Thursday, July 3, 2025
- Advertisement -

सवाल और बहस के लिए है संसद

Samvad 47

05 8पिछले साल जनवरी में अमेरिकी कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट ने भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी के समूह पर वित्तीय अनियमितताओं का जो आरोप लगाया था, वह सिलसिला अब एक प्राइवेट कंपनी से चलकर खुद अमेरिकी सरकार तक आ गया है। अमेरिका के कानून विभाग का आरोप है कि अडानी समूह ने कारोबारी लाभ लेने के लिए लगभग ढाई हजार करोड़ रुपयों का घूस भारतीय अधिकारियों व नेताओं को देकर आंकड़ों का फर्जीवाड़ा किया है, जिससे इस समूह में निवेश किए अमेरिकी नागरिकों व बैंकों के हितों को नुकसान पहुंचा है और इस प्रकार यह एक आपराधिक मामला है।

गौतम अडानी के भतीजे का मोबाइल फोन जब्त कर अमेरिकी अधिकारियों ने कुछ सूचनाएं निकाली थीं, जिसके बाद वहां की अदालत ने यह आपराधिक मामला दर्ज किया है। मामले की गंभीरता इसलिए गौरतलब है कि इसने दुनिया के अन्य देशों का भी ध्यान और कार्यवाही को आकर्षित किया है। केन्या ने तो तुरन्त कार्यवाही करते हुए अडानी समूह से हुए 736 मिलियन डॉलर के पावर प्रोजेक्ट का करार रद्द कर दिया है।

इधर देश में, प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की अगुआई में कई अन्य विपक्षी दलों ने संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र में इस पर बहस व संयुक्त संसदीय जांच की मांग को लेकर सप्ताह भर से अधिक समय से आंदोलन छेड़ रखा है और भारत के संसदीय इतिहास में अभूतपूर्व के तौर पर प्रधानमंत्री का नाम एक उद्योगपति के साथ जोड कर- ‘मोदी अडानी एक हैं, एक हैं तो सेफ हैं।’ का नारा लिखी जैकेटों को पहन कर संसद परिसर में प्रदर्शन किया है। उधर भाजपा के एक सांसद कहते हैं कि जब संसद का सत्र चलना होता है तभी इस तरह के आरोप विदेशों से आते हैं। अगर इसमें सच्चाई हो भी तो यह देखना होगा कि संसद में उठने के कारण मीडिया में ऐसे आरोपों की थोड़ी चर्चा हो भी जाती है अन्यथा जिस तरह बड़ा देसी मीडिया ‘विपक्ष-विमुख’ हो गया है उसमें तो ऐसे आरोप पर्दे के पीछे से ही कालातीत हो जाते।

बहस और जांच लोकतंत्र की आत्मा है। इन दोनों को हटा दीजिए तो शासन निरंकुश और तानाशाह हो जाता है। अब दुर्भाग्य यह है नारा लगाने और जैकेट धारण करने वाली कांग्रेस का खुद अपना अतीत ही ऐसे तमाम भ्रष्टाचारों (नरसिम्हाराव को याद करें) व तानाशाही हरकतों से भरा पड़ा है। सच तो यह है कि कांग्रेस या कहें कि इंडिया गठबंधन को अडानी से कोई दिक्कत नहीं है, बल्कि अडानी प्रसंग को वह एक तीर की तरह सत्तारुढ़ भाजपा पर चला रहे हैं। दिक्कत होती तो कांग्रेस शासित राज्यों में अडानी का कारोबार नए आयाम न छू रहा होता।

अडानी देश के शीर्ष व्यवसायी हैं। सरकार और भाजपा दोनों को उनमें अपनी-अपनी संभावनाएं दिखती हैं। विपक्ष का आरोप है कि वे प्रधानमंत्री के साथ विदेश यात्राएं करते हैं और प्रधानमंत्री विदेशों में उनके हितों की पैरवी करते हैं। केन्या, श्रीलंका, बांग्लादेश, आॅस्ट्रेलिया और फ्रांस आदि ऐसे देश हैं, जहां प्रधानमंत्री की यात्रा के बाद अडानी समूह को व्यापारिक अनुबंध प्राप्त हुए थे, लेकिन अब ये देश ऐसे अनुबंध को रद्द कर चुके या इसकी समीक्षा करने की कार्यवाही में है। जानकार लोग ये अनुमान भी लगा रहे हैं कि अमेरिका में अगले महीने होने वाले सत्ता परिवर्तन से अडानी समूह को राहत मिल सकती है। कहा यह भी जा रहा है कि ग्रीन एनर्जी के जिस मामले में अमेरिका अडानी समूह पर कार्यवाही कर रहा है, उसमें वह खुद भी एक खिलाड़ी है और ऐसा आरोप वह व्यावसायिक प्रतिद्वंदितावश कर रहा है। दुनिया में इधर ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में स्वीडन, डेनमार्क, जर्मनी, अमेरिका, स्पेन व पुर्तगाल जैसे कई देश काम कर रहे हैं और स्वाभाविक रूप से ही व्यावसायिक प्रतिद्वंदिता चल रही है।

सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कई अवसरों पर ‘मेक इन इन्डिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा दिया लेकिन व्यवहार में इस नारे का प्रतिफलन सबसे ज्यादा अडानी समूह पर ही अवतरित हुआ दिखता है। यह समूह आज ऊर्जा, इन्फ्रास्ट्रक्चर, लॉजिस्टिक, खदान, उड्डयन, कृषि, रियल इस्टेट और टेलकॉम क्षेत्रों तक फैल गया है। आरोप जांच और राजनीति का विषय होते हैं, लेकिन अडानी की उद्यमिता से देश में रोजगार व कारोबार के अवसर पैदा हुए हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
विश्व के कारोबारी चरित्र में परिवर्तन आया है। अब कुछ बड़े खिलाड़ी ही संचालक और निर्णायक बन रहे हैं। हमारे देश की बाजारु निर्भरता चीन पर बढ़ती जा रही है। बीते साल भारत और चीन का व्यवसाय 118 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा है। भारत में वैसे तो सारा घरेलू बाजार चीनी सामानों से पटा हुआ है, क्योंकि ये सामान काफी सस्ते होते हैं, पर मुख्य रुप से दवाओं के यौगिकों, टेलीकम्यूनिकेशन व इलेक्ट्रानिक सामान आदि के लिए हम एकदम से चीन पर निर्भर हैं। दवा कंपनियों की तो हालत यह है कि वे अपने यौगिकों, जिन्हें एपीआई कहा जाता है, का 66 प्रतिशत चीन से आयात करती हैं। यही हाल देश की इलेक्ट्रॉनिक जरूरतों का है, जिसका लगभग 44 प्रतिशत हम चीन से मंगाते हैं, जो सुरक्षा कारणों से एक गंभीर खतरा भी है। कहने का तात्पर्य यह है कि चीन से जिस तरह के हमारे जटिल और चिंताजनक राजनीतिक सम्बन्ध हैं उसे देखते हुए भारत में भी एक अपना ‘अलीबाबा’ होना ही चाहिए। संभव है कि प्रधानमन्त्री भी अडानी समूह को लेकर ऐसा ही सोचते होें। चीन पर निर्भरता को हम अपनी घरेलू उत्पादन क्षमता को बढ़ा कर ही कम कर सकते हैं। इसके लिए अपने देसी उद्यमियों को प्रोत्साहित करना होगा। इसके अलावा सिर्फ एक देश के बजाय अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन आदि से व्यापार बढ़ा कर ही हम आयात नीति में संतुलन बना सकते हैं।

संसद साल भर में सीमित अवधि के लिए चलती है और उसमें भी उसका एक लंबा हिस्सा हठधर्मिता और बहिर्गमन जैसे प्रसंगोें में निकल जाना न सिर्फ चिंता का विषय है, बल्कि देश की संसदीय व्यवस्था और उसकी उपादेयता पर भी नए सिरे से सोचने को बाध्य करता है। विपक्ष अगर जांच या बहस की मांग करता है तो इसमें सरकार को आपत्ति क्यों होनी चाहिए? राजनीतिक दलों की बहस और सवालों के लिए ही तो संसदीय सत्र आहूत किए जाते हैं। जांच की स्थिति अब यहां तक आ गई है कि बार-बार सर्वोच्च न्यायालय को ही कमेटी बनानी पड़ रही है। यह स्थिति ठीक नहीं कही जा सकती

janwani address 220

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Fatty Liver: फैटी लिवर की वजह बन रही आपकी ये रोज़मर्रा की आदतें, हो जाएं सतर्क

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Saharanpur News: सहारनपुर पुलिस ने फर्जी पुलिस वर्दी के साथ निलंबित पीआरडी जवान को किया गिरफ्तार

जनवाणी संवाददाता |सहारनपुर: थाना देवबंद पुलिस ने प्रभारी निरीक्षक...

UP Cabinet Meeting में 30 प्रस्तावों को मिली मंजूरी, JPNIC संचालन अब LDA के जिम्मे

जनवाणी ब्यूरो |लखनऊ: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में...
spot_imgspot_img