Tuesday, February 11, 2025
- Advertisement -

पाखंड का पर्यावरण

Ravivani 34


VIRENDRA PANULY 1पर्यावरण को लेकर सत्तर के दशक में उभरी राजनीतिक सत्ताओं की चिंता अब पाखंड में तब्दील होती जा रही है। तरह-तरह के वैश्विक सम्मेलनों में दुनियाभर के राजनेता भांति-भांति के दावे-वायदे करते हैं और फिर उन्हें ज्यों-का-त्यों धरकर निकल जाते हैं। दिल्ली में हाल में हुए जी-20 सम्मेलन में यही हुआ था और अब साल के अंत में होने वाले ‘कौप-28’ में फिर यही होने वाला है। उबलती पृथ्वी का ताप कम करने के लिये जागृत न हो सके ‘जी-20’ के दिल्ली सम्मेलन में इस मसले पर अपेक्षित संवेदना नहीं दिखी। ‘क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस आॅफ द पार्टीज’ यानी ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यूएनओ) के 28वें सालाना जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के पहले यह जरूरी था। यह सम्मेलन (कौप-28) 30 नवंबर से 12 दिसंबर 2023 तक संयुक्त-अरब-अमीरात (यूएई) के एक्सपो सिटी, दुबई में आयोजित किया जाएगा। दिल्ली सम्मेलन ‘एक पृथ्वी, एक कुटुम्ब, एक भविष्य’ की थीम पर हुआ था। पृथ्वी के प्रति चेतना जगाने के लिये ऐसे नारे पहली बार नहीं गढ़े गये थे। एक पृथ्वी की बात लें। 5 जून 1974 के पहले एवं 5 जून 2022 के ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ की थीम भी ‘केवल एक ही पृथ्वी है’-‘ओनली वन अर्थ’ थी। एक भविष्य की बात करें तो नार्वे के पूर्व प्रधानमंत्री ‘ग्रो हर्लेम ब्रंटलैंड आयोग’ की वैश्विक पर्यावरण पर रिपोर्ट ‘संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यावरण और विकास आयोग’ द्वारा 1987 में ‘हमारा साझा भविष्य’-‘अवर कॉमन फ्यूचर’ नाम से प्रकाशित की गई थी। यह आयोग 1983 में ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ व्दारा गठित किया गया था।

जहां तक कुटुम्ब का भाव है, प्रकृति-जनित नैसर्गिक परिवेश में हम सब पृथ्वी में सहोदर हैं, परन्तु सारे आदर्श नारों के उद्घोषों के बावजूद पृथ्वी के हालात बिगड़ते ही रहे हैं, पृथ्वी ज्वरग्रस्त होती गई है। यथार्थ अब पृथ्वी के गरम होने का नहीं, बल्कि उबलती पृथ्वी का है, किन्तु अपनी समृध्दि के लिये उसका ताप बढ़ाने से न तो देशों को परहेज है, न उद्योगों व व्यवसायिक संस्थानों को। पृथ्वी 2020 से हर साल, पिछले साल से ज्यादा गर्म हो रही है। 2023 के लिये भी यही प्रवृत्ति जारी है। बिगड़ते हालात की प्रतिक्रिया में 2021 के ‘पृथ्वी दिवस’ (अर्थ डे) की थीम ‘रिस्टोर अवर अर्थ’ अर्थात ‘अपनी पृथ्वी को पुनर्स्थापित करें’ रखना पड़ा। इसी क्रम में 5 जून 2021 के ‘पर्यावरण दिवस’ से ‘यूएनओ’ ‘ईकोसिस्टम रिस्टोरेशन’ का 2021 से 2030 तक का दशक भी मना रहा है। इन परिप्रेक्ष्यों में जब धनी व बड़ी आर्थिकी वाले देशों का दिल्ली में मिलना हुआ तो वैश्विक वंचितों में आर्थिक व पर्यावरणीय न्याय पाने की आशा तो जगनी ही थी। कारण यह भी था कि ‘जी-20’ की मूल उत्पत्ति व परिकल्पना धनी देशों के ‘विश्व व्यापार मंच’ (डब्ल्यूटीओ) की ही थी। कटु यथार्थ यह भी है कि ‘जी-20’ देशों द्वारा गर्म करती गैसों के उत्सर्जन व उनके कारण खेमों में बंटी दुनिया भी पूरे विश्व का ही जोखिम बढ़ा रही है। पिछले अनुभव बताते हैं कि जलवायु पर विभाजित विश्व में एक परिवार का उद्देश्य पाना मुश्किलों भरा है।

