केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने दिल्ली में हल्दी बोर्ड के गठन की घोषणा की है। गंगा रेड्डी को बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया है। इससे हल्दी की उन्नतशील खेती में किसानों को जहां मदद मिलेगी दूसरी तरफ वैश्विक बाजार पर भारत का सौ फीसदी कब्जा होगा। क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा हल्दी उत्पादन और खपत करने वाला देश है। वैश्विक जरूरत की 70 फीसदी की आपूर्ति भारत करता है। हल्दी के निर्यात को पांच साल में एक बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है।
हल्दी हमारे संस्कृति और संस्कार में बसी है। हाथ पीले करने के लिए हल्दी आवश्यक है। हमारे यहां हल्दी को शुभ माना जाता है। हमारे यहां कोई भी संस्कार बगैर हल्दी के संम्पन्न नहीं होता है। जीवन के आगमन और महाप्रयाण में भी हल्दी का अपना महत्व है। हल्दी आयुर्वेद की सबसे गुणकारी औषधि है यह एंटीबायोटिक भी है। लेकिन अब भारतीय हल्दी किसानों के लिए एक अच्छी खबर आयी है। केंद्र सरकार ने हल्दी किसानों की 40 सालों से चली आ रही लबी मांग को मान लिया है। सरकार ने हल्दी आयोग का गठित करने की अधिसूचना जारी कर दिया है। बोर्ड का मुख्यालय तेलंगाना के निजामबाद में होगा। देश के हल्दी किसान जहां संवृद्ध होंगे वहीं हल्दी निर्यात में भारत का अपना दबदबा होगा। भारत में सबसे अधिक हल्दी का उत्पादन दक्षिण भारत में होता है। आयोग के गठन से जहां हल्दी की नई-नई प्रजातियों का विकास होगा। इसके अलावा हल्दी का कृषि क्षेत्र राष्ट्रीय स्तर पर व्यपाक होगा। देश के दूसरे हिस्सों में भी शोध के जरिए जलवायु और मिट्टी की गुणवत्ता से हल्दी की नई प्रजाति का विकास कर इसके उत्पादन को और व्यापक बनाया जा सकता है। इससे जहाँ हल्दी के किसानों की आय दोगुनी होगी वहीं दुनिया के हल्दी बाजार पर भारत का एकाधिकार होगा। देश के तकरीबन 20 राज्यों में हल्दी की खेती व्यापक पैमाने पर होती है। आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मेघालय जैसे राज्य शामिल हैं। हल्दी बोर्ड जहां अच्छे उत्पादन देने वाली किस्मों का विकास करेगा। जिसका लाभ देश के किसानों को मिलेगा। हल्दी से जहाँ कई दवाएं बनती है वहीं सौंदर्य प्रसाधन में भी हल्दी का प्रयोग होता है। हमारे जीवन में हल्दी का बहुत उपयोग है।
निश्चित रूप से हल्दी बोर्ड सरकार के अन्य मंत्रालयों और विभागों से मिलकर हल्दी के निर्यात की रणनीति बनाएगा। भारत ने बीते साल 2023-2024 में 226.5 मिलियन डॉलर की हल्दी का निर्यात किया। कुल 1.62 लाख टन हल्दी और उससे जुड़े उत्पादों का निर्यात किया गया। बोर्ड के गठन के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसन्धान से गुणवता परक हल्दी का निर्यात ग्लोबल स्तर पर होगा। भारत को एक टिकाऊ स्पर्धा का बाजार उपलब्ध कराएगा। इससे जहाँ हल्दी का उत्पादन बढ़ेगा वहीं निर्यात से विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि होगी। सरकार को परम्परागत कृषि को संवृद्ध करने के साथसाथ औषधिय खेती और दूसरे कृषि उत्पाद पर भी इस तरह के आयोग का गठन करना चाहिए। जिसका प्रभाव दुनिया के कृषि बाजार पर व्यपाक होगा। देश का किसान जहाँ आर्थिक रूप से संवृद्ध होगा और दूसरी तरफ भारतीय कृषि उत्पादों का एकाधिकार बढ़ेगा। कृषि के वैश्विक बाजार पर पकड़ बनाने के लिए भारत के पास अपार संभवानाएं हैं। अब सरकार किसानों के लिए कितना कुछ कर पाती है यह उस पर निर्भर है।
भारत में गतवर्ष यानी 2023-2024 में 3.05 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में हल्दी की खेती कर 10.74 लाख टन उत्पादन किया गया। हमारे यहां हल्दी की तीस प्रजातियों की खेती की जाती है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत में 3.24 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हल्दी की खेती की गई थी और इस दौरान उत्पादन 11.61 लाख टन रहा था। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वैश्विक हल्दी उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से अधिक है और यहां हल्दी की 30 किस्में उत्पादित की जाती हैं। सरकार को उम्मीद है की पांच साल यानी 2030 तक हल्दी निर्यात एक बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा। केंद्र ने हल्दी बोर्ड के गठन की अधिसूचना जारी कर दिया है। दुनिया के हल्दी उत्पादन में भारत अग्रणी है। यह विश्व के कुल हल्दी उत्पादन का 60 से 70 फीसदी उत्पादन किया जाता है। साल 2022 और 2023 में 380 देशों को हल्दी और उससे जुड़े उत्पादों का निर्यात किया गया। जिससे 207.45 मिलियन अमरीकी डॉलर की आय हुईं। भारत के प्रमुख हल्दी आयातकों में अमेरिका, यूएई, मलेशिया और बांग्लादेश शामिल हैं। हल्दी आयोग का निश्चित रूप से एक खुली पारदर्शी कृषि नीति है। हल्दी की खेती करने वालों के लिए एक सुखद परिणाम लेकर आएगी।
सरकार को इस तरह की और खेती को बढ़ावा देना चाहिए। कृषि नीति को और कारगर और प्रभावशाली बनाने की जरूरत है। खेती में सरकार के पास असीमित शोध का क्षेत्र है। वैश्विक बाजार का अध्ययन कर देश को खेती के लिए प्रतिस्पर्धा पैदा करनी होगी। हमें किसानों के लिए ऐसा कृषि विकल्प लाने की जरूरत है जिसमें लगत कम हो और किसानों को लाभकारी मूल्य मिले। जिससे जहां किसान आर्थिक आमदनी तय करेगा वहीं वह नयी खेती की तरफ उसका रुझान बढ़ेगा। इसके अलावा भारत को मौसम, मृदा और जलवायु के हिसाब से कृषि क्षेत्र में विभाजित कर कृषि निर्धारण करना चाहिए।