इन दिनों देश के विभिन्न हवाई अड्डों पर चिंताजनक दृश्य देखने को मिल रहे हैं। कहीं पर उड़ान क्षेत्र में एयरक्राफ्ट के पास बैठकर यात्री खाना खाते दिख रहे हैं तो कहीं दस-दस घंटों तक हवाई जहाज में बैठे हुए हैं। उड़ानें रद्द होने से गंतव्य तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। वे बेबस दिख रहे हैं। गुस्सा भी हो रहे हैं, लेकिन एयरलाइन कंपनियां मनमानी पर उतारू हैं। उनपर कोई असर नहीं हो रहा। एक महीने से यात्रियों के परेशान होने की तस्वीरें आम हो चुकी हैं। कोहरे के कारण फ्लाइट्स के लेट होने और रद्द होने का सिलसिला लगातार जारी है। सर्दियों के मौसम में उत्तर भारत के लगभग सभी एयरपोर्ट पर कोहरे के चलते फ्लाइट्स डायवर्ट हो रही है। ऐसे में यात्रियों को खासा इंतजार करना पड़ता है। हाल ही में नागरिक उड्डयन क्षेत्र से जुड़े एक सर्वेक्षण चिंताजनक बात सामने आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 10 में से 9 यात्रियों का मानना है कि भारतीय एयरलाइंस पिछले 24 महीनों से यात्रियों को सुविधाजनक माहौल उपलब्ध कराने से समझौता करती रही हैं। सर्वेक्षण रिपोर्ट में बताया गया है कि 88 प्रतिशत यात्रियों को पिछले दो वर्षों में अपनी उड़ानों के दौरान एक या अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। सर्वे में 39 प्रतिशत लोगों ने भोजन और मनोरंजन सहित उड़ान सेवाओं को असंतोष का एक महत्वपूर्ण कारण बताया। इसके अलावा, 35 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बोर्डिंग और चेक-इन प्रक्रियाओं के साथ-साथ सामान प्रबंधन से संबंधित मुद्दों की सूचना दी, जबकि 9 प्रतिशत ने उड़ान के अंदर और हवाई अड्डे पर एयरलाइन कर्मचारियों के व्यवहार के साथ समस्याओं का हवाला दिया।
सर्वे में कुछ लोगों ने बताया कि एयरलाइन काउंटर पर कुछ मिनटों की देरी से पहुंचने के कारण उन्हें बोर्डिंग से वंचित कर दिया जाता है। जिसके बाद उन्हें अगली उड़ान के लिए काफी अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करने के लिए एयरलाइन के टिकट काउंटर पर ले जाया जाता है। सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है, ‘एयरलाइंस द्वारा ओवरबुकिंग करना और कुछ मिनटों की देरी से आने वाले यात्रियों को बोर्डिंग से इनकार करना एक आम समस्या है, साथ ही ऐसे कई मामलों में एयरलाइन कर्मचारियों का अभद्र व्यवहार भी रिपोर्ट किया गया।’
जयपुर एयरपोर्ट पर जहां आए दिन ऐन वक्त पर रद्द हो रहे विमानों से यात्रियों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। वहीं दूसरी ओर एयरलाइंस कंपनियां मनमानी पर उतर आई हैं। कम यात्रीभार के कारण आर्थिक संकट झेल रही कपंनियां अब यात्रियों की मुसीबत बढ़ा रही हैं और ही जेब भी काट रही हैं, जिससे यात्रियों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। दरअसल, नए साल के पहले सप्ताह से जयपुर एयरपोर्ट पर घरेलू व अंतरर्राष्ट्रीय विमानों में यात्रीभार अचानक कम होना शुरू हुआ, जो अब तक जारी है। यह 15 हजार से लुढ़कर महज 5 से 6 हजार के बीच ही रह गया। परेशानी की बात है कि एयरलाइंस कंपनियां दिल्ली, मुंबई, पुणे, उदयपुर समेत कई शहरों के लिए टिकट तो बुक कर रही हैं, लेकिन कम यात्रीभार के चलते अचानक उस उड़ान को रद्द कर दे रही हैं। ऐन वक्त पर ऐसा होने से यात्रियों को गंतव्य तक जाने में तो दिक्कत हो ही रही रही हैं, पर ज्यादा मुसीबत उन्हें रिफंड लेने में हो रही है। क्योंकि रिफंड देने में अलग-अलग एयरलाइंस कंपनियां अपने-अपने तरीके से मनमानी पर उतर आई हैं। इसके लिए यात्रियों को