- भीमकुंड गंगा पुल पर टूटी एप्रोच रोड ने खोल दी पीडब्ल्यूडी की उदासीनता की पोल
- सुलगते सवाल: मेंटीनेंस का एप्रूवल एक साल से क्यों लटका है मुख्यालय पर
- विजिलेंस जांच तक चल रही है निर्माण कार्यों में हुई देरी को लेकर
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: मेरठ-बिजनौर को जोड़ने वाले भीमकुंड गंगा पुल पर टूटी एप्रोच रोड का मामला लोक निर्माण विभाग के गले की हड्डी बन गया है। इस पूरे मामले ने विभाग के आलस्य को भी जग जाहिर कर दिया है। इस पूरे प्रकरण का बारीकी से अवलोकन करने के बाद एक बात तो साफ है कि इस पुल के पूरे खोल में ही झोल है। इस पूरे मामले ने एक प्रकार से सरकारी कार्यों के प्रति अन्य विभागों की उदासीनता भी उजागर करके रख दी है।
लोक निर्माण विभाग से जुड़े विश्वस्त सूत्रों के अनुसार इस पुल के निर्माण के लिए जब वन विभाग से सबसे पहले एनओसी मांगी गई तो पहली फाइल यहीं पर अटक गई। वन विभाग ने क्लियरेंस ही नहीं दिया। पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों ने एनओसी के लिए लाख दलीलें पेश की, लेकिन वन विभाग की ना नकुर जारी रही। बाद में भगवान जाने कैसे अचानक वन विभाग की एनओसी लोक निर्माण विभाग को मिल गई।
चलिए यह एक अलग मुद्दा है, लेकिन लोक निर्माण विभाग की कार्यप्रणाली भी कहीं न कहीं सवालों के घेरे में है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि पुल के लिए जो सुरक्षात्मक उपाय होने चाहिए थे वो क्यों नहीं हुए। इनमें सबसे बड़ा मुद्दा गाइड बंध का है। यदि यह गाइड बंध बने हुए होते तो यह हादसा शायद होता ही नहीं। अब गाइड बंध क्यों नहीं बने। इस पर जब विभागीय अधिकारियों से सवाल किया गया तो उन्होंने इसके लिए सीधे बजट का न होना बताया।
पीडब्ल्यूडी अधिकारियों का कहना था कि यह गाइड बंध हस्तिनापुर व बिजनौर दोनों ओर लगभग 14-14 सौ मीटर तक बनने है और इस पर कई करोड़ रुपये के खर्चे का एस्टीमेट भी बन चुका था लेकिन पैसा न मिलने की वजह से पीडब्ल्यूडी को हाथ पीछे खींचने पड़े। सूत्र यह भी बताते हैं कि भले ही हस्तिनापुर के क्षतिग्रस्त पुल का मेंटिनेंस करा दिया जाए, लेकिन मामला तब तक स्थाई रुप से हल नहीं होगा जब तक यहां गाइड बंध नहीं बन जाते और गाइड बंध के लिए फिलहाल इतना पैसा फौरन मिलना दूर की कौड़ी लग रहा है।
यहां यह सवाल है कि अगर शासन से सुरक्षा उपायों के लिए पैसा मिलने में देरी हो रही है अथवा नहीं मिल पा रहा है तो फिर इसका खमियाजा बेचारी जनता क्यों भुगते। क्योंकि उसने तो टैक्स से सरकार की झोली भरकर अपना काम कर दिया। दूसरी ओर विभागीय सूत्र ये भी बताते हैं कि लोक निर्माण विभाग ने इस पुल की मेंटीनेंस के लिए बजट बनाकर एक साल पहले मुख्यालय को भेज दिया था लेकिन अभी तक भी इसका एप्रूवल नहीं मिला है।
फाइल हवा में ही है। यहां भी यह सवाल है कि आखिर विभाग को क्या जनहानि की कोई चिन्ता नहीं है। क्या सारी एनर्जी तबादलों का खेल खेलने के लिए ही बचा कर रखी गई है और तो और सोने पर सुहागा देखिए कि यहां हो रहे निर्माण कार्यों में दिन प्रति दिन देरी होती गई। पुल का काम समय से पूर्ण न होने के चलते विजिलेंस जांच तक बैठ गई।
बताया जाता है कि पिछले तीन सालों से यह जांच चल रही है। विभागीय सूत्रों के अनुसार इस प्रकरण में संजय शर्मा नाम का कोई अधिकारी जांच कर रहा है। कुल मिलाकर यदि यह कह दिया जाए कि इस मामले के पूरे खोल में ही झोल है तो कुछ भी गलत न होगा।
एप्रोच रोड क्षतिग्रस्त होने से दर्जन भर गांव के सैकड़ों ग्रामीण फंसे
हस्तिनापुर: भ्रष्टाचार की भेंट चढेÞ राज्य मार्ग 147 पर मेरठ-बिजनौर के सीमा को जोड़ने वाले गंगा नदी पर बनाये गये पुल की एप्रोच रोड क्षतिग्रस्त होने के चलते कई दिनों से आधा दर्जन गांवों के सैकड़ों लोग जंगलों में फंसे हैं। एप्रोच रोड का कार्य कछुआ गति के किये जाने के चलते सप्ताहों तक पुल पर आवागमन होता नजर नहीं आ रहा।
यह हाल तब है, जब विभाग के चीफ इंजीनियर राजीव यादव ने मौके का निरीक्षण कर कार्य को चार दिन के अंदर सुचारू कर आवागमन शुरू करने के निर्देश दिये थे। बसपा सरकार ने महाभारत कालीन तीर्थ नगरी हस्तिनापुर के चहुमुखी विकास के साथ मेरठ-बिजनौर मुरादाबाद जिलों की सीमा से जुड़े सैकड़ों गांव की दूरी कम करने के लिए 2007 में करोड़ों रुपये खर्च कर गंगा पुल का निर्माण शुरू किया पुल का अधिकांश कार्य बसपा सरकार में पूर्ण भी हो गया, लेकिन सपा सरकार आते ही वन विभाग के अधिकारी नींद से जागे और पुल का निर्माण वन आरक्षित क्षेत्र होने के चलते पुल के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी और पुल निर्माण कार्य बंद हो गया।
भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद पुल का निर्माण कार्य वन विभाग को स्वीकृत होने के बाद फिर से शुरू हुआ। साथ पुल पर आवागमन शुरू करने के लिए पुल के दोनों तरफ एप्रोच रोड का निर्माण भी शुरू किया गया। पुल का कार्य तो पूरा हुआ, लेकिन एप्रोच रोड का कार्य आज भी अधर में लटक है, लेकिन पीडब्ल्यूडी विभाग ने अधिकारियों को गुमराह कर कागजों में एप्रोच रोड का कार्य 97 फीसदी पूरा दिखा आवागमन शुरू का दिया, लेकिन धरातल पर आजतक पुल या एप्रोच रोड का लोकार्पण नहीं हो सका।
जिसके चलते शनिवार को एप्रोच रोड का एक बड़ा हिस्सा धराशायी हो गया और आवागमन बाधित होने के साथ हजारों लोगों गंगा के बीच फंस गये। गुरुवार को महज एक दिन बाकी है और विभाग जिस गति से कार्य कर रहा है। उसके चलते महीनों तक भी कार्य पूरा होता नजर नहीं आ रहा है।