शर्म-अल-शेख में आयेजित ‘कौप-27’ सम्मेलन में खेमों में बंटे देशों के व्यवहार में कटुता देख ‘यूएनओ’ महासचिव एंटोनियो गुटेरस को तो यहां तक कहना पड़ा कि उत्तर और दक्षिण तथा विकसित व विकासशील आर्थिकीयों के लिये एक-दूसरे पर आरोप लगाने का यह उपयुक्त समय नहीं है। ऐसे में विनाश निश्चित है। उनका कहना था कि हम उन देशों को पर्यावरण न्याय से वंचित नहीं कर सकते जिनकी जलवायु आपदा लाने में कोई भूमिका नहीं रही है। उनका आशय सबसे कम विकसित और ‘द्वीपीय देशों’ से था, जिनकी जलवायु आपदा फैलाने में सबसे कम भूमिका है, किन्तु जो जलवायु आपदा की मार सबसे ज्यादा झेलते हैं। अंतत: इतिहास में ‘कौप-27’ ऐसा पहला सम्मेलन बन गया जिसमें भारी दबावों के बीच धनी देशों ने आर्थिक व सामाजिक संरचनाओं को होने वाले नुकसानों की भरपाई के लिये कार्बन प्रदूषण से पीड़ित गरीब देशों की एक मुआवजा-कोष की मांग मान ली। ‘कौप-27’ में जलवायु जोखिम से असुरक्षित (वलनरेबल) देशों ने तो कोष स्वीकृति पर दबाव बनाने के लिये यह धमकी भी दे डाली कि जब तक इस पर निर्णय नहीं होगा वे वापस नहीं जायेंगे। जून 2022 में निकली 55 ‘वलनरेबल’ देशों की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि पिछले दो दशकों में जलवायु आपदाओं से इन देशों में लगभग 525 अरब डालर की हानि हुई है। यह उनके सम्मलित ‘जीडीपी’ का लगभग 20 प्रतिशत है।

दिल्ली सम्मेलन में भी पहुंचे ‘यूएनओ’ महासचिव एंटोनियो गुटेरस पहले दिन ही, नौ सितम्बर 2023 को क्लाइमेट व इनवायरमेंट के सत्र में चेता गये थे कि इस जलवायु आपदा काल पर तुरंत काम किया जाना चाहिये। जो कुछ जैसा चल रहा है, उसको हम वैसा जारी नहीं रख सकते। यहां से कड़ा संदेश जाना चाहिये। हर हाल में धरा की तापमान बढ़ोत्तचरी को रोकने का लक्ष्य जिंदा रखना चाहिये, किन्तु असल में ऐसा कुछ नहीं हुआ। पूरे विश्व की नजर ‘जी-20’ के दिल्ली सम्मेलन पर इस आशा से भी लगी थी कि संभवत: सूत्र वाक्य का सम्मान करते हुये ये देश उबलती पृथ्वी के बढ़ते तापक्रम को डेढ डिग्री तक सीमित रखने में आत्मसंयम से अपने कार्बन उत्सर्जनों में कटौती की घोषणा करेंगे। विश्व का पिचासी प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन ‘जी-20’ के सदस्य देशों का है व अनुमान है कि 2050 तक गरम करती गैसों का नब्बे प्रतिशत वैश्विक उत्सर्जन इन्हीं देशों से आयेगा।

