है, दर्शाता है कि नमामि गंगे परियोजना को अभी कागजों से ऊपर उठा कर बहुत कुछ करना है। मछली और जल-चर किसी भी जल धार का प्राण और मानक होती है। काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के प्राणी विभाग के एक ताजा शोध में बताया गया कि कि जानलेवा रसायनों के कारण गंगा, वरुणा और असि नदी में सिंघी और मांगुर समेत कई देसी प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं। यह बात बहुत गंभीर है कि मछलियों की प्रजनन क्षमता 80 प्रतिशत तक घट गई है। शोध बताता है कि वैसे तो जो मछली जितनी अधिक वजन की होती है, उसके अंडे उतने ही अधिक होते हैं। एक मछली औसतन तीन से पांच लाख तक अंडे देती है, लेकिन गंगा में अब यह संख्या घाट कर 50 से 70 हजार हो आगी है।

अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण पत्रिका ‘स्प्रिंगर’ और पुणे से प्रकाशित होने वाली भारतीय शोध पत्रिका ‘डायमेंशन आफ लाइफ साइंस एंड सस्टेनेबल डेवलेपमेंट’ में हाल ही में प्रकाशित शोध पत्र बतात‘ है कि रसायन दवाओं, माइक्रो प्लास्टिक, डिटर्जेंट, कास्मेटिक उत्पाद, पेंट,प्लास्टिक कचरा और रासायनिक खादों में मिलने वाले कि एल्काइल फिनोल और टर्ट-ब्यूटाइल फिनोल समेत कई विषाक्त रसायनों की वजह से गंगा और उसकी सहायक नदियों की मछलियों के अंडे देने की दर में भयानक गिरावट आई है। बीएचयू के प्राणी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर राधा चौबे, सहायक प्रोफेसर डा. गीता गौतम का शोध बतात है कि रसायनों के कारण मछलियों की भ्रूण में मौत हो रही है

गंगा देश की संस्कृति की पहचान और मानव विकास की सहयात्री है। इसके संरक्षण के अभी तक किये गए सभी प्रयास अमूर्त ही रहे हैं। वित्त वर्ष 2014-15 से लेकर 2020-2021 तक इस नमामि गंगे योजना के तहत पहले 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का रोडमैप तैयार किया गया था जो बाद में बढ़ाकर 30 हजार करोड़ रुपए कर दिया गया। वहीं 2022-23 में योजना मद में 2047 करोड़ आवंटित किए गए थे. वित्त वर्ष 2023-24 में 4000 करोड़ रूपए का बजट अनुमान रखा गया हालांकि आवंटन केवल 2400 करोड़ रूपए का ही किया गया। वहीं वित्तीय वर्ष 2024-25 में नमामि गंगे प्रोजेक्ट के फेज दो के लिए 3500 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। कुल मिलाकर विभिन्न नामों गंगे परियोजनाओं के तहत लगभग 37,550 करोड़ रुपये मंजूर किए गए, लेकिन रिकॉर्ड के अनुसार जून 2024 तक केवल 18,033 करोड़ ही खर्च किए गए। अकेले सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की लागत 15,039 करोड़ रुपये है।

यदि गंभीरता से काम किया जाए तो तंत्र की पहली भूमिका होती कि नदी में कम से कम अपशिष्ट जाए। फिर नदी के किनारे के शहर-कस्बों को नदी एक साथ बेहतर व्यवहार करने की सीख और प्रक्रिया समझआई जाती। दुर्भाग्य है किस समूचा तंत्र अधिक से अधिक एसटीपी लगाने में व्यस्त है। यह बात सरकारी आंकड़े कहते हैं कि इस परियोजना के अंतर्गत गंगा के किनारे स्थित शहरों में सीवर व्यवस्था का दुरस्त करने, उद्योगों द्वारा बहाए जा रहे अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण के लिए शोधन संयंत्र लगाने, गंगा घाटों पर शौचालय, जैव विविधता को बचाने, गंगा बचाने की सभी पहलुओं काम नहीं बहुत हुआ।
और फिर एसटीपी पर हुए खर्च से क्या गंगा की सेहत सुधरी? बीते एक महीनों के दौरान राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एन जी टी) में हुई कार्यवाही से इसका काला चिट्ठा उजागर हो चुका है। कितना दुर्भाग्य है कि गंगा अपने उद्गम से ही दयनीय हो जाती है। अभी 05 नवंबर 2024 को एनजीटी, उत्तराखंड में प्रस्तुत आंकड़े बताते हैं कि गंगोत्री में एक मिलियन लीटर हर दिन की क्षमता वाले सीवर ट्रीटमेंट प्लांट से लिए गए नमूने में 100 एमएल पानी में फेकल कॉलीफॉर्म की मात्रा 540 पाई गई। सनद रहे फेकल कॉलीफॉर्म मनुष्यों और जानवरों के मल मूत्र से निकलने वाले सूक्ष्म जीवाणु से उपजे प्रदूषण को दर्शाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानक के मुताबिक नहाने और आचमन करने लायक पानी की गुणवत्ता का मानक 500 से कम फेकल कॉलीफॉर्म प्रति 100 एमएल होता है। जाहिर है कि गंगोत्री में ही गंगा जल इंसान के इस्तेमाल के लायक नहीं हैं। फिलहाल एनजीटी ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को 13 फरवरी 2025 को विस्तार से रिपोर्ट देने को कहा गय है।

