Saturday, July 27, 2024
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रामायण और रामचरित मानस के कथानक में भिन्नता

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राज सक्सेना |

देश में अब तक चार सौ से अधिक रामकथाओं की खोज हो चुकी है। इन रामकथाओं में कथानक से लेकर पारस्परिक संबन्धों और प्रसंगों में इतना अधिक वैभिन्न्य है कि कभी कभी तो लगता है कि एक देश में एक ऐतिहासिक घटना के वर्णन में इतनी भिन्नता कैसे संभव है? कभी लगता है कि रामकथा का कथानक कपोलकल्पित है तो आदि रामायण के रचियता आदि कवि वाल्मीकि के कथानायक राम के समकालीन होने के प्रमाण और रामायण में उल्लिखित अनेक प्रसंगों के एतिहासिक प्रमाण इस धारणा की धज्जियां उड़ा देते हैं।

भारत विशेषकर उत्तर भारत में दो रामकथाओं को धर्मग्रन्थ की मान्यता प्राप्त है। पहली वाल्मीकि रामायण और दूसरी महाकवि तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरित मानस’। कहा तो यह भी जाता है कि रामचरित मानस की रचना महर्षि वाल्मीकि की ‘रामायण’ के आधार पर की गयी है किन्तु कहीं कहीं घटनाक्रम और चरित्र चित्रण में भिन्नता और दो चार जगह प्रसंगों की भिन्नता असंगत लगती है। आइये देखते हैं दोनों ग्रन्थों में भिन्नता के प्रकरण-जो दोनों में समान चित्रित नहीं हैं अथवा एक में तो हैं, दूसरे में नहीं-

बाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण जब अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था] तभी उसे एक सुंदर युवती दिखाई दी। उसका नाम वेदवती था और वो भगवान श्री हरि विष्णु की तपस्या कर रही थी, क्योंकि वह भगवान विष्णु को अपने पति रूप में पाना चाहती थी। रावण ने जब वेदवती को देखा तो वह उस पर मोहित हो गया और उसने वेदवती के बाल खींचकर उसे अपने साथ चलने के लिए कहा। तब उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपने शरीर का त्याग कर दिया और रावण को श्राप दे दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री वेदवती ने दूसरे जन्म में सीता के रूप में अवतार जन्म लिया।

बाल्मीकि रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रोष्टि यज्ञ करवाया था और इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋषि ऋष्यश्रृंग महर्षि विभांडक के पुत्र थे। एक दिन जब महर्षि विभांडक नदी में स्नान कर रहे थे। तब विभांडक ऋषि का नदी में वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरनी ने पी लिया था। जिसके फलस्वरुप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।

महाकवि तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस में यह वर्णन मिलता है कि भगवान राम ने राजकुमारी सीता से विवाह करने के लिए उनके स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और उसका प्रत्यंचा चढ़ाने लगे तो प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह शिव धनुष टूट गया जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का कोई वर्णन ही नहीं है।

बाल्मीकि कृत रामायण के अनुसार भगवान राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे और विश्वामित्र के ही कहने पर ही राजा जनक ने प्रभु श्री राम को वह शिव धनुष दिखाया था। जब राम ने वह शिव धनुष देखा तो खेल ही खेल में राम ने उस शिव धनुष को उठा लिया और धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। चूंकि राजा जनक ने यह प्रण किया था, कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे। इसलिए राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता का विवाह भगवान राम से कर दिया।

महाकवि तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस के अनुसार सीता स्वयंवर के समय भगवान परशुराम वहां आए थे जबकि बाल्मीकिकृत रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब प्रभु राम अयोध्या लौट रहे थे तब भगवान परशुराम आए थे। उन्होंने भगवान श्रीराम को अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। जब भगवान श्रीराम ने उनके धनुष पर बाण चढ़ा दिया तो परशुराम जी वहां से चले गए थे।

बाल्मीकि रामायण के अनुसार जिस समय भगवान राम बनवास गए थे। उस समय उनकी आयु 27 वर्ष की थी। भगवान राम के पिता राजा दशरथ राम को बनवास नहीं भेजना चाहते थे। लेकिन वे अपनी पत्नी के आगे वचनबद्ध थे। राम के पिता राजा दशरथ को जब भगवान राम को वनवास जाने से रोकने की कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने राम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर या मेरा वध कर स्वयं अयोध्या का राजा बन जाओ। लक्ष्मण ने भी विद्रोह कर राज्य पर अधिकार करने में राम को प्रेरित किया था।

लंकापति रावण जब सीता का हरण कर रहा था। उसी समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का बहुत प्रयास किया था। बाल्मीकि रामायण के अनुसार जटायु के पिता का नाम अरुण था। यह अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।
जब राम और लक्ष्मण सीता जी की खोज वन में कर रहे थे उस समय कबंध नामक राक्षस का वध राम-लक्ष्मण ने किया था। वास्तव में कबंध राक्षस एक श्राप के कारण राक्षस बना था। जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो कबंध राक्षस का श्राप टूट गया, और वह मुक्त हो गया। कबंध राक्षस ने ही भगवान श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।

तुलसीदास रचित रामचरित मानस के अनुसार समुद्र से लंका जाने के लिए भगवान राम को रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो गए थे जबकि बाल्मीकि रामायण के अनुसार लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान राम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी समुद्र पर छोड़ दिए थे तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान राम को समझाया था।

तुलसीदासकृत रामचरित मानस के अनुसार समुद्र पर पुल का निर्माण नल और नील नामक दो वानरों ने किया था क्योंकि नल और नील को यह श्राप मिला था कि उनके द्वारा पानी में फेंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं जबकि बाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र थे और वह स्वयं भी शिल्प कला में बहुत निपुण थे। अपनी इसी कला की मदद से उन्होंने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।

बाल्मीकि रामायण के अनुसार समुद्र पर सेतु बनाने में 5 दिन का समय लगा था। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन, और 5 वें दिन 23 योजन पुल का निर्माण किया था। इस तरह कुल 100 योजन लंबाई वाला सेतु समुद्र पर बनाया गया था। वह सेतु 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)।


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