गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम |
यार मुस्कान सब कोई बाबा के दर्शन करने जा रहा है, लेकिन ये चिल्लर, जोंक, जूं, खटमल प्रजाति के लोग क्यों नहीं…? रामप्रीत ने कहा।
ये सभी लपंडूक थोड़े हैं जो अपना काम-धाम, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई छोड़-छाड़कर ढोंगियों के दर्शन करते फिरें…और ऊपर से अपना बेशकीमती समय, खून पसीने की कमाई भी बर्बाद करें। उनका कर्म ही पूजा है। मुस्कान ने प्रतिउत्तर में जवाब दिया।
हां यार ! हमें भी अब कुछ-कुछ समझ में आ रहा है वे लोग धन और बुद्धि दोनों से अमीर क्यों होते हैं। रामप्रीत ने कहा।
इसीलिए तो तुम्हें बार-बार कहता हूं यार, उन लोगों से सीखो। वे लोग किस तरह लगातार प्रत्येक मामले में हमसे समृद्ध होते जा रहे हैं, जबकि वे हमसे ज्यादा मेहनत नहीं करते हैं। जबकि हमलोग दिनों-दिन गरीबी और ढोंग-ढकोसला के मकड़जाल में फंसकर अपना वर्तमान और बच्चों की भविष्य एवं अपने राष्ट्र, समाज का मान-सम्मान भी मिट्टी में मिला रहे हैं। उसे समझाते हुए मुस्कान बोला।
मैं आज से प्रतिज्ञा लेता हूं इन बाबाओं साथ मजहब-धर्म, मस्जिद-मंदिर, टोना-टोटका, फेरी-चादर के चक्कर में नहीं पडूंगा। विज्ञान और तर्क की कसौटी पर काल एवं परिस्थिति के अनुरूप जो बात खरा लगेगा, उसे ही अपनाऊंगा। रामप्रीत ने मुस्कान को विस्वास दिलाया।
मुस्कान ने उसके कांधे पर हाथ रखते हुए कहा, धन्यवाद मित्र, देर आए दुरुस्त आए। अब से अंधदौड का हिस्सा मत बनना। तुझे तर्क की कसौटी पर जो बात अच्छी लगे और विधिसम्मत हो तभी करना।