Wednesday, July 3, 2024
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चीन और भारत का विकट द्वंद

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Samvad 3


Partap Kumar Raoभारत और चीन के मध्य कुछ वर्ष से द्वंदात्मक सैन्य तनाव बरकरार बना हुआ है। भारत और चीन की सरहद को जिसको लाइन आॅफ एक्चूअल कंट्रोल (एलएसी) कहा जाता है। 4056 किलोमीटर तक विस्तारित एलएसी पर लद्दाख और अरुणाचलम दो ऐसे विशिष्ट इलाके रहे हैं, जहां कि सैन्य तनाव सबसे अधिक रहा है। लद्दाख में पैंगाग झील के निकट भारतीय क्षेत्र पर चीन की फौज ने अतिक्रमण किया और कुछ क्षेत्र पर कब्जा जमाया था। हाल ही में अरुणाचलम क्षेत्र में भी चीन ने एक पूरा गांव ही बसा दिया है और चीन द्वारा अरुणाचलम के तवांग क्षेत्र में 15 स्थानों का चीनी नामकरण किया गया है।

देश की छोटी-छोटी घटनाओं पर ट्वीट करने वाले और बयान देने वाले प्रधानमंत्री के मुंह से इस विकट स्थिति पर एक शब्द नहीं फूटा है। एक दफा तो प्रधानमंत्री ने यहां तक कह दिया था कि चीन ने भारतीय धरा पर कोई आधिपत्य नहीं किया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि यह पहली दफा नहीं है, जबकि चीन ने अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नामों को परिवर्तित करने की कोशिश की है। चीन ने 2017 में भी अरुणाचलम पर अपना अवैध दावा पेश करते हुए कुछ स्थानों के नाम परिवर्तित करने की कोशिश की थी।

बाबा आदम काल के सदियों पुराने नक्शे पेश करते हुए चीन दावा पेश करता रहा है कि तवांग इलाका ऐतिहासिक तौर पर पर दक्षिण तिब्बत का अभिन्न अंग रहा है। विगत तीन वर्ष से भारत और चीन के मध्य कूटनीतिक और सैन्य वार्ताओं के दौर निरंतर जारी रहे हैं। किंतु अभी तक दोनों देश सीमा विवाद के समुचित निदान तक नहीं पहुंच सके हैं।

कूटनीतिक वार्ताओं के दौरान लद्दाख में गलवान घाटी में रक्तरंजित सैन्य मुठभेड़ ने हालात को गंभीर बना दिया। अंतत: लद्दाख में दोनों देशों की सैन्य टुकड़ियां एलएसी से पीछे हट गई तो फिर सैन्य तनाव में कुछ हद तक शैथिल्य के दीदार हुए हैं। आजकल कूटनीतिक और सैन्य वार्ताओं का दौर जारी है। उम्मीद ही की जा सकती है कि दोनों देशों के मध्य विगत 70 वर्षों से निरंतर जारी सीमा विवाद का शांतिपूर्ण निदान निकाला जा सकता है।

ब्रिटिश और चीन के द्वारा 1914 में तिब्बत देश को दोनों मुल्कों के मध्य एक बफर स्टेट के तौर पर स्वीकार किया गया था। 1924 में ब्रिटिश और चीन के मध्य अंजाम दी गई एक संधि द्वारा जिसमें कि मैकमोहन लाइन का सृजन किया गया। इस संधि के तहत तिब्बत को बाकायदा एक बफर स्टेट करार दिया गया। 1924 की संधि को चीन की साम्यवादी सरकार ने ठुकरा दिया और 1950 में साम्यवादी चीन ने तिब्बत पर अपना आधिपत्य अंजाम दिया। विश्व पटल पर भारत एकमात्र प्रजातांत्रिक राष्ट्र रहा जिसने सबसे पहले चीन को कूटनीतिक मान्यता प्रदान की थी। बफर स्टेट तिब्बत को चीन द्वारा जबरन हड़प लिए जाने के विरुद्ध भारत सरकार ने कहीं कोई आवाज बुलंद ना करके, ऐतिहासिक तौर पर एक अत्यंत गंभीर कूटनीतिक गलती अंजाम दी थी।

यहां तक कि वर्ष 1954 में भारत सरकार ने तिब्बत को चीन का अभिन्न अंग स्वीकार कर लिया। इस ऐतिहासिक कूटनीतिक गलती का दुष्परिणाम भारत को अभी तक भुगतना पड़ रहा है। तिब्बत को चीन द्वारा हड़प लिए जाने के तत्पश्चात चीन की सरहद सीधे तौर से भारत से जुड़ गई। चीनी ने 1950 के दशक के प्रारम्भ से ही भारतीय के अनेक सरहदी इलाकों पर अपनी दावेदारी पेश कर दी। इस दावेदारी का प्रबल विरोध भारत सरकार द्वारा किया गया।

