- प्रथम चरण में पश्चिमी यूपी के 11 जिलों की 58 और दूसरे चरण में 9 जिलों में 55 सीटों पर होगी वोटिंग
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: यूपी में चुनाव का ऐलान हो गया है। प्रथम चरण में पश्चिम यूपी से ही होगी बेस्ट होने की जद्दोजहद। प्रथम चरण में पश्चिम यूपी के 11 जिलों की 58 व दूसरे चरण में 9 जिलों में 55 सीटों पर वोटिंग होगी। पश्चिम यूपी किसान आंदोलन का भी गढ़ हैं।
ऐसे में भी पश्चिम से प्रथम चरण की शुरूआत बेहद अहम् रहेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर तमाम भाजपा के शीर्ष नेता पश्चिम यूपी में जनसभा कर चुके हैं। वेस्ट यूपी में जो चुनावी माहौल बनेगा, वहीं पूरब तक रंग दिखायेगा।
अब पश्चिम यूपी पर ही बहुत कुछ निर्भर करने वाला हैं। इसी को लेकर तमाम राजनीतिक दल जद्दोजहद करेंगे। कौन दल बेस्ट रहेगा, यह पश्चिम यूपी ही तय करेगा। फिर किसान आंदोलन का बिगुल फूंकने वाले भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत का भी यहीं गढ़ हैं।
किसानों की नाराजगी भाजपा के प्रति बरकरार रहेगी या फिर नहीं, यह तो भविष्य के गर्भ में हैं, लेकिन इतना अवश्य है कि भाजपा ने पश्चिम यूपी के 17 जिलों में 2017 के विधानसभा चुनाव में 109 सीटें जीत कर इतिहास बना दिया था, लेकिन वर्तमान में जिस तरह से किसानों की नाराजगी भाजपा के प्रति बढ़ी है, उसको देखकर लगता है भाजपा को मुश्किल का सामना करना पड़ेगा। फिर सपा-रालोद के बीच गठबंधन हुआ हैं, जो पश्चिम यूपी में कैसा प्रदर्शन करेगा, उस पर भी बहुत कुछ निर्भर करने वाला है। मेरठ से हस्तिनापुर से राज्यमंत्री दिनेश खटीक, शामली से भाजपा के कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा, मुजफ्फरनगर से राज्यमंत्री कपिल अग्रवाल, गाजियाबाद से राज्यमंत्री अतुल गर्ग भी प्रदेश सरकार में मंत्री रहे। इनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी जनसभाएं हो चुकी हैं।
राजस्थान व मध्य प्रदेश के भाजपा नेताओं को भी वेस्ट यूपी के चुनाव में लगा दिया गया है। रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी के लिए भी 2022 का विधानसभा चुनाव राजनीतिक परीक्षा हैं।
क्योंकि पूर्व केन्द्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह की मृत्यु के बाद जयंत चौधरी का यह पहला चुनाव है, जब वह पार्टी केराष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे हैं। फिर रालोद-सपा का चुनावी गठबंधन है।
कभी पश्चिम यूपी चौधरी चरण सिंह परिवार की राजनीतिक विरासत हुआ करता था, लेकिन 2017 में भाजपा ने एकतरफा जीत दर्ज की थी। इसकी वजह मुजफ्फरनगर का दंगा भी अहम् रहा था, जिसके बाद भाजपा ने हिन्दू-मुस्लिम को लेकर पश्चिम यूपी में ऐसी बेटिंग की, जिसके बाद तमाम राजनीतिक दलों का सफाया हो गया था। वर्तमान में जयंत चौधरी ने कृषि कानून के खिलाफ जिस तरह से पश्चिम यूपी में महापंचायत की, उसके बाद भाजपा के खिलाफ माहौल तैयार भी हुआ, लेकिन 10 फरवरी को होने वाले मतदान में सपा-रालोद गठबंधन की भी अग्नि परीक्षा होगी। क्योंकि जाट व मुस्लिमों के बीच जो खाई मुजफ्फरनगर दंगे के बाद पैदा हुई थी, उसको पाटने में कितनी कामयाबी मिली? इसे भी यह चुनाव तय करेगा।