‘द्वीपीय देशों’ के अस्तित्व को जलवायु बदलावों से बहुत ज्यादा खतरा है। उनके जोखिमों को हर हाल में कम करने की इच्छाशक्ति तो होनी ही चाहिये। हालांकि जिस ‘अफ्रीकी संघ’ को दिल्ली में पहली बार ‘जी-20’ देशों के समूह में शामिल किया गया उसके वर्तमान अध्यक्ष अजाली असौमानी भी हिन्द महासागर के आखिरी छोर पर बसे एक बहुत छोटे व्दीप-देश कोमोरोस के राष्ट्रपति हैं। वे स्वयं दिल्ली सम्मेलन में उपस्थित थे। गत वर्ष जारी ‘यूएनओ’ की ‘यूनाइटेड ऐमीशन गैप रिपोर्ट’ से भी यह साफ हो चुका था कि वर्तमान में यदि विभिन्न देशों की स्वघोषित उत्सर्जन कटौती की सारी शपथों को जोड़ दिया जाये तो कुल उत्सर्जन कटौती दो से तीन अरब टन की ही आती है, जबकि ‘पेरिस जलवायु समझौते 2015’ के अनुसार 23 अरब टन कार्बन डाई-आक्साईड की कटौती जरूरी है। आज ‘जी-20’ के दस देशों की ऊर्जा खपत में कोयला महत्वपूर्ण आधार है। इसका उत्खनन भी लगातार बढ़ाया जा रहा है। चीन में भी यही हो रहा है। मेजबान देश भारत में 70 प्रतिशत से ज्यादा बिजली उत्पादन कोयले से होता है और कोयले की नई खदानें व प्लांट निजी क्षेत्र में भी बढ़ाये जा रहे हैं। पैट्रोलियम की खोज व खपत तो सभी देश बढ़ा रहे हैं, यहां तक कि सागरों व घने वन क्षेत्रों में भी।
‘जी-20’ के दिल्ली सम्मेलन में विश्वबैंक की भी उपस्थिति थी, किन्तु शुध्द व्यवसायिक रूख अपनाते हुये, उबलती पृथ्वी पर अतिरिक्त संवेदनशील होने की बजाये उसने इण्डोनेशिया की एक बड़ी कोयला परियोजना को धन मंजूर किया। इसकी ग्रीन समूहों व्दारा बहुत आलोचना हो रही हैं। ‘यूएनओ’ महासचिव सितम्बर माह में ही कह चुके हैं कि अब और तेल निकालना बंद किया जाना चाहिये। नये तेल उत्पादन के लिये न तो लाईसेंस दिया जाना चाहिये ना ही फण्डिंग की जानी चाहिये।

‘जी-20’ के देशों द्वारा अपने 2020 में घोषित उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों को न बढ़ाने या कोयले व अन्य जीवाश्म ईधनों को उपयोग से बाहर करने की समय सीमा तय न करने से पृथ्वी के हितचिंतकों व उसको गर्मी से बचाने वालों के बीच अच्छा संदेश नहीं गया है। यदि वे जुबानी जमाखर्च से अलग कतिपय बड़ी आर्थिकी वाले देश पूरी पृथ्वी के लोगों को एक ही परिवार मानते, सबके हित के साथ अपने हित जोड़ते, साझे भविष्य की अहमियत समझते या पृथ्वी के प्रति संवेदनशील होते तो ‘यूएनओ’ महासचिव ‘जी-20’ के तुरंत बाद हुई महासभा के पहले इन देशों को पृथ्वी को तोड़ने वाला क्यों कहते।
दिसम्बर 2023 में दुबई में होने वाले ‘कौप-28’ के लिये ज्यादा समय नहीं बचा है। ‘कौप-28’ की मेजबानी तो एक बडा तेल-उत्पादक देश कर रहा है जो तेल के उपयोग में कटौती की बजाये तकनीकों से कार्बन उत्सर्जन कटौती की राह अपनाने का पक्षधर है। ‘जी-20’ में दिल्ली आये विभिन्न देशों की ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ की बात धरी-की-धरी रह जायेगी क्योंकि ये देश ‘कौप-28’ में पहुंचते ही ‘जी-7’ व ‘जी -77’ के चोगे पहन लेंगे और अपने-अपने खेमों में बंटे तलवार खींचते नजर आयेंगे। ‘जी-20’ से घर लौटे शिखर नेताओं में वसुधैव कुटुम्बकम का भाव पैदा हुआ था कि नहीं यह ‘कौप-28’ में बेहतर दिखना चाहिये।


janwani address 7

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Rajat Kapoor Birthday: निर्देशक रजत कपूर का 63वां जन्मदिन आज, फिल्म निर्देशन के लिए मिले नेशनल अवार्ड

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Baghpat News: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैली के लिए अधिकारियों ने छपरौली में डेरा डाला

जनवाणी संवाददाता | छपरौली: छपरौली कस्बे के श्री विद्या मंदिर...
spot_imgspot_img