17वां प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन इस बार 9-10 जनवरी को इन्दौर में होने जा रहा है। दरअसल भारतीय मूल के लोगों को एक सांझा मंच देने और उन्हें सम्मानित करने के लिए प्रत्येक वर्ष नौ जनवरी को यह प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है। इसी दिन वर्ष 1915 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे। इस सम्मेलन में पूरी दुनिया के 68 देशों के लगभग तीन हजार से भी अधिक प्रवासी भारतीयों के शामिल हाने की संभावना है। आंकड़े बताते हैं कि आज पूरी दुनिया में लगभग 3.21 करोड़ प्रवासी भारतीय हैं। फिलहाल इनको तीन प्रकार की श्रेणियों में रखा जा सकता है। एक तो वे है जिनकी पीढ़ियां भारत को छोड़कर फीजी, मारिशस, ट्रिनिडाड, टोंबेगो, मलेशिया, टयूनीशिया व दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में बस गए हैं। दूसरे वे लोग हैं, जो नौकरी के सिलसिले में खाड़ी आदि के देशों में रहते हैं। तीसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं, जो अपेक्षाकृत बहुत संपन्न हैं। ये लोग अमेरिका और आस्ट्रेलिया में बसे हैं। ये वे प्रवासी भारतीय हैं, जिनको भारत में निवेश करने की बहुत उम्मीदें हैं। आज दुनिया के 200 देशों में भारतीय मूल के लोग रहते हैं।
इनमें सबसे अधिक अमेरिका और खाड़ी के देशों में हैं। जहां तक विश्व में इनकी मूल संख्या का सवाल है तो कहना न होगा कि अमेरिका में इनकी संख्या 50 लाख, ब्रिटेन में 15 लाख, दक्षिणी अफ्रीका में 12 लाख, कनाडा में 10 लाख, मारिशस में 9 लाख, यूरोप में 8 लाख तथा आस्ट्रेलिया में साढ़े चार लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं। वर्ल्ड बैंक की माइग्रेशन ऐंड डेवलपमेंट ब्रीफ-2022 की रिपोर्ट बताती है कि 2022 में ये प्रवासी भारतीय अपने देश में रेमिटंस (धन)भेजने में दुनिया में अग्रणीय रहे हैं।
आंकड़े बताते हैं कि भारतवंशियों के द्वारा दुनियाभर से भारत में भेजे जाने वाली धनराशि 2012 में जो 71 अरब डालर थी, आज एक दशक बाद बढ़कर 100 अरब डालर से भी अधिक पहुंच गई है। इससे जुड़े आंकड़े यह भी बताते हैं कि प्रवासी भारतीय अपने देश में जितना धन भेजते हैं, वह भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से भी अधिक है। विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट भी बताती है कि कोरोना काल में जब दुनिया की अर्थव्यवस्था प्रभावित थी, तब भी उन विपरीत हालात में भारत को भेजे जाने वाली धनराशि प्रभावित नहीं हुई।
कोरोना की दूसरी लहर में प्रवासी भारतीयों के द्वारा यहां की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पीएम केयर्स फंड में दिया गया भरपूर योगदान बहुत प्रशंसनीय रहा है। प्रसन्नता की बात यह है कि आज दुनिया से भेजे जाने वाला हर आठवां डॉलर भारत में आता है। भारत के बाद इस प्रेषण का दूसरा सबसे बड़ा लाभार्थी आज मेक्सिको (60 अरब डॉलर,) है। इसके बाद चीन (51 अरब डॉलर) तथा फिलीपींस (38 अरब डॉलर) का स्थान आता है। यह इसी का परिणाम है कि चीन, जापान, स्विट्जरलैंड और रूस के बाद आज पांचवें नबंर पर भारत के पास 564 अरब डॉलर के रुप में सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंड़ार है।
आज प्रवासी भारतीय भले ही यहां से सात समंदर पार हैं, लेकिन उनके हृदय में मातृभूमि के प्रति सेवा करने की उत्कट लालसा हर समय बनी रहती है। आज कई भारतीय राजनीतिक दलों ने इन भारतवंशियों के बीच अपनी पैठ बनाकर विदेशों में उनके लिए अपने ओवरसीज चेप्टर भी खोल दिए हैं। आम आदमी पार्टी के चुनाव में भी प्रवासी भारतीयों का उनको समर्थन, तकनीकी व आर्थिक सहयोग की खूब चर्चा रही थी। प्रवासी भारतीयों की भविष्य में यही अपेक्षा है कि उन्हें भारत आकर नौकरशाही व वीजा जैसी अड़चनों का सामना न करना पड़े।
प्रवासी भारतीयों के लिए यहां सबसे बड़ी समस्या बीजा पाबंदी को लेकर रही है। प्रवासी भारतीयों की यह भी इच्छा है कि भारत में उन्हें संपत्तियां खरीदने में नियमों का सरलीकरण हो। यहां उन्हें उद्योग लगाने में नौकरशाही की बाधाओं से छुटकारा मिलते हुए रियायतें भी मिलें। उनकी एक अन्य महत्वपूर्ण इच्छा दोहरी नागरिकता को लेकर भी है। उनका मतलब है कि जिस देश में वे रह रहे हैं, उसके अलावा भारत में भी उन्हें मतदान का अधिकार हासिल हो।
यानि उन्हें भारत में अपनी समस्या सुलझाने के लिए अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार हो। परंतु भारत का संविधान अभी भी उन्हें दोहरी नागरिकताकी अनुमति नहीं देता है। वर्तमान की स्थिति यह है कि आज दुनिया के चालीस देशों में ऐसे लोगों को दोहरी नगारिकता प्राप्त है। इनमें अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया व ब्रिटेन जैसे प्रमुख देश हैं।
कहना न होगा कि भारतवंशी विदेशों में अपनी कार्य संस्कृति, अनुशासन और वहां सांस्कृतिक समन्वय बनाने में कामयाब रहे हैं। निश्चित ही भारत के लिए आज ये बहुत बड़े संसाधन हैं। कई बार यह भी देखने में आया है कि ये भारतीय मूल के लोग अपने राष्ट्र और यहां की राष्ट्रीयता से सीधे जुड़ने के साथ-साथ भारत में भारी निवेश करने के इच्छुक भी हंै। पिछले दिनों अमेरिका के मेडिसन स्कवायर और आस्टेÑलिया के अल्फांस ऐरिना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जो स्वागत किया गया उसके पीछे भी अनिवासी भारतीयों की ये ही अपेक्षाएं रहीं थीं।
यह भारतवंशियों की ताकत ही है कि आज ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और भारतीय मूल की अमेरिका की पहली अश्वेत महिला उपराष्ट्रपति, कमला हैरिस तथा आयरलैंड के नये प्रधानमंत्री लियो बराड़कर जैसे भारतवंशी प्रभावी राजनेताओं के रूप में उभरकर सामने आए हैं।
अभी तक विदेशों में बसे ये भारतवंशी लोग अपने देश में ही गुमनामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर थे। केंद्र सरकार का स्वच्छ भारत अभियान, भारत में स्मार्ट सिटी बनाने, मेक इन इंडिया जैसी अनेक योजनाओं से सारी दुनिया में एक बेहतर संदेश के साथ-साथ यहां इनमें निवेश की भारी संभावनाएं भी बनी हैं। देश को आशा है कि विश्व में फैले भारतवंशियों को देश से जोड़ने की उनकी मुहिम राष्ट्र को और अधिक सशक्त बनाने में एक नया आयाम जोड़ेगी।