Saturday, July 27, 2024
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राजस्थान में कांग्रेस खुद है हार की जिम्मेदार

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Nazariya 22


rajesh jainएक बार तू, एक बार मैं…राजस्थान में सत्ता बदलने का यह रिवाज इस बार भी जारी रहा। 115 सीटों के साथ भाजपा ने स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है, वहीं कांग्रेस 69 सीटों पर सिमट गई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की योजनाएं और गारंटियां पिछले 30 साल से चल रही राज बदलने की परंपरा को नहीं तोड़ पाईं। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। उन्होंने अलग ही तेवर अपनाते हुए जो गारटेंड फॉमूर्ला दिया, जोरदार चुनावी सभाओं से लेकर रोड शो किए, डबल इंजन की सरकार का नारा दिया, यह सब जनता में काम कर गया। एक एंगल से देखा जाए तो अपनी इस हार की बड़ी वजह कांग्रेस खुद रही है। दरअसल, कांग्रेस जुलाई 2020 में उसी समय हार गई थी, जब अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमे की अलग-अलग धड़ेबंदी हुई थी। गहलोत और पायलट के विवाद ने पार्टी को हाशिए पर धकेल दिया। कई संस्थानों, यूआईटी और जेडीए में नियुक्तियां नहीं की गईं। पार्टी के पास चार साल तक जिलाध्यक्ष और ब्लॉक अध्यक्ष तक नहीं थे। ऐसे में हालात ये बने कि कांग्रेस के पास बूथ लेवल तक का संगठन नहीं था। पार्टी की ओर से प्रचार भी फीका रहा। सचिन पायलट अपने इलाके या समर्थकों तक ही सिमटे रहे। ऐसे में कांग्रेस ने 2018 में जहां जयपुर संभाग में 50 में से बंपर 34 सीटें हासिल की थीं, इस बार यह आंकड़ा काफी गिर गया। पूर्वी राजस्थान में हुई बड़ी हार के अलावा मेवाड़, मारवाड़ और मेरवाड़ में भी कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली। कांग्रेस जिन मुद्दों पर चुनाव लड़ रही थी, उनमें चिरंजीवी योजना को छोड़ दें तो बाकी का लाभ जनता तक नहीं पहुंच पाया। फ्री मोबाइल, फ्री राशन किट, ग्रामीण क्षेत्रों में इंदिरा रसोई जैसी योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करने में बहुत देरी हो गई। कांग्रेस ने आखिरी बजट में 17 जिले बनाने का मास्टर स्ट्रोक खेला था, लेकिन सबसे छोटे जिले दूदू पर कांग्रेस सबसे पहले हारी। डीडवाना और फलोदी में भी कोई फायदा नहीं हुआ। यहां भाजपा से बागी और निर्दलीय यूनुस खान जीत गए। फलोदी जहां सालों से जिला बनाने की बात थी, वहां भी कांग्रेस हार गई।

मुख्यमंत्री गहलोत भले ही कहते रहें कि पिछले चुनावों की तरह इस बार एंटी इनकम्बेंसी नजर नहीं आ रही, लेकिन यह सच था कि कांग्रेस के मंत्रियों और विधायकों के प्रति खासी नाराजगी थी। यह तक कहा जाने लगा कि हर विधानसभा सीट पर एक सीएम बन गया है। इन्होंने मर्जी से चहेतों के तबादले करवाए। दलालों के जरिए लेन-देन के आरोप लगे। सर्वे में भी जनता की मंत्रियों व विधायकों से नाराजगी की बात सामने आई थी। लकिन चुनाव के बाद कहीं सचिन पायलट का दावा मजबूत नहीं हो जाए, इसलिए गहलोत ने अपने 90 फीसदी से अधिक विधायकों को वापस उन्हीं सीटों पर उतार दिया। फिर क्या था, लोगों ने वोटिंग के दिन अपनी भड़ास निकाल ली। जनता ने बता दिया कि मंत्रियों और विधायकों का घमंड बर्दाश्त नहीं। चुनाव में गहलोत कैबिनेट के 68 प्रतिशत चेहरे हार गए। कई मंत्री और विधायक तो बहुत बड़े अंतर से हारे।

राजस्थान में चुनाव की पूरी कमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संभाल रखी थी। यहां किसी चेहरे को आगे करने की बजाय भाजपा ने ब्रांड मोदी को ही जनता के बीच रखा था। इसकी बड़ी वजह थी कि 2013 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर में भाजपा को ऐतिहासिक 163 सीटें मिली थीं। भाजपा ने सनातन और हिंदुत्व के मुद्दे पर फोकस किय। इसके तहत उदयपुर के कन्हैयालाल मामले के जरिए हिंदू वोट बैंक का ध्रुवीकरण किया गया। एक भी मुस्लिम को कैंडिडेट नहीं बनाया और संतों को टिकट देकर हिंदुत्व की छवि पेश की। पार्टी ने पेपर आउट और लाल डायरी के माध्यम से बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दे को हवा दी। महंगाई की नब्ज पकड़ते हुए गहलोत की गारंटी पर मोदी की गारंटी लाई गई। पेट्रोल की कीमत पर पर पुनर्विचार की बात की गई। चुनाव के आखिर में ओपीएस पर पुनर्विचार की बात कर निर्णायक बढ़त ले ली। राजस्थान में भाजपा का संगठन काफी मजबूत रहा। भाजपा ने कांग्रेस की कमजोर नस पर प्रहार किया। गहलोत और पायलट गुट के विवाद का पूरा फायदा उठाया। चुनाव के आखिरी दिनों में सचिन पायलट और उनके पिता राजेश पायलट के साथ अन्याय होने की बात कहकर गुर्जरों के अंसतोष को और बढ़ाया। इसका नतीजा ये रहा कि पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस पिछड़ गई।

कांग्रेस भाजपा के अलावा अन्य दल कोई बड़ी जगह नहीं बना पाए। आरएलपी ने पिछली बार तीन सीटें जीती थीं लेकिन इस बार हनुमान बेनीवाल खुद फंस गए और बड़ी मुश्किल से जीत पाए। आरएलपी ने भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के वोट काटे। ऐसा ही बीएपी ने वागड़ के आदिवासी अंचल में किया। बीएपी ने 3 सीटें जीतीं। पिछले चुनाव में 6 सीटें जीतने वाली बसपा इस बार 2 सीटें ही जीत पाई। करीब आधा दर्जन सीटों पर निर्दलीयों ने कब्जा जमाया है। ये नतीजे 2024 के आम चुनाव का सेमीफाइनल था। चुनाव में जिस तरह कांग्रेस ने 69 सीटें जीती हैं, ऐसे में कुछ सीटों पर मुकाबला रहेगा, लेकिन पिछले दो चुनाव से लोकसभा में एक सीट के लिए तरस रही कांग्रेस के लिए अब लोकसभा चुनाव बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा।


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