परेशान होना पड़ रहा है। पड़ताल में सामने आया कि एयरलाइंस कंपनियां दो तरह से मनमानी कर रही हैं। एक तो वह रिफंड हाथों हाथ देने की बजाय सात दिन का हवाला दे रही हैं। जिससे कई यात्रियों को दस से पंद्रह दिन होने तक भी रिफंड नहीं मिल रहा। दूसरा तरीका क्रेडिट सेल दे रही है। जिससे वह यात्री को किसी भी रूट पर छह महीने या एक साल तक यात्रा करने का प्रलोभन देकर खुद के नुकसान को तो बचा रही हैं, लेकिन यात्रियों को मुसीबत में रही हैं। इसके तहत सबसे ज्यादा प्रभावित वे लोग हैं जो कभी कभार यात्रा करते हैं। यह क्रेडिट सेल उनके लिए नुकसानदायक साबित हो रही है। ज्यादातर एयरलाइंस क्रेडिट सेल ही दे रही हैं। ये यात्रियों की जेब काटने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। इसको लेकर एयरलाइंस कंपनियों के प्रतिनिधियों का कहना हैं कि नियमों के तहत रिफंड कर रहे हैं। यात्री को दोनों आॅप्शन दे रहे हैं। चाहे तो वह रिफंड ले या क्रेडिट सेल। रिफंड एक तय समयावधि में ही मिलता है। इसमें देरी भी होती है।
यात्री को टिकट बुकिंग के दौरान विमान के कम यात्रीभार की जानकारी होना संभव नहीं है। इधर एयरलाइंस भी विमान के तय अंत समय तक बुकिंग करती रहती हैं। यात्रीभार कम होने से अचानक आॅपरेशनल कारण बताकर संचालन रद्द कर देती हैं। इन दिनों यहां 20 से 25 उड़ानें रोजाना रद्द हो रही हैं। हैरानी बात है कि इन पर कोई कार्रवाई भी नहीं होती। न डीजीसीए और न उड्डयन मंत्रालय ही कोई ठोस कार्रवाई करता दिखता है। बस दिखावटी चेतावनियां दे दी जाती हैं।
वैसे फ्लाइट्स लेट होने या रद्द होने की सूरत में यात्रियों के भी अपने अधिकार होते हैं और वो ऐसे समय में अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते हैं। डीजीसीए ने यात्रियों को ये सहूलियतें तो दे रखी हैं लेकिन विडंबना यह है कि एयरलाइन कंपनियां इनका पालन नहीं करती हैं।
पूछताछ के अधिकार के तहत एक आम हवाई यात्री एयरलाइन मैनेजर से पूछ सकता है कि विमान किस कारण से लेट है और कब तक उड़ान भरेगा। एयरलाइन कंपनी को यात्री को संतोषजनक और जिम्मेदारी भरा जवाब देना होगा। अगर आपकी फ्लाइट 3 घंटे से ज्यादा लेट है तो एयरलाइंस कंपनी को यात्री को रिफ्रेशमेंट देना होगा। बोर्डिंग पास दिखाने पर यात्री को ये सुविधा मिलेगी। अगर एयरलाइन कंपनी ऐसा नहीं करती है तो यात्री इसकी मांग कर सकता है। अगर आपकी फ्लाइट 6 घंटे से ज्यादा लेट है तो इसकी जानकारी एयरलाइन कंपनी को यात्री को 24 घंटे पहले देनी होगी। इसके बाद यात्री चाहे तो अपनी यात्रा का प्लान रद्द करके अपना रिफंड वापस मांग सकता है। अन्यथा दूसरी फ्लाइट में यात्री सीट की मांग कर सकता है। अगर आपकी फ्लाइट को रद्द कर दिया जाता है तो इसकी सूचना भी यात्री को 24 घंटे पहले देनी होगी। अगर एयरलाइन कपंनी ऐसा नहीं करती है तो यात्री को रिफंड तो मिलेगा ही साथ ही कंपनी को 5 से 10 हजार रुपये का मुआवजा भी देना होगा। अगर आप देर शाम को सफर कर रहे हैं और फ्लाइट लेट पर लेट हो रही है और रि-शिड्यूल होकर फ्लाइट अगले दिन की हो गई हो तो एयरलाइन कंपनी को यात्री के लिए होटल और खाने-पीने की व्यवस्था करनी होगी। कंपनी ऐसा नहीं करती है तो यात्री इसकी मांग कर सकता है।
ये तमाम वो अधिकार हैं जो आम हवाई यात्री के लिए सुरक्षित हैं। इन सबके बारे में एयरलाइंस कंपनियां भलीभांति जानती हैं लेकिन अम्ल नहीं करती। यात्रियों को भी इन अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए। अगर यात्री अपने अधिकारों को लेकर सचेत होंगे तो एयरलाइंस कंपनियों की मनमानी पर अंकुश लगेगा।