सोनम लववंशी |
वर्तमान दौर में लोग रिश्तों की मर्यादा को भूलकर धन संपत्ति को तवज्जों देने में लगे हैं। आज का सबसे बड़ा सच यही है कि ‘बाप-बड़ा ना भैय्या, सबसे बड़ा रुपैया’। धन दौलत के लिए संतान अपने माता-पिता से भी मुंह मोड़ रही है। जो मां बाप अपने बच्चों के लिए दिन-रात मेहनत करके सम्पति जमा करते हैं। लेकिन उसी सम्पति के लिए जब बच्चे अपनी मां की चिता का दाह संस्कार रुकवा दे तो ऐसी धन दौलत का क्या फायदा? बीते दिनों मानवता को शर्मसार कर देने वाली एक घटना मथुरा के मसानी स्थित श्मशान घाट में देखी गई। जहां 85 वर्षीय महिला पुष्पा की मौत के बाद उसकी तीनों बेटियों के बीच जमीनी हक को लेकर लड़ाई शुरू हो गई और कई घंटे तक महिला का अंतिम संस्कार रुका रहा। सोचिए! उस मां की रूह पर क्या बीती होगी जब वह अपने जिगर के टुकड़ों को खुद से बढ़कर जमीन जायदाद के लिए लड़ते देख रही होगी।
कहने को तो मां बेटी का रिश्ता दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता होता है। एक बेटी अपनी मां के हर दु:ख तकलीफ को समझती है। लेकिन जब वही बेटियां धन दौलत के लालच में अंधी होकर अपनी मां की ही अंतिम विदाई की रस्म को रुकवा दे तो फिर क्या ही कहा जाए। वैसे तो अपने प्रियजन की मृत्यु किसी भी परिवार के लिए अविश्वसनीय रूप से दुखद और कठिन समय होता है। परिवार के सदस्य मृतक देह की अंतिम विदाई को पूरे सम्मान के साथ करते हैं। लेकिन बीते दिनों एक मां अपनी ही चिता के दाह संस्कार को तरसती रही। पुष्पा की तीन बेटियां हैं। लेकिन मां की मौत होते ही बेटियों में जमीन के बंटवारे को लेकर विवाद छिड़ गया। श्मशान घाट पर मां का शव रखा रहा और बेटियां लड़ती रहीं। जब तक मामले का निपटारा नहीं हो गया तब तक शव को मुखाग्नि नहीं दी जा सकी। करीब 8 से 9 घंटे मां का शव चिता पर रखा रहा। यहां तक कि श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार की विधि सम्पन्न कराने आए पंडित भी घाट से लौट गए। कई घंटे तक श्मशान घाट पर बेटियों का ड्रामा चलता रहा। पुलिस ने स्टाम्प लाकर जमीन का लिखित बंटवारा कराया तब कहीं जाकर अंतिम संस्कार पूरा हो सका।
इस संसार में मां से बड़ा कोई नहीं होता। मां के आगे दुनिया की सारी धन दौलत बेकार है। माता-पिता भी अपनी औलाद की बेहतरी के लिए अपने जीवन की सारी खुशियां कुर्बान कर डालते हैं? बस इस उम्मीद में की बच्चे उनके बुढ़ापे का सहारा बनेंगे। लेकिन आधुनिकता के इस दौर में ये परम्परा भी बदलती जा रही है। परिवार बिखरते जा रहे हैं। रिश्तों की डोर कमजोर हो रही है। पर आज भी माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति प्रेम नहीं बदला है। श्मशान घाट जिसे मोक्ष धाम भी कहा जाता है, लेकिन एक माँ की देह बेटियों की दौलत की लालसा में मोक्ष के लिए तरसती रहे। सोचिए जिन बहनों का जीवन बसाने के लिए एक माँ ने उम्र भर कितने जतन किए होंगे। खुद की खुशियां त्याग कर अपने बच्चों की जरूरत को पूरा किया होगा। पर इस निमोर्ही समाज में रिश्तों का मर्म पत्थर हो गया है। ये घटना तो सिर्फ एक बानगी भर है। आए दिन निर्दयी समाज में ऐसे किस्से आम हो चले हैं। कहीं बेटा अपने जीवन में इतना मशगूल है कि अपने पिता के शव को मुखाग्नि देने की फुर्सत नहीं तो कहीं सम्पति के लिए बच्चे माँ बाप की जान के प्यासे हुए जा रहे हैं।
बुजुर्गों की समस्या को देखते हुए सरकार उन्हें ‘मरते दम तक’ कीमती बनाए रखने का लाख जतन कर लें। लेकिन जब बुजुर्ग मां बाप को अपने बच्चों के सहारे की जरूरत हो तो सरकार कैसे उसकी औलाद को रिश्ता निभाना सिखाए? ये सवाल अहम हो जाता है। उत्तर प्रदेश सरकार माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं कल्याण नियमावली 2014 में संशोधन करने जा रही है। इस संशोधन में न सिर्फ बुजुर्ग माता-पिता के बच्चों, बल्कि रिश्तेदारों को जोड़ा जा रहा है। जो बच्चे अपने माता पिता को प्रताड़ित कर या उनका ख़्याल न रखें उन्हें संपत्ति से बेदखल करने का प्रावधान किया गया है। आए दिन समाज में ऐसी अनगिनत कहानियां उजागर हो रही हैं। कहीं बच्चों के होते हुए भी बूढ़े माँ बाप वृद्धावस्था में अपना जीवन गुजर रहे है। तो कहीं घर के ही किसी कोने में घुटन भरी जिन्दगी जी रहें हैं। बच्चे अपनी जवानी के नशे में भूल गए है कि कल उनका भी बुढ़ापा आएगा। तब शायद उन्हें अपने माता पिता की अहमियत पता चलेगी पर तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।