- काश ! भाजपा पार्षद की जगह अन्य विपक्षी पार्टी पार्षद का मामला होता तो क्या होता ?
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: नगर निगम में जिस तरह से भाजपा पार्षद एवं जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र लिपिक बीच अभद्र व्यवहार एवं भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप प्रत्यारोप के बीच मामले ने तूल पकड़ा। जिस तरह से महापौर की पहल पर तमाम भाजपाइयों ने एकजुट होकर मामले में भले ही दोनों के बीच दिलों से समझौता न कराया हो, लेकिन दिखावे एवं कार्रवाई आगे न बढेÞ उसके लिये समझौता कराया वह समूचे शहर में चर्चा का विषय बना है।
दोनों ही पक्षों के द्वारा मामले में निष्पक्ष कार्रवाई की मांग न करके एक-दूसरे के खिलाफ बिना जांच पड़ताल के ही कार्रवाई की मांग पर अड़े हुए थे, लेकिन कहीं न कही महापौर के द्वारा पूरे मामले में एक सेतू के रूप में कार्य करते हुए आखिरकार समझौता कराने में वह सफल हो गए। उनके द्वारा पूरे मामले की सच्चाई का पता होने के बावजूद मामले में दोषी पर कार्रवाई की जगह-समझौता कराने का विकल्प ही दिखाई दिया।
नगर निगम में न जाने कितने भ्रष्टाचार के मामलों में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए फाइलें धूल फांक रही हैं। जिसमें भ्रष्टाचार चूना घोटाले में पूर्व नगर स्वास्थ्य अधिकारी से लेकर नगरायुक्त समेत कई अधिकारी एवं कर्मचारियों की गर्दन फंस गई। जिसमें मात्र स्टोर लिपिक पर खानापूर्ति की कार्रवाई तो कर दी गई, लेकिन बडेÞ अधिकारियों को नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी की फर्जी जांच रिपोर्ट के आधार पर बचा लिया गया। इस पूरे मामले की शिकायत पूर्व पार्षद अजय गुप्ता के द्वारा की गई थी।
जांच में कमिश्नर के द्वारा कई अधिकारी एवं कर्मचारियों को दोषी ठहराया गया है, लेकिन फर्जी जांच रिपोर्ट के आधार पर कई की गर्दन फंसने से बची हुई है। यदि फर्जी जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई हो तो कई बड़े अधिकारी सलाखों के पीछे होंगे। वहीं, दूसरी ओर नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में न जाने कितने स्वच्छता मित्रों की सेवा पुस्तिका गायब हैं। उन्हें किसने गायब किया या उनकी सेवा पुस्तिका जमा नहीं की गई तो फिर उन्हे निगम में किस हैसियत से रखा हुआ और वेतन दिया जा रहा है।
कई कर्मचारियों की जन्मतिथि में बड़ा अंतर दर्शाया गया है। उधर, दूसरी तरफ पार्षद संजय सैनी की शिकायत पर किराया वसूली लिपिक हरवीर सिंह का पटल बदला गया, लेकिन उसके खिलाफ कोई बड़ा एक्शन अधिकारियों की तरफ से लापरवाही पर नहीं लिया गया। लोहिया नगर में कूडेÞ के पहाड़ का निस्तारण न होना, साथ ही निगम का योजनाओं पर खजाना खाली किया जाना, तमाम भ्रष्टाचार के बडेÞ मुद्दे शहर की जनता के सामने तो आए, लेकिन कार्रवाई के नाम पर नतीजा क्या निकला वह अभी तक किसी के सामने नहीं आ सका।
यह सब मामले महापौर हरिकांत अहलूवालिया के सामने हैं, लेकिन उनके सामने हाल ही में जो पार्षद संजय सैनी व लिपिक दिनेश कुमार के बीच विवाद बना, उसको लेकर कहीं न कहीं उनके मन में यह सवाल जरूर रहा कि भ्रष्टाचारियों व मामले में दोषी पर भले ही कार्रवाई हो या न हो, लेकिन यदि आंदोलन बड़ा चला तो उनका शहर एक बार बदनाम जरूर हो जायेगा।
साथ ही निगम में ट्रिपल इंजन सरकार होने के साथ ही लोकसभा चुनाव 2024 सिर पर हैं। इस पूरे मामले में न तो ज्ञापन लेने के दौरान नगरायुक्त धरना स्थल पर पहुंचे और न ही कर्मचारियों को इस तरह से धरना-प्रदर्शन पर बैठने के लिए शांत करते नजर आए। दूसरी तरफ समझौते के लिए बैठक में भी अपर नगरायुक्त ही पहुंच सके। दोनों तरफ से पहल महापौर हरिकांत अहलूवालिया को ही निभानी पड़ी।