बीते सोमवार को जब दिल्ली में बांग्लादेश और श्रीलंका के बीच वर्ल्ड कप का मैच खेला गया, तब दिल्ली का अरुण जेटली क्रिकेट स्टेडियम प्रदूषण की चादर से पूरी तरह से ढका हुआ था। मैच के दौरान दिल्ली की हवा का जो स्तर था (यानी कि एक्यूआई) वो 450 था, जो कि खतरनाक स्तर की श्रेणी में आता है। सैटेलाइट से देखने पर ये स्टेडियम प्रदूषण की वजह से दिखाई तक नहीं दे रहा था। आलम ये था कि बांग्लादेशी कप्तान शाकिब उल हसन को कहना पड़ा कि इस प्रदूषण की वजह से आज हमें मानसिक रूप से भी मजबूत होकर खेलना पड़ेगा। जब प्रदूषण के बीच ये मैच शुरू हुआ तब दुनिया भर की मीडिया ने इसकी चर्चा की, और इससे भारत की छवि को भी बहुत नुकसान हुआ है। एक अंतराष्ट्रीय न्यूज संसथान ने अपनी वेबसाइट पर लिखा कि दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर दिल्ली में आज वर्ल्ड कप का मैच खेला जा रहा है। इस समय दिल्ली की स्थिति ये है कि दिल्ली दिलवालों की नहीं बल्कि मजबूत फेफड़े वालों की रह गई है। दिल्ली में प्रदूषण के पांच बड़े कारण हैं जिसमें पहला कारण है: ‘पराली का धुंआ’ जिसका अभी दिल्ली के प्रदूषण में लगभग 40 से 44 फीसद का योगदान है। दूसरा कारण है: ‘पेट्रोल और डीजल की गाड़ियों का धुआं’ जिसका अभी दिल्ली के प्रदूषण में लगभग 10 फीसद योगदान है। तीसरा कारण है: ‘वातावरण में मौजूद धुल और मिट्टी के कण’ और चौथा कारण है: ‘कंस्ट्रक्शन यानी निर्माण कार्यों की वजह से होने वाला प्रदूषण’ इसमें पांचवा कारण है: ‘फैक्ट्रियों और पावर प्लांट से निकलने वाला धुआं’। ये वो पांच कारण हैं, जिनकी वजह से दिल्ली में पिछले कई वर्षों से हर साल प्रदूषण की भारी समस्या होती है, लेकिन दिल्ली सरकार ने अब तक इसका कोई स्थाई समाधान नहीं खोजा है।
इस बार फिर से सरकार ने प्रदूषण को कम करने के लिए 13 से 20 नवंबर के बीच गाड़ियों पर ओड और इवन स्कीम को पुन: से लागू करने की बात कही है। यानी कि इस दौरान दिल्ली में एक दिन ओड नंबर वाली गाड़ियां चलेंगी और एक दिन इवन नंबर वाली गाड़ियां चलेंगी। किंतु चिंता की बात तो ये है कि प्रदूषण आज हो रहा है और ये स्कीम लागू होगी 13 तारीख के बाद। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि क्या इससे दिल्ली का प्रदूषण खत्म हो जाएगा? बहुत सारे अध्ययन ये कहते हैं कि ओड और इवन स्कीम से दिल्ली के प्रदूषण पर ‘न’ के बराबर असर होता है, और ये बात वहां की सरकार भी जानती है। लेकिन इसके बावजूद वो ओड इवन के आगे अब तक नहीं सोच पा रही है। दिल्ली सरकार ने प्रदूषण को खत्म करने के लिए अब दूसरा समाधान निकाला है, जिसमें छठी कक्षा से ग्यारहवीं कक्षा तक के छात्रों को स्कूल आने से मना कर दिया गया है। यानी कि इन छात्रों के लिए स्कूल बंद कर दिए गए हैं। लेकिन पुन: से सोचने वाली बात ये है क्या बच्चों के स्कूल न जाने से प्रदूषण हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा? सरकार ने इसका तीसरा हल निकला है कि दिल्ली में अब सभी प्रकार के निर्माण कार्यों पर रोक लगेगी। लेकिन सच तो ये है कि अब निर्माण कार्यों पर रोक लगाने से भी कोई फायदा नहीं है क्योंकि अब अगर ये काम बंद भी रहते हैं तो भी हवा में पहले से मौजूद प्रदूषण इससे कम होने वाला नहीं है।
वहीं अब दिल्ली की सरकार ने आईआईटी कानपुर को एक प्रस्ताव भेजा है। जिसमें सरकार ने कहा है कि वो दिल्ली में ‘आर्टिफिशियल रेन’ करा कर प्रदूषण से लोगों को राहत दिलाना चाहती है। आर्टिफिशियल रेन को हिंदी में ‘कृत्रिम वर्षा’ भी कहते हैं, जो क्लाउड सीडिंग की एक प्रक्रिया से होती है। इस प्रक्रिया में बादलों पर ऐसे केमिकल्स अथवा रसायनों को डाला जाता है, जो पानी की छोटी बूंदों के कणों को (‘वाटर ड्रॉप्लेट्स’) को भारी बना देते हैं, और जब इन कणों (ड्रॉप्लेट्स) का वजन बढ़ जाता है और बदल बहुत बड़े हो जाते हैं तो वो बारिश के रूप में बरसने लगते हैं। ‘क्लाउड सीडिंग’ की वजह से होने वाली इस बारिश को कृत्रिम वर्षा कहते हैं या आर्टिफिशियल रेन कहते हैं। ये कई देशों में होता है। यूएई जैसे देशों में जहां पूरे साल बहुत कम बारिश होती है एवं गर्मी बहुत जबरदस्त पड़ती है, वहां अक्सर इस तरह की कृत्रिम वर्षा कराई जाती है। चीन में भी प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए राजधानी बीजिंग में क्लाउड सीडिंग की मदद से बारिश कराई जाती है। चीन तो अब इतना आगे निगल गया है कि वो इस प्रक्रिया की मदद से वहां कई विलुप्त होती नदियों को भी पुनर्जीवित करने की योजना बना रहा है। पश्चिमी देशों में भी इस प्रक्रिया का काफी इस्तेमाल होता है।
आज फ्रांस में अगर कोई व्यक्ति ये कहता है कि उसकी शादी वाले दिन बारिश हो या फिर किसी भी अन्य महत्वपूर्ण दिन बारिश न हो तो वहां पर ऐसी कई कंपनियां काम कर रही हैं जो क्लाउड सीडिंग के जरिए कृत्रिम वर्षा करा सकती हैं। भारत में भी राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में क्लाउड सीडिंग की मदद से उन इलाकों में बारिश कराई गई है, जहां सूखा पड़ने के कारण हालात काफी गंभीर हो गए थे। लेकिन बड़ी बात ये है कि अगर दिल्ली की सरकार चाहे तो वह अपने विज्ञापनों पर होने वाले खर्चों में कटौती करके आसानी से दिल्ली में कृत्रिम वर्षा करा सकती है। गौरतलब है कि 1 वर्ग किलोमीटर इलाके में कृत्रिम वर्षा करने का खर्च 1 लाख रुपये है। दिल्ली का कुल क्षेत्रफल 1 हजार 483 वर्ग किलोमीटर है। यानी दिल्ली में अगर एक बार कृत्रिम बारिश कराई जाती है तो इसका खर्च 15 करोड़ के आस पास होगा और इससे दिल्ली के लोगों को प्रदूषण से 5 से 7 दिन तक तुरंत रहत मिल सकती है।