Sunday, September 8, 2024
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भूदान

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संत विनोबा भावे भूदान आंदोलन के माध्यम से गरीबों के कल्याण में लगे हुए थे। वह संपन्न लोगों के पास जाते और उनसे निर्धनों व बेसहारा व्यक्तियों को आर्थिक मदद देने का निवेदन करते। इसी सिलसिले में वह अलीगढ़ जिले के पिसावा गांव पहुंचे। वहां राजा श्यौदान सिंह का राज था। राजा श्यौदान सिंह ने भव्य जनसभा में विनोबा जी का स्वागत किया। विनोबा जी ने राजा से कहा, महाराज, आप मुझे गोद ले लीजिए।

इस पर जनसभा में हंसी की लहर दौड़ गई। लेकिन राजा ने विनोबा की बात को अन्यथा न लेते हुए कहा, मुझे स्वीकार है। मैं आपको विधिवत गोद लेने की घोषणा करता हूं। यह सुनकर लोग दंग रह गए। इसके बाद विनोबा जी बोले, पिताजी, अब आप मुझे अलग कर दीजिए।

मैं आपका तीसरा पुत्र हूं। आप मुझे अपना भूमि का केवल छठवां भाग दे दीजिए। यह प्रस्ताव सुनकर भी सभी चकित रह गए। लेकिन राजा अपने वचन के पक्के थे। उन्होंने विनोबा जी के कथनानुसार उन्हें तुरंत लगभग दो हजार बीघा भूमि दे दी।

वह भूमि लेने के बाद विनोबा जी ने उसके हिस्से कर उसे बेघर, निर्धन और बेसहारा लोगों में बांट दिया। जमीन पाने वाले जब विनोबा जी को दुआएं देने लगे तो विनोबा जी ने कहा, यह भूमि आपको मेरे कारण नहीं बल्कि दानशील राजा श्यौदान सिंह के कारण मिली है।

उन्हें दुआएं दीजिए। यह सुनकर अनेक लोगों ने राजा के निवास पर जाकर उन्हें धन्यवाद दिया। जब राजा को यह पता चला कि उनके द्वारा विनोबा जी को दान की गई भूमि बेघर और निर्धनों में बांट दी गई है, तो वह अत्यंत प्रसन्न हुए और जीवन भर लोगों के कल्याण में लगे रहे।


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