Wednesday, September 11, 2024
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सभी तिलहन फसलों में लगने वाले सामान्य रोग

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KHETIBADI 2


  • कुछ ऐसे रोग हैं जो सभी तिलहन फसलों में दिखाई देते हैं। जिनकी रोकथाम के लिए सभी में सामान कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है।

दीमक

सभी तरह की तिलहन फसलों के पौधों में दीमक का प्रभाव किसी भी वक्त दिखाई दे सकता हैं। लेकिन बीजों के अंकुरण और फसल के पकने के दौरान इसका प्रभाव अधिक देखने को मिलता है।

इस रोग के कीट पौधे की जड़ों पर आक्रमण कर पौधे को अंकुरित होने से पहले ही नष्ट कर देते हैं। जबकि अंकुरित पौधे को जमीन की सतह के पास से काटकर नष्ट कर देते हैं। इस रोग के बढ़ने से पूरी फसल भी बर्बाद हो जाती है।

रोकथाम के उपाय

  • इस रोग की रोकथाम के लिए विवेरिया बैसियाना दवा की उचित मात्रा को गोबर में मिलाकर लगभग आठ से दस दिन बाद खेत में डालकर मिट्टी में मिला देना चाहिए।
  • नीम की खली की उचित मात्रा को खेतों में छिड़कर उसे मिट्टी में मिला देना चाहिए।
  • जिस खेत में दीमक का प्रभाव अधिक दिखाई दे उसमें गोबर की खाद नहीं डालनी चाहिए।

आरा मक्खी

आरा मक्खी रोग का ज्यादा प्रभाव सरसों, लाही और पीली सरसों में देखने को मिलता है। इस रोग के कीट का लार्वा पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें नष्ट कर देता है। जिससे पौधों की पत्तियों में बड़े बड़े छिद्र दिखाई देने लगते हैं।

रोग बढ़ने पर सभी पौधों की पत्तियों में छिद्र दिखाई देने लगते हैं। जिससे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देते हैं। और साथ ही पौधों का विकास रुक जाता है।

रोकथाम के उपाय

  • पौधों पर इस रोग के दिखाई देने के बाद बैसिलस थुरिंजिनिसिस की एक किलो मात्रा को 400 से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिडक देना चाहिए।
  • इसके अलावा मैलाथियान, डाईक्लोरोवास और क्यूनालफास की उचित मात्रा को पौधों पर छिडकना भी लाभकारी माना जाता है।
  • प्राकृतिक तरीके से नियंत्रण के लिए शुरूआत में खेतों की गहरी जुताई कर खेत को धूप लगने के लिए खुला छोड़ देना चाहिए।
  • पौधों पर रोग दिखाई देने पर फेरोमेन ट्रैप को खेत में चार से पांच जगहों पर लगाना चाहिए।

बालदार सूडी

बालदार सूडी को कातरा के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग के कीट की सूंडी पौधे की पत्तियों को खाकर पौधों को नुक्सान पहुँचाती हैं। इस रोग के कीट काले, पीले और चितकबरे दिखाई देते हैं।

जिनके शरीर पर बहुत ज्यादा मात्रा में बाल पाए जाते हैं। इस रोग के बढ़ने पर पौधे बहुत जल्द ही पत्तियों रहित दिखाई देने लगते हैं। जिससे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देते हैं।

रोकथाम के उपाय

  • इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफास, मिथाइल-ओ-डिमेटान या डाईमेथोएटकी उचित मात्रा को पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए।
  • प्राकृतिक तरीके से नियंत्रण करने के लिए पौधों पर एजार्डिरैक्टिन यानी नीम के तेल का छिडकाव 5 दिन के अंतराल में दो से तीन बार करना चाहिए।
  • इसके अलावा सर्फ के घोल का दो से तीन छिडकाव पौधों पर करना चाहिए। और पौधों की रोपाई सही वक्त पर करनी चाहिए।

पत्ती सुरंगक कीट

पत्ती सुरंगक कीट का प्रभाव लगभग सभी तरह की तिलहन फसलों पर देखने को मिलता है। इस रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों पर ही देखने को मिलता हैं। इस रोग के कीट पौधों की पत्तियों के अंदर के हरे भाग को खा जाते हैं।