कूटनीतिक वार्ताओं के माध्यम से सीमा विवाद का निदान करने के लिए चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने चार दफा भारत यात्रा की। तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी एक दफा चीन का कूटनीतिक दौरा किया। 1959 में तिब्बत के बौद्ध लीडर दलाई लामा को उनके हजारों अनुयायियों को भारत सरकार ने राजनीतिक शरण दी। भारत सरकार के दलाई लामा को शरण देने कूटनीतिक कदम को चीन ने कूटनीतिक शत्रुता के तौर पर सोचा समझा |

1962 में यकायक चीनी लालफौज ने लद्दाख और अरुणाचलम (तत्कालीन नाम नार्थ वैस्ट फ्रंटियर-नेफा) पर भीषण सैन्य आक्रमण किया। विवादित आक्साई चीन पर चीनी लालफौज का आधिपत्य स्थापित हो गया। सोवियत रशिया और अमेरिका द्वारा भारत के पक्ष में एक साथ खड़े हो जाने के कारण एकतरफा युद्ध विराम का ऐलान करते चीनी लालफौज को पीछे हटने पर विवश होना पड़ा। विश्वपटल पर भारतीय कूटनीति कामयाब सिद्ध हुई। सर्वविदित है कि 1962 में चीन और भारत के मध्य अंजाम दी गई जंग में सैन्य तैयारियों के विकट अभाव में भारतीय सेना को पराजय का सामना करना पड़ा था।

1949 में कम्युनिस्टों द्वारा चीन पर आधिपत्य स्थापित करने के पश्चात कैटोग्रफिक तौर से विस्तारवाद का आगाज कर दिया। चीन के सर्वोच्च लीडर कामरेड माओ ने पॉम एंड फाई फिंगर्स का फलसफा पेश करते हुए तिब्बत को पॉम करार दिया और इस पॉम की फाई फिंगर्स लद्दाख, सिक्कम, भूटान, नेपाल और अरुणाचलम को करार दिया गया। अर्थात चीन को पॉम यानि कि तिब्बत को हथियाने के तत्पश्चात पॉम की फाई फिंगर्स को भी अंतत: हथियाना है। साम्राज्यवाद विरोधी दौर में कामरेड माओ ने सामंतवादी साम्राज्यवाद का फलसफा पेश किया और चीन उसको अमली जामा पहनाने में जुट गया। चीन ने 1967 में भारत के सिक्कम प्रांत में नाथूला और चोला पर धावा बोला। दोनों स्थानों पर भीषण स्थानीय युद्ध हुआ। इन दोनों स्थानीय युद्धों में भारतीय सेना द्वारा लालफौज को पराजित किया गया। 1969 में चीन का सोवियत रशिया से भीषण युद्ध हुआ, जिसमें सोवियत रशिया की लालफौज द्वारा चीनी लालफौज को पराजित किया। 1979 में वियतनाम की लालफौज ने निर्णायक तौर पर चीन की लालफौज को जबरदस्त शिकस्त दी।

भारत सरकार वस्तुत: अत्यंत संजीदगी के साथ चीन के साथ अपने समस्त सीमा विवादों का निदान कूटनीतिक वार्ताओं द्वारा करना चाहती है। वार्ताओं के दौरान लद्दाख की गलवान घाटी की सैन्य झड़प गंभीर सबक दिया कि चीन अपनी विस्तारवादी आक्रमक फितरत का परिचय प्राय: देता ही रहता है। भारत को चीन की विस्तारवादी आक्रमकता का समुचित सामना करने के लिए रशिया के साथ अपनी परंपरागत दोस्ती को और अधिक शक्तिशाली बनाना होगा।

डोनॉल्ड ट्रंप को दौर में भारत द्वारा अमेरिका के प्रति अत्याधिक कूटनीतिक झुकाव अंजाम दिए जाने के कारण रशिया के साथ भारत की दोस्ती में दरार उत्पन्न हुई। अत: क्वाड रणनीतिक मोर्चे के प्रति रशियन सरकार सशंकित हो उठी है। भारत को अत्यंत संतुलित कूटनीति और रणनीति का चतुरता से अनुपालन करते हुए अमेरिका और रशिया दोनों की दोस्ती को प्रबल तौर पर कायम बनाए रखना होगा। साथ ही हिंद महासागर और भारत के पड़ोसी देशों में भी चीन की कुटिल कूटनीति और रणनीति का कूटनीतिक कुशलता और चातुर्यता के साथ कड़ा मुकाबला करना होगा।


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