Monday, May 29, 2023
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HomeUttar Pradesh NewsMeerutकूड़ा निस्तारण में आमदनी इकन्नी खर्चा रुपया, ऊंट के मुंह में जीरा

कूड़ा निस्तारण में आमदनी इकन्नी खर्चा रुपया, ऊंट के मुंह में जीरा

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  • कूड़ा निस्तारण प्लांट से दो वर्ष में करीब 45 से 50 लाख निगम खाते में किए जमा
  • दो वर्ष में निगम के खाते से खर्च किये करीब ढाई से तीन करोड़ रुपये

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: निगम क्षेत्र के लोहिया नगर स्थित कूड़ा निस्तारण प्लांट के दो वर्ष के प्राजेक्ट पर कितना रुपया खर्च किया गया और उस प्रोजेक्ट से निगम को कितना राजस्व प्राप्त हुआ उस रिकॉर्ड को देखा जाये तो दोनो में भारी अंतर दिखाई पड़ रहा है। जिसमें आमदनी एवं खर्च के इस बडेÞ अंतर पर यही कहा जा सकता है कि आमदनी इकन्नी, खर्चा रुपया।

जो किसी मामले में ऊंट के मुंह में जीरा वाली कहावत की संज्ञा दिया जाती थी। वह भी इस अंतर पर सटीक नहीं बैठती। निगम आय के रूप में कम राजस्व प्राप्त कर रही है। वहीं खर्चे के रूप में निगम के खाते को खाली करती जा रही है। जबकि कोई भी योजना सरकार या कोई प्राइवेट कंपनी हो सभी फायदे के लिये योजनाएं संचालित करती हैं,

लेकिन यहां उससे ठीक उलट हो रहा है। इस तरह के मामले को भ्रष्टाचार की नजर से देखा जाये या फिर अन्य किसी और नजर से देखा जाये कि निगम में राजस्व के रूप में जो रुपया जमा कराया जा रहा है और खर्च के रूप में जो रुपया निगम के खाते से निकाला जा रहा है। उसमें आखिर इतना बड़ा अंतर कैसे आ रहा है, वह समझ से परे है।

नगर निगम के द्वारा हापुड़ रोड़ लोहिया नगर स्थित कूड़ा निस्तारण के लिये वर्ष 2011 में जगह चिन्हित कर कूड़ा डालने का कार्य शुरू कराया गया था। कूडेÞ के ढेर बढ़ने लगे तो उसके निस्तारण की समस्या खड़ी होने लगी। जिसके बाद वर्ष 2021 में बैलेस्टिक सेपरेटर लगाया गया। जिसका कार्य कूड़े के छटनी करना है।

जिसमें इस बैलेस्टिक सेपरेटर से कूडेÞ की छटनी कर आरडीएफ-इर्नट-कंपोस्ट (बाई प्रोडेक्ट)तैयार करना शुरू किया गया। जिसमें दो वर्ष के भीतर करीब सवा तीन लाख से साढ़े तीन टन बाई प्रोडेक्ट तैयार कर सेल किया गया। जिसके सेल से निगम के खाते में करीब 45 से 50 लाख रुपये जमा किये गये।

वहीं, दूसरी तरफ जो बैलेस्टिक सेपरेटर से बाई प्रोडेक्ट तैयार करने पर जो खर्च किया गया। उसमें डीजल, लेबर, जेसीबी व अन्य खर्चों को जोड़कर करीब 35 से 40 हजार रुपये प्रतिदिन का खर्च निगम के द्वारा किया जा रहा है। यदि दो वर्ष के इस खर्च को जोड़ा जाये तो लगभग ढाई से तीन करोड़ रुपये का खर्च किया गया। साफ-साफ अंतर दिखाई दे रहा है।

करीब करोड़ रुपये निगम के खाते से राजस्व प्राप्त की अपेक्षा ज्यादा खर्च कर दिये गये। इसी तरह जीबीजी कंपनी के द्वारा अपने कार्यकाल में राजस्व प्राप्त के रूप में 58 लाख 78 हजार रुपये दिखाया और यदि खर्च को देखा जाये तो करीब छह करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया गया।

यहां तक कि अब खर्च के रूप में इस रकम को ओर भी बढ़ा हुआ बताया जा रहा है। निगम में एक या दो मामले नहीं इस तरह के अनेको मामले में जिसमें आमदनी इकन्नी-खर्चा रुपया बताया जा रहा है। कुछ इस तरह का ही मामला जलकल विभाग में बताया जा रहा है।

जिसमें प्राप्त जलमूल्य से राजस्व एवं उस पर खर्च जो हो रहा है, वह राजस्व प्राप्त से कई गुणा अधिक होना बताया जा रहा है। जबकि जलकल विभाग में जलमूल्य से प्राप्त राजस्व से खर्च किया जाना चाहिए, लेकिन जो राजस्व खर्च बढ़ रहा है, वह भी निगम के खाते से ही जा रहा है।

लोहिया नगर स्थित कूड़ा निस्तारण प्लांट से आरडीएफ-इनर्ट-कम्पोस्ट (बाइ प्रोडेक्ट करीब सवा तीन लाख टन) तैयार हुआ, उससे निगम को राजस्व के रूप में करीब 46 लाख रुपये दो वर्ष के भीतर प्राप्त हुये हैं।
-डा. हरपाल सिंह, प्रभारी मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी एवं पशु चिकित्सा एवं कल्याण अधिकारी नगर निगम मेरठ।

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