सैकड़ों बच्चों की मौत के बाद सवाल उठ खड़ा हुआ कि शिशु स्वास्थ्य की रक्षा में क्यों नाकाम है हमारा तंत्र, रहस्यमयी बाल बीमारी ने हमारी नाकामी की एक ऐसी तस्वीर उजागर की है जिसकी भरपाई हम सालों पहले कर सकते थे। भारत में शिशु अस्पतालों और बाल चिकित्सकों की भारी कमी है जिसका खामियाजा नौनिहाल अपने असमय मौत से चुका रहे हैं।समय भी कुछ ऐसा चल रहा है जब कुदरत मानव पर पीड़ाओं का दौर किस्तों में दे रहा है। कोरोना संकट हो, कुदरती आपदाएं हों और अब रहस्यमयी बुखार ने समूचे उत्तर प्रदेश में हाहाकार मचाया हुआ है। बीते दो सप्ताह से उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में रहस्यमय बुखार ने तांड़व मचा रखा है, जिसने सैकड़ों बच्चों को अपने चपेट में लिया हुआ है। इस अबूझ बीमारी को थामने में सभी प्रयास भी नाकाफी साबित हो रहे हैं। चिकित्सकों द्वारा बीमारी पर नियंत्रण नहीं पाने से एक तस्वीर उभरकर सामने आई है कि हिंदुस्तान में अब भी शीशू अस्पताल और बाल चिकित्सकों की कितनी कमी है। बढ़ती बाल बीमारियों को देखते हुए इस ओर सरकारी महकमे को गौर फरमाना होगा।
बहरहाल, इस घातक बीमारी से कुछ जिले तो बुरी तरीके से प्रभावित हैं।
अकेले फिरोजाबाद में ही अस्सी से अधिक नौनिहाल मौत के काल में समा चुके हैं। हताहत हुए परिवारों का हाल अदर्शनीय-असहनीय है। घरों के आंगनों में बच्चों की किलकारियां शांत हो गई हैं। किलकारियों के जगह मातम और चीखों की पुकारें ही सुनाई पड़ती हैं। पीड़ितों की दर्द भरी पुकारों ने शासन-प्रशासन को भी झकझोर दिया है। ज्यादातर बच्चे स्वास्थ्य विभाग के अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ रहे हैं।
हालांकि वह तात्कालिक कोशिशों में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे। बिगड़ती स्थिति को देखते हुए हुकूमत ने समूचे स्वास्थ्य अमले को अलर्ट कर दिया है। स्वास्थ्य विभाग की टीमें भी रहस्यमय बुखार से प्रभावित क्षेत्रों में तैनात हैं। पर, स्थिति फिर भी काबू से बाहर है।
रहस्यमय बुखर से बच्चे अचानक बीमार पड़ रहे हैं। बुखार आने के कुछ ही समय में बच्चे तेज बुखार से तपने लगते हैं और देखते ही देखते अचेत हो रहे हैं। बीमारी के शुरूआती लक्षणों को चिकित्सक भी नहीं पकड़ पा रहे। वे जब तक किसी नतीजे पर पहुंचते हैं, बहुत देर हो जाती है। इस दरम्यान कई बच्चे दम तोड़ देते हैं।
ये तल्ख सच्चाई है कि आपातकालिक बीमारियों से निपटने के लिए हमारा स्वास्थ्य तंत्र आज भी उतना सशक्त नहीं, जितनी आवश्यकता है। पता है जब अगस्त-सितंबर में ऐसी बीमारियों से बच्चे प्रभावित होते हैं, तो पूर्व में तैयारियां कर लेनी चाहिए, लेकिन शायद हम घटनाओं के घटने का ही इंतजार करते हैं। रहस्यमय बुखार के बाद कमोबेश वैसा होता भी दिख रहा है।
बच्चों में वायरल, बुखार, निमोनिया, चेचक, पेचिस, दीमागी बुखार, अन्य मौसमी संक्रमण आदि रोग इन्हीं बरसाती दिनों में ज्यादा मुंह फाड़ते हैं, बावजूद इसके हमारा स्वास्थ्य विभाग पूर्व की तैयारियों में विश्वास नहीं करता।
बीमारी से निपटने के लिए सरकारी तंत्र बेशक तमाम कोशिशों में इस वक्त संग्लित हों, लेकिन फिर भी अस्पतालों की ओपीडी में लंबी-लंबी लाइनें लगी हैं। हालात ऐसे हैं, जरूरत पर बच्चों को उपचार नहीं मिल पा रहा। मथुरा, बरेली, बस्ती, आगरा व सबसे ज्यादा इफेक्ट जिला फिरोजाबाद के सरकारी अस्पतालों का हाल अब भी राम भरोसे है। वहां मां-बाप अपने बीमार बच्चों को गोद में लिए वार्डों में इधर-उधर भटक रहे हैं।
बहरहाल, प्रभावित जिलों में फिरोजाबाद अब भी अव्वल स्थान पर है, इसके अलावा कानपुर, मथुरा, आगरा, मैनपुरी, बस्ती, गौंडा, देवरिया, बलिया, बरेली आदि जिलों में भी लगातार मामले बढ़ रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद बीते सप्ताह फिरोजाबाद के सरकारी अस्पताल स्थिति का जायजा लेने पहुंचे थे, वहां भर्ती कोमल नाम की बच्ची से मिले और उन्हें जल्द अच्छा होने की शुभकामनाएं दी, लेकिन उनके जाने के कुछ समय बाद ही कोमल ने दम तोड़ दिया। घटना जानकर मुख्यमंत्री भी दुखी हुए।
घटना के बाद मुख्यमंत्री ने अपने दूसरे कामों को छोड़कर सिर्फ स्वास्थ्य तंत्र पर नजर बनाए हुए हैं। दरअसल बच्चों का दर्द किसी को भी बेहाल कर देता है। बच्चों की असमय मौत का दर्द अच्छा भला इंसान क्या, दुश्मन भी बर्दास्त नहीं कर सकता। ना रहने पर बच्चों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का भी जिगरा सभी में नहीं होता। आंखें फफक पड़ती हैं।
फिरोजाबाद में एक दिन में कई दर्जन बच्चों का शव अस्पतालों से निकलता देख आसपास के लोगों की भी आंखें नम हो गई । उन मां-बाप के दर्द को हम महसूस तक नहीं कर सकते जो अपने कलेजे के टुकड़े के शवों को अपने कांधों पर ले जाते दिखे। मात्र उंगली में थोड़ा सा दर्द होने पर ही अभिभावकों का कलेजा कलकपाने लगता है। बीते तीन-चार वर्षों में बच्चों से जुड़ी कई बड़ी दिलदहलादेने वाली घटनाएं घटी।
गोरखपुर के बीआरडी अस्पतालों में आक्सीजन की कमी से बाल संहार की घटना को शायद ही कोई कभी भूल पाए, उसके अगले साल बिहार के मुजफफपुर में हुई सैकड़ों बच्चों की मौत हमें भविष्य में सताती रहेगी। बच्चों से संबंधित जिस तरह से घटनाएं बढ़ रही हैं, उसे देखते हुए केंद्र व राज्य सरकारों को बाल चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
अस्पतालों में बाल स्वास्थ्य से संबंधित संसाधनों को बढ़ाना चाहिए, शिशु रोग अस्पतालों, बाल चिकित्सकों और विशेषज्ञों की अतिरिक्त तैनाती पर ध्यान देना होगा। साथ ही टीकाकरण अभियान को और तेज करने और उसे रिफॉर्म करने की दरकार भी है।