उत्तर प्रदेश के हालात तो और भी भयावह हैं। एनजीटी के सामने 22 अक्टूबर 2024 को यह स्वीकार करने में किसी को शर्म नहीं आई कि राज्य के लक्षित 326 में से 247 नायलॉन पर गंदे पानी को शुद्ध बनाने की व्यवस्था हो नहीं सकी है और लगभग 3513.16 एमएलडी सीवेज गंगा और सहायक नदियों में निरंतर गिर रहा है। उत्तर प्रदेश एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ के सामने 06 नवंबर 2024 को तथ्य सामने आए कि गंगा और यमुना के संगम प्रयागराज में निकलने वाले गंदे जल और स्थापित किए गए एसटीपी क्षमता में सीवेज शोधन क्षमता में 128 एमएलडी का फरक है। यह भी सच है कि कोई भी एसटीपी कभी अपनी पूर्ण क्षमता से तो काम करता नहीं। अर्थात प्रयागराज के कई नाले सीधे गंगा को गंदा कर रहे हैं। यहां 25 नाले बगैर शोधन के गंगा में और 15 यमुना में गिर रहे हैं। जिस अपरियोजन को ले कर इतना प्रचार और खर्च किया गया हो, उसकी जमीनी हकीकत प्रयागराज में दिखती है, जहां महाकुंभ की तैयारी चल रही है और करोड़ों लोग इसी नदी में डुबकी लगाएंगे। इससे नदी में प्रदूषण और बढ़ेगा ही।

गंगा का दर्द उस बनारस में असीम है, जहां से प्रधानमंत्री खुद सांसद हैं और खुद को गंगा के आमंत्रण पर काशी जाने का उद्घोष करते रहे हैं। इस नगर के आदिकाल से अस्तित्व के मूल कारण गंगा को आंकड़ों और कागजों पर ही निर्मल कर रही है। 18 नवंबर 2024 को एनजीटी के न्यायमूर्ति ने बनारस के जिलाधीश से सवाल किया कि क्या आप खुद गंगा जल को पी सकते हैं? आप अपने आपको असहाय मत महसूस करिए। जिलाधिकारी हैं आप, अपनी शक्तियों का उपयोग करिए और एनजीटी के आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करिए। नदी किनारे बोर्ड लगवा दीजिए कि गंगा जल नहाने और पीने योग्य नहीं है। न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी व विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए. सेंथिल ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘गंगा का पानी नहाने व पीने योग्य नहीं है’ इस बाबत सार्वजनिक सूचना क्यों नहीं लगवा देते?

नगरों और मानवीय क्रियाकलापों से निकली गंदगी नहाने-धोने, पूजा-पूजन सामग्री, मूर्ति विसर्जन और दाह संस्कार से निकला प्रदूषण गंगा में समा जाता है। इन सभी पर नियंत्रण करना कोई कठिन नहीं, लेकिन जटिल जरूर है।

janwani address 215

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

दिल्ली का पचास हजारी बदमाश मेरठ में ढेर

कुख्यात हाशिम बाबा गैंग का था शातिर शूटर ...

मुश्ताक अपहरण कांड में पूर्व पार्षद गिरफ्तार

एसटीएफ और बिजनौर पुलिस ने की बड़ी कार्रवाई,...

नाबालिग छात्रा से मारपीट का आरोपी पुलिस मुठभेड़ में घायल

अस्पताल ले जाते समय सिपाही की पिस्टल छीनकर...
spot_imgspot_img