Wednesday, December 11, 2024
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जहर मुक्त अनाज की आस

KHETIBADI 2


पवन नागर |

अब यह कोई दुराव-छिपाव की बात नहीं है कि हमारे आम-फहम जीवन में लगातार गिरावट आती जा रही है और इसकी वजह भी हम खुद ही है। आखिर किस तरह हम अपनी इस बदलाही से पार पा सकते हैं? किन तौर-तरीकों से हम अपने जीवन को खुशहाल बना सकते हैं?

क्या हमने कोरोना के दौर से कुछ सीख ली? क्या हमने जलवायु-परिवर्तन के कारण आ रही आपदाओं से कुछ सबक सीखा? क्या हमने अपनी दिनचर्या में प्रकृति के हित में कोई बदलाव किया? क्या हमने रसायनिक खादों और कीटनाशकों के कारण हो रही बीमारियों के चलते होने वाली मौतों से कुछ सबक सीखा? इन सारे सवालों का एक ही जवाब है-नहीं। और इस ह्यनहींह्ण का कारण यह है कि हम सबको रोजमर्रा के काम आने वाली चीजें आसानी से मिल रही हैं, बल्कि कह सकते हैं कि आपके द्वार तक पहुंच रही हैं। फिर भला कोई क्यों प्रकृति की चिंता करेगा? फिर भला कोई क्यों जलवायु परिवर्तन की बात करेगा? फिर भला कोई क्यों बात करेगा कि इतने महँगे कीटनाशकों और रसायनिक खादों के इस्तेमाल के बावजूद खेतों में उत्पादन कम हो रहा है? हम सबको तकनीक और आधुनिकता के कारण जो आसानी हो रही है असल में उसके कारण प्रकृति को बहुत परेशानी हो रही है। क्या आपने कभी सोचा है कि जो चीजें हमें आसानी से मिल रही हैं उनको हम तक पहुंचाने वालों को कितनी परेशानी होती है? क्या आपने कभी इस बारे में विचार किया है कि जो बिजली हमको मिल रही है उसके लिए जिन किसानों की उपजाऊ जमीन छिन गई उनको कितनी परेशानी हो रही है? बड़े-बड़े बांधों को बनाने में कितने जंगल नष्ट हो गए हैं क्या इस पर विचार किया है?

जिन लोगों की जेब में पैसा भरा पड़ा है, उन्हें क्या लेना-देना इन सब परेशानियों से, उनके लिए तो पैसा है तो सब आसान है। उन्हें इस बात से भी गुरेज नहीं है कि वे जो भोजन खा रहे हैं उसमें कितना जहर मिला हुआ है, उनके घर पर जो पानी आ रहा है वो कितना प्रदूषित है और तो और, उन्हें इस बात की भी परवाह नहीं है कि जिस वातावरण में वे रह रहे हैं उसकी हवा भी प्रदूषित है। सिर्फ वायु-प्रदूषण से ही विश्व भर में हर साल 70 लाख लोग मर जाते हैं, फिर भी किसी पर असर नहीं हो रहा है। क्या कभी कोरोना की तरह वायु-प्रदूषण का भी हल्ला होगा? क्या वायु-प्रदूषण को कम करने के लिए भी कभी लॉकडाउन लगेगा? ये ऐसे कुछ सवाल हैं जिनके जवाब न तो नीति निर्धारकों के पास हैं और न उस जनता के पास, जिसे आसानी से सब कुछ प्राप्त करने की आदत हो गई है। भले ही इनके कारण कोई मर जाए या बीमारियों की सुनामी आ जाए, इससे किसी को कुछ लेना-देना नहीं है, परन्तु यह उदासीनता आगे चलकर बहुत महंगी पड?े वाली है। जलवायु परिवर्तन के कारण इस बार फसलों का उत्पादन कम हुआ है जिस कारण महंगाई भी बढ़ रही है और आसानी से उपलब्ध होने वाली चीजें भी महंगी हो चुकी हैं। सभी क्षेत्रों में महंगाई ने जनता की कमर तोड़ दी है। अब जब आपको आसानी से उपलब्ध सस्ते जहरयुक्त अनाज, दाल, तेल, और मसालों की आदत हो गई है, तो अब यही सामान आपको लेना पड़ेगा, क्योंकि आपके पास कोई विकल्प नहीं है। उसी प्रकार से किसानों को भी अपने खेत में रसायनिक खादों और कीटनाशकों के इस्तेमाल की आदत हो गई है। इनके इस्तेमाल के बावजूद उत्पादन गिर रहा है, फिर भी रसायनिक खादों और कीटनाशकों का बेतहाशा इस्तेमाल करने वाले किसानों की आंखें नहीं खुल रहीं। उन्हें इतना समझ नहीं आ रहा कि उत्पादन का सीधा सम्बन्ध वातावरण से है, न कि रसायनिक खादों से। उत्पादन प्रकृति की एक व्यवस्था है जो कि आसपास के वातावरण पर निर्भर है।

यदि आपके यहाँ का वातावरण प्रदूषण रहित रहेगा और विविधता रहेगी तो उत्पादन भी अच्छा रहेगा। चाहे जनता हो, नीति-निर्धारक हों या चाहे किसान, सभी को जो चीजें आसानी से मिल रही हैं उनको पहुँचाने वाले लोगों को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है? इस बात को समझें और प्रकृति को हो रहे नुकसान से बचाने के लिए, जलवायु परिवर्तन के कारण आ रहीं अनिमंत्रित आपदाओं से निजात पाने के लिए और किसानों को जहरीले कीटनाशकों से निजात दिलाने के लिए जमीनी परिवर्तन करें।

उन किसानों के बारे में सोचें जो आपको जहरमुक्त अनाज उपलब्ध कराने की कोशिश में लगे हुए हैं। साथ ही उन किसानों के बारे में भी सोचें जो सस्ता, परंतु जहरयुक्त अनाज उपलब्ध कराने के लिए कितना रसायन अपने खेत में डाल रहे हैं, अंधाधुंध कीटनाशक इस्तेमाल कर रहे हैं और ढेरों बीमारियों को आमंत्रित कर रहे हैं। इन किसानों के बारे में सोचें, ताकि ये किसान भी इस रसायनिक खाद और कीटनाशक वाली व्यवस्था से बाहर निकल सकें। इन किसानों से जनता जहरमुक्त अनाज, फल व सब्जियों की मांग कर सकती है, क्योंकि बिना मांग के भला कोई क्यों उत्पादन करेगा। जब जहरयुक्त अनाज ही आसानी से बिक रहा है तो भला क्यों किसान जहरमुक्त अनाज उत्पादन करने की परेशानी झेलेगा? अगर जनता खुद चाहेगी कि उसको जहरयुक्त अनाज नहीं खाना तो किसान भी जहरमुक्त अनाज के उत्पादन की ओर नहीं जाएगा। नहीं तो यह जहरयुक्त खेती यूं ही चलती रहेगी, बल्कि और तेजी से बढ़ेगी और उसी गति से बढ़ेंगी बीमारियां भी। यह मानकर चलिए कि आपको बीमारियां तो होंगी ही और यह भी ध्यान रखिये कि आप सोना, चांदी, पैसा या सुविधा को खा नहीं सकते, खाने का काम तो खाना ही करेगा। इसलिए अभी भी वक्त है परेशानियों को खत्म करने का। कोरी बातें करने का समय अब निकल चुका है, अब समय है आसानी से हो रही परेशानियों से बचने के लिए जमीनी काम करने का।


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