दिनभर की थकन मिटायी जा रही थी।
राजा और उसके तीन चहेते बैठे हुए थे। सभी के गिलास में लाल पानी भरा था। दूर से कोई देखता तो कहता कि वे खून पी रहे हैं। हवा में एक अजब गंध घुल चुकी थी। अब हवा और गंध के अस्तित्व को अलगाना बहुत मुश्किल था। हल्की रोशनी में भी दृश्यता स्पष्ट थी।
‘क्या हम महंगाई शब्द को असंसदीय घोषित नहीं कर सकते महाराज!’ पहला चहेता बोला।
अचानक विध्न पढ़ा। सबके गिलास जहां थे, वहीं रुक गए।
‘कर क्यों नहीं सकते,हमारे महाराज चाहे तो सब कर सकते हैं!’ दूसरा चहेता बोला।
‘बिल्कुल!’ तीसरा चहेता थोड़ा जोर से बोला।
‘क्यों, क्या हुआ!’ राजा ने पूछा।
‘महाराजा आप तो जानते ही है यह प्रजा न जब देखो तब महंगाई का रोना रोती रहती है, परंतु आजकल कुछ अधिक रो रही है!अब तो सिर दर्द हो गया है…’
‘मैं तो कहता हूं कि महंगाई शब्द को बोलने पर ही पाबंदी लगा दी जाए!’ दूसरा चहेता बोला।
‘सही बात! पूर्ण पाबंदी!’ तीसरे चहेते ने समर्थन किया।
तीनों के समर्थन से राजा कुछ जोश में आ गया। बोला,‘पाबंदी तो हम आज से…अभी से लगा दें, मगर उसके लिए कोई दूसरा शब्द क्या होगा!’
‘किसी दूसरे शब्द की जरूरत क्या है!’ पहला चहेता बोला।
‘फिर भी!अ राजा ने जोर दिया।
तीनों चहेते सोचने लगे।
पहले चहेते ने सोचते-सोचते पूरा गिलास खाली कर दिया।
दूसरे चहेते ने सोचते-सोचते अपने खाली गिलास को पूरा भर लिया।
और रही बात तीसरे चहेते की तो उसने गिलास छोड़ कर अपने सिर पर हाथ रख लिया।
‘महंगाई की जगह खुशहाली रख दें! क्यों!’ राजा बोला।
‘वाह’
‘क्या कहने!’
‘गजब!’
तीनों चहेतों ने बारी बारी से कहा।
थोड़ी देर के लिए फिर शांति छा गई। सबके मन में तरह तरह की कल्पनाएं जन्म लेने लगीं।
‘मजा आएगा!’ तीसरा चहेता बोला।
‘अब राज्य में हर तरफ खुशहाली ही खुशहाली होगी!’ दूसरा चहेता बोला।
‘खुशहाली ने तोड़े पिछले सारे रिकॉर्ड!’ पहला चहेता बोला।
‘इतनी ज्यादा खुशहाली से प्रजा हुई तंग!’ राजा बोला।
‘वाह’
‘क्या कहने!’
‘गजब!’
तीनों चहेतों ने बारी बारी से कहा।
‘आप हर बार आप बाजी मार ले जाते हो!’ तीनों चहेते एक साथ बोले।
राजा मुस्कुराया और गर्व से बोला,‘तभी तो हम राजा हैं!’
थोड़ी देर बाद सभी के पेट भर गए। गिलास खाली होकर लुढ़क गए। और सभा बर्खास्त हुई।
‘आज तो राजकाज के बाद भी कामकाज हुआ!’ खड़े होते हुए दूसरे चहते की जुबान लड़खड़ाई।
‘ऊंचकोटी का चिंतन भी हुआ!’ चलते हुए तीसरा चहेता लड़खड़ाया।
चिंतन-विंतन कुछ नहीं…कल से विशुद्ध मनोरंजन होगा! कहे देता हूं…हां नहीं तो!’ पहला चहेता संयत होकर बोला।
‘यदि मनोरंजन शब्द पर पाबंदी लग जाए तो उसकी जगह कोई दूसरा शब्द क्या होगा!’ पीछे से राजा ने पूछा।
यह सुनते ही पहला चहेता रुका। दूसरा चहेता झुका। तीसरा चहेता मुड़ा।
तीनों चहेते ने सोचने की चेष्ठा की।
उन्हें अभी कुछ सूझता कि राजा बोला,‘बैठक!’
‘आप हर बार आप बाजी मार ले जाते हो!’ तीनों चहेतों ने बिसूरते हुए एक साथ कहा और फाइनली आज की महफिल बर्खास्त हुई।
अगले दिन मीडिया चीख-चीख कर पूरे राज्य में बता रहा था कि राज्य की बिगड़ती अर्थव्यवस्था के मद्दे नजर राजा ने विशेषज्ञों के साथ बैठक की। राजा जी ने प्रजा को आश्वस्त किया है कि चिंता करने की कोई बात नहीं, वह राज्य की खुशहाली के लिए पूर्णत: प्रतिबद्ध है। अब खुशहाली ही खुशहाली होगी।
अनूप मणि त्रिपाठी
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