सरधना: प्रत्याशियों को लेकर तस्वीर अभी धुंधली
भाजपा सपा-रालोद में टिकट मांगने वालों की लंबी लिस्ट
आचार संहिता लागू होने के बाद से लखनऊ दिल्ली की दौड़ शुरू
चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद सरधना विधानसभा में चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है। 10 फरवरी को पहले चरण में मेरठ जनपद में मतदान होगा। इस बार मेरठ जनपद में सरधना की सीट पर बेहद रोमांचक देखने को मिलेगा।
क्योंकि दो बार के विधायक संगीत सोम ओर लगातार 15 वर्ष से सरधना विधानसभा में रहकर मेहनत कर रहे अतुल प्रधान इस बार फिर आमने-सामने होने की प्रबल संभावना है। हालांकि भाजपा और सपा लोकदल ने किसी का टिकट अभी तक घोषित नहीं किया है, लेकिन इनके बीच भाजपा से पूर्व जिलाध्यक्ष शिवकुमार राणा, ठाकुर यशपाल सिंह सोम, पूर्व विधायक रविंद्र पुंडीर के बेटे उत्कृष रविंद्र पुंडीर भाजपा के जिला महामंत्री एवं सांसद विजय पाल तोमर के भाई भंवर सिंह ताल टोक रहे हैं। उधर, सपा लोकदल के गठबंधन से पूर्व विधायक चौधरी चंद्रवीर सिंह की बेटी मनीषा अहलावत भी ताल ठोक रही है। मनीषा अहलावत ने हाल ही में सरधना विधानसभा में जनता की सेवा के लिए स्वास्थ्य विभाग की तर्ज पर अपने खर्च पर संजीवनी रथ भी शुरू किया है।
यह रथ जनता के बीच में पहुंचेगा और नि:शुल्क जांच करेगा। शिवपाल यादव की करीबी ठाकुर शशि पिंटू राणा भी इस सीट पर लड़ने की इच्छुक है, जो अपनी दावेदारी मजबूती के साथ इस सीट पर कर रही है।
इस बार सरधना सीट पर बेहद कड़ा मुकाबला होगा। सपा रालोद के गठबंधन के लिए भी इस सीट में पेंच फंसा हुआ है। बसपा ने संजीव धामा को अपना प्रत्याशी इस सीट पर घोषित कर दिया है, जबकि कांग्रेस के टिकट से सपना सोम और पूर्व विधायक सैय्यद जकीउद्दीन के बेटे रिहानुद्दीन ताल ठोक रहे हैं।
इस बार सरधना विधानसभा सीट से टिकट मांगने वालों की सभी राजनीतिक दलों में लंबी फेहरिस्त है। आचार संहिता लागू होने के बाद से अब अपने-अपने टिकट के लिए प्रत्याशियों ने भागदौड़ शुरू कर दी है। कुछ प्रत्याशी लखनऊ तो कुछ प्रत्याशी दिल्ली की और दौड़ लगा रहे हैं।
अब देखना है कि इस सीट पर टिकटों को लेकर तस्वीर कब साफ होेगी? इस बार सरधना सीट पर किसके सिर जीत का ताज सजेगा।
कैंट: भाजपा को मुश्किल में डालेगी किसानों की नाराजगी
चार बार से है विधायक पांचवीं बार भी मांग रहे टिकट
कैंट विधानसभा सीट भाजपा का किला मानी जाती हैं, लेकिन इस बार जिस तरह से किसानों में नाराजगी देखी जा रही है, उसका नुकसान कैंट विधानसभा सीट पर भी देखने को मिलेगा। क्योंकि कैंट विधानसभा क्षेत्र में जाट 50 हजार मतदाता है, जिनकी नाराजगी भाजपा को मुश्किल में डाल सकती है। फिर बसपा ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं, यहां पर जाटव मतदाता 75 हजार है, जो हार जीत के लिए अहम भूमिका निभा सकते हैं। सत्यप्रकाश अग्रवाल कैंट विधानसभा से चार बार चुनाव लड़ चुके हैं। भले ही उनकी उम्र 87 वर्ष हो गई हैं, लेकिन इस बार भी भाजपा से टिकट मांग रहे हैं।