जिससे पौधे की पत्तियों में सफेद पारदर्शी सुरंगनुमा नालियाँ बन जाती हैं। इस रोग के बढ़ने से सभी पत्तियां पारदर्शी दिखाई देने लगती है। जो समय से पहले टूटकर गिर जाती हैं। जिससे पौधों का विकास रुक जाता है।

रोकथाम के उपाय

  • इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद मोनोक्रोटोफॉस 36 प्रतिशत एस एल की 500 मिलीलीटर मात्रा को 600 से 700 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिडक देना चाहिए।
  • रोग लगे पौधे की पत्तियों को तोड़कर उन्हें नष्ट कर देना चाहिए। इसके अलावा रोग रहित किस्मों के बीजों का चयन करना चाहिए।

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग सभी तरह की तिलहन फसलों में देखने को मिलता है। पौधों में यह रोग कवक की वजह से फैलता है। जिसका प्रभाव पौधों पर बहुत जल्द दिखाई देता है।

इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों पर हल्के भूरे कत्थई रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। रोग के बढ़ने पर इन धब्बों का आकार बढ़ जाता है। जिससे पौधों की पत्तियों में बड़े बड़े छिद्र दिखाई देने लगते हैं। जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं।

रोकथाम के उपाय

  • इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में बीज रोपाई से पहले उसे थिरम से उपचारित कर लेना चाहिए।
  • खड़े पौधों में रोग दिखाई देने पर मैंकोजेब की लगभग दो किलो मात्रा को 700 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से पौधों पर छिड़कना चाहिए।
  • इसके अलावा कापर आक्सीक्लोराइड, जिरम और जिनेब की उचित मात्रा का छिड़काव करना भी लाभदायक होता है।
  • पौधों की रोपाई के दौरान उनके बीच उचित सामान दूरी होनी चाहिए। और भूमि के शोधन के लिए ट्राइकोर्डमा बिरडी का छिड़काव रोपाई से पहले भूमि की जुताई के वक्त करना चाहिए।

चित्रित बग

तिलहन फसलों में चित्रित बग रोग कीट की वजह से फैलता है। इस रोग प्रभाव तापमान में होने वाले परिवर्तन की वजह से देखने को मिलता है। इसके कीट का रंग काला, नारंगी और लाल चित्तेदार दिखाई देता है।

इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसते हैं। जिससे पौधों की फलियों में दानो की संख्या काफी कम बनती है। और पौधे भी अच्छे से विकास नही कर पाते हैं।

रोकथाम के उपाय

  • इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में पौधों पर रोग दिखाई देने पर डाईमेथोएट, मिथाइल-ओ-डिमेटान या मोनोक्रोटोफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।
  • प्राकृतिक तरीके से नियंत्रण के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने के बाद नीम के तेल का 5 दिन के अंतराल में दो से तीन बार छिड़काव करना चाहिए।

माहू

तिलहन फसलों में माहू का रोग मौसम में होने वाले अनियमित परिवर्तन की वजह से फैलता है। इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे पौधे की पत्तियां पीली पड़कर गिरने लग जाती हैं।

इस रोग के कीट आकार में छोटे दिखाई देते हैं। जो पौधों पर एक समूह के रूप में पाए जाते हैं। इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों के साथ साथ पौधों के बाकी के कोमल भागों का रस चूसकर उनकी वृद्धि को रोक देते हैं। जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है।

रोकथाम के उपाय

  • इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफास या डाईमेथोएट की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।
  • प्राकृतिक तरीके से नियंत्रण के लिए पौधों पर एजार्डिरैक्टिन की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।
  •  इसके अलावा रोग दिखाई देने पर खेत में 5 फेरोमेन ट्रैप को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में लगाना चाहिए।

ये तिलहन की प्रमुख फसलों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम के इस्तेमाल में आने वाले तरीके और कीटनाशक है। जिनके इस्तेमाल से किसान भाई अपनी फसलों को रोगमुक्त रखकर अच्छा उत्पादन ले सकता है।


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