संजय कुमार सुमन
क्या हम उपजाऊ मिट्टी के जैसे बनना चाहते हैं, सामान्य मिट्टी के जैसे बनना चाहते हैं या बंजर मिट्टी के जैसे बनना चाहते हैं? प्रत्येक मनुष्य की आत्मा ईश्वर का स्वरूप है। वह गलत कार्य से रोकती है। व्यक्ति अगर किसी कार्य के पूर्व अंतरात्मा की आवाज सुने तो वह सही-गलत का निर्णय सुना देती है। अच्छे-बुरे, नीति-अनीति, न्याय-अन्याय और धर्म-अधर्म में अन्तर सबको समझ आता है लेकिन बुद्धि कुतर्क करके आत्मा की आवाज दबा देती है जिसे मनुष्य अपनी चतुराई समझता है।
खुद को जानने और समझने के लिए अपने अंदर की आवाज को अनसुना न करें। जब तक आप खुद को ही अच्छे से नहीं जानेंगे तो लोगों का सामना कैसे करेंगे। हमारे आसपास कई तरह के लोग होते हैं। कौन से लोग हमारे लिए अच्छे हैं और किन लोगों के साथ रहना हमें खतरे में डाल सकता है, इसका निर्णय अपने अंदर की आवाज के जरिए करें। जब आपके मन में किसी मुद्दे पर काफी सारे विचार आ रहें हो तो जरूरी नहीं कि आप अंदर ही अंदर इस समस्या से जूझते रहें। अगर आप इस मुद्दे पर अपने किसी खास से बात करना चाहते हैं तो बेहिचक जाकर उनसे दिल की बात कहें और इस पर खुल कर चर्चा करें। यह खास कोई भी हो सकता है आपका दोस्त, परिवार का कोई सदस्य, पार्टनर या कोच या मेंटर।
किसी भी निर्णय को लेने के लिए आपके अंदर आत्मविश्वास होना बहुत जरूरी है। अगर आप अंदर से डरे हुए हैं और असहाय रहेंगे तो आप अपने अंदर की आवाज कभी नहीं सुन पाएंगे। खुद को अपने अंदर की आवाज को सुनने के लिए प्रेरित करें। इससे आप जानेंगे कि आप सच में क्या चाहते हैं और उन्हें किस प्रकार पाना चाहते हैं।मनुष्य जब भी कोई गलत काम करने के बारे में सोचता है तब कोई अज्ञात संकेत उसे एक-बार रोकने की कोशिश जरूर करता है। हम चाहें उस संकेत को मानें या नहीं, वह बार-बार हमें चेतावनी भरे संकेत देता रहता है। लगभग सभी के जीवन में ऐसी अनुभूति होती है। इस प्रकार के अदृृश्य संकेत हमें हमारा अंतर्मन देता है। यह हम पर है कि हम अपने अंतर्मन की आवाज
सुनें या नहीं लेकिन जो यह आवाज सुनता है। बेहतर जीवन जी पाता है।
अपने मन की सुनें और फिर उसकी बतायी राह पर चलें। आपको कामयाबी जरूर मिलेगी लेकिन आप अगर बार-बार अपने मन की आवाज को अनसुना करेंगे तो फिर आपके हिस्से में नाकामी और पतन ही आएगा। दरअसल मन तो मन है। उसमें विचारों का बहना हमेशा जारी रहता है और लगातार चलता भी रहता है लेकिन अंतर्मन की मदद से इन विचारों में से स्वयं के व्यक्तित्व और स्वभाव के अनुरूप क्या ठीक हो सकता है, इसका चयन करना आवश्यक है। आइए एक कहानी के माध्यम से जानें खुद को समझनें और अंदर की आवाज को सुनने के तरीकों के बारे में –
एक बार एक गांव का मुखिया भगवान बुद्ध के पास आया। मुखिया ने पूछा, क्या बुद्ध सभी जीवों के प्रति करुणा भाव रखते हैं? बुद्ध ने कहा, हां। मुखिया ने आगे पूछा, क्या बुद्ध अपनी संपूर्ण शिक्षा कुछ लोगों को देते हैं, औरों को नहीं?
इसका उत्तर देने के लिए बुद्ध ने एक दृृष्टांत बताया और कहा, चलो हम इसको किसान के उदाहरण से समझते हैं। मान लो एक किसान के पास तीन अलग-अलग मिट्टी के खेत हैं। एक खेत की मिट्टी बहुत उपजाऊ है। दूसरे खेत की मिट्टी सामान्य है। तीसरे खेत की मिट्टी खराब है, जिसमें ज्यादा कुछ नहीं उग सकता है। मान लो किसान खेत में बीज बोना चाहता है। तुम्हारे ख्याल से कौन से खेत में वह उन्हें बोएगा?
गांव के मुखिया ने उत्तर दिया, वह सबसे पहले उन्हें उपजाऊ मिट्टी में बोएगा। उस खेत को भर लेने के बाद, वह उस खेत में बीज डालना शुरू करेगा, जिसकी मिट्टी सामान्य है। जो खेत बंजर है, हो सकता है उसमें वह बीज बोए या न बोए। उन बीजों को नष्ट करने की बजाय वह उनका प्रयोग जानवरों के चारे में कर सकता है।
भगवान बुद्ध ने समझाया, आध्यात्मिक शिक्षाओं के साथ भी ऐसा ही है। जो शिष्य मठवासी बनना चाह रहे हैं, जो सच की तलाश में हैं, वे उपजाऊ जमीन के जैसे हैं। उनको संपूर्ण शिक्षा दी जाती है। वे सभी साधनाओं को और जागृति के मार्ग को पूर्ण रूप से सीख लेते हैं। मैं उन्हें पूरी शिक्षा देता हूं क्योंकि वे ऐसा ही चाहते हैं।
बुद्ध ने आगे कहा, आम लोग सामान्य जमीन के जैसे हैं। वे भी शिष्य हैं पर वे मठवासियों के जैसे अपनी पूरी जिंदगी शिक्षाओं के लिए समर्पित नहीं करना चाहते हैं पर आम लोगों को भी मैं पूरी आध्यात्मिक शिक्षाएं देता हूं। इस पर गांव का मुखिया अचंभित हुआ और बोला, आप उन लोगों को अपनी शिक्षाएं क्यों देते हो जो सुनने को तैयार नहीं हैं? क्या वह बर्बादी नहीं हैं?
भगवान बुद्ध ने इसका उत्तर दिया, अगर किसी एक दिन वे शिक्षा का एक भी वाक्य समझ लेंगे और उसे दिल में उतार लेंगे तो उससे उन्हें लंबे समय तक खुशी और आशीष प्राप्त होंगे।ह्य इस प्रकार मुखिया को समझ आया कि भगवान बुद्ध पूरी दुनिया को अपनी शिक्षाएं देने के लिए आए थे, चाहे वे सभी उसके लिए तैयार थे या नहीं क्योंकि एक दिन वे तैयार हो जाएंगे।
हम भी इस किस्से से बहुत कुछ सीख सकते हैं। सोना एक धातु है। उससे आप चाहे जो आभूषण बना लें उसके मूल में सोना ही रहेगा। आत्मा की अनुभूति मानव जीवन में ही सरलता व सुगमता से चेतन (तत्व) का अनुभव ज्ञान लाभ कर सकते हैं। केवल हमें गुहार लगाने की देर है अर्थात सच्चे मन से, सरल हृदय से उनका दर्शन संभव है। मानव जीवन का लक्ष्य क्षणिक सुख प्राप्त करना नहीं है। स्थायी शांति और चिर-स्थायी आनंद तभी संभव है जब हमें अनंत की अनुभूति हो तथा इस तथ्य की अनुभूति हो कि अनंत ईश्वर ही हमारा वास्तविक स्वरूप है ।