हालांकि भाजपा की आंतरिक गाइड लाइन है कि 75 वर्ष की आयु पर सक्रिय राजनीति से रिटायर्डमेंट दे दिया जाता है। कभी मेरठ कैंट सीट कांग्रेस की हुआ करती थी, लेकिन 1989 के बाद कांग्रेस के वर्चस्व को परमात्मा शरण मित्तल ने तोड़ा था तथा पहली बार भाजपा का कैंट में जीत का खाता खुला था। उसके बाद भाजपा लगातार कैंट विधानसभा पर जीत का परचम लहरा रही है।
इस बार भाजपा से कई दावेदार टिकट मांग रहे हैं। भाजपा किस उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारती है, यह देखना है। बाकी बसपा व सपा-रालोद गठबंधन का प्रत्याशी भी यहां अहम होने वाला है।
कैंट सीट पर क्या इस बार भी विधायक सत्यप्रकाश अग्रवाल अपना टिकट बचा पाएंगे? यह बड़ा सवाल राजनीति के गलियारों में चल रहा है। चार बार से वह लगातार विधायक है। पांचवीं बार भी सत्यप्रकाश अग्रवाल इस सीट से टिकट मांग रहे हैं।
अगर उम्र का बंधन उनके आड़े नहीं आता है तो वह फिर से चुनाव मैदान में हाथ आजमा सकते हैं। वैसे देखा जाए तो उनकी उम्र को लेकर ही दिक्कत है, बाकी भाजपा हाईकमान तक उनकी मजबूत पकड़ है। हालांकि इस सीट पर भाजपा के महानगर अध्यक्ष मुकेश सिंघल, पूर्व विधायक अमित अग्रवाल और जाट समाज से ताल्लुक रखने वाले विक्रांत चौधरी उर्फ आदित्य भी टिकट पर दावेदारी जता रहे हैं। मुकेश सिंघल की आरआरएस में पकड़ मजबूत हैं, जिसके चलते उनकी दावेदारी भी मजबूत मानी जा रही है।
दरअसल, आरआरएस के प्रांत प्रचारक रहे आलोक का मुकेश सिंघल का करीबी माना जाता रहा है। उनकी नजदीकियों के चलते ही महानगर भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी मिली थी। इस सीट पर एक लाख वैश्य समाज के वोटर हैं। वही 50 हजार जाट मतदाता है।
पहली बार जाट समाज से विक्रांत चौधरी उर्फ आदित्य ने भाजपा के टिकट पर ताल ठोकी है, मगर जनपद में सात सीटों में से एक सीट कैंट ही ऐसी है, जिस पर वैश्य समाज को ही प्रतिनिधित्व दिया जाता है। इस सीट पर भाजपा वैश्य समाज को ही लड़ाती रही है।
…अगर वैश्य समाज का प्रत्याशी चुनाव लड़ता है तो सत्यप्रकाश अग्रवाल ही लडेंगे या फिर किसी अन्य वैश्य समाज के किसी अन्य व्यक्ति को भाजपा प्रत्याशी बनाएगी।
कब, कौन जीता?
सत्यप्रकाश अग्रवाल वर्ष 2002 में पहली बार विधायक बने। तब 157435 वोटों से जीत दर्ज की थे। उस दौरान भाजपा व लोकदल के बीच समझौता था।
2007 में दूसरी बार 16179 से जीते।
2012 में सत्यप्रकाश अग्रवाल तीसरी बार लड़े और 3613 मतों से जीते। उस दौरान भी भाजपा व लोकदल के बीच समझौता था।
2017 में सत्यप्रकाश चौथी बार चुनाव जीते, तब 7600 वोट से जीत दर्ज की।
कैंट से अमित अग्रवाल 1993 में पहली बार भाजपा से चुनाव लड़े तथा 38195 मतों से जीते।
1996 में फिर अमित अग्रवाल चुनाव लड़े और तब 4146 मतों से जीत दर्ज की थी।
1989 में परमात्मा शरण मित्तल पहली बार भाजपा से चुनाव लड़े और 16603 मतों से जीते थे।
अजित सिंह सेठी चार बार कैंट से विधायक रहे, जिसमें 1974,1977,1980,1985 तक कांग्रेस से विधायक निर्वाचित हुए थे।
1969 उमा दत्त शर्मा कांग्रेस से विधायक बने थे।
रठ कैंट: जातिगत मतदाताओं के आंकड़े
कुल वोट: चार लाख 27 हजार 225 मतदाता।
वैश्य: एक लाख
जाटव: 75 हजार
मुस्लिम: 45 हजार
जाट: 50 हजार
खटीक: 20 हजार
उत्तराखंडी: 20 हजार
वाल्मीकि: 15 हजार
पाल गडरियां: 10 हजार
सैनी, कुशवाह, मौर्य: शाक्य, 35 हजार
पंजाबी: 35 हजार
ब्रहामण: 